बिहार राज्य के भागलपुर जिले के सुलतानगंज में स्थित अजगैबीनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और पूजनीय तीर्थस्थल है। गंगा नदी के किनारे, एक ऊंची चट्टान पर बना यह मंदिर श्रद्धालुओं और खासकर सावन महीने में कांवड़ यात्रियों के लिए अत्यंत पावन माना जाता है। यह मंदिर अपनी बनावट, पौराणिक महत्व और दिव्य शक्ति के कारण सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
'अजगैबीनाथ' शब्द दो हिस्सों में बंटा हुआ है- ‘अज’ यानी अनोखा या अलौकिक और ‘गैबीनाथ’ यानी वह जो किसी से नहीं बंधा हो। इसका अर्थ है ऐसा भगवान जो अजूबे रूप में स्वयं प्रकट हुए हों और जिन्हें कोई बांध नहीं सकता।
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पौराणिक कथा
अजगैबीनाथ मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में यहां ऋषि-मुनियों ने गहन तपस्या की थी। माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे और उन्होंने इस स्थान को अपना निवास स्थान बनाया था।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था और उसमें से हलाहल विष निकला, तब देवताओं और दानवों में त्राहि-त्राहि मच गई। तब भगवान शिव ने वह विष पी लिया और उसे अपने कंठ में स्थिर कर लिया, जिससे वे नीलकंठ कहलाए। इस विष की अग्नि से शिव को राहत देने के लिए देवताओं ने गंगाजल से उनका अभिषेक किया। कहा जाता है कि अजगैबीनाथ वही स्थान है जहां से गंगा जल सबसे पहले चढ़ाया गया था।

मंदिर का इतिहास
ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो इस मंदिर को पाषाण काल का माना जाता है। यह मंदिर एक ऊंची पहाड़ी चट्टान पर स्थित है, जिसके एक ओर निरंतर गंगा बहती है। गंगा की धारा यहां उत्तरवर्ती बहती है, जो कि अत्यंत दुर्लभ है और धार्मिक रूप से शुभ मानी जाती है।
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग हजारों वर्ष पहले हुआ था और इसके निर्माण में तांत्रिक और वैदिक परंपराओं का इस्तेमाल किया गया था। यह मंदिर एक गुफा के रूप में भी दिखता है और कुछ विद्वान इसे शिव के तपस्थल के रूप में भी मानते हैं।
मान्यताएं और धार्मिक आस्था
सावन माह में हरिद्वार, देवघर और अन्य शिवधामों की तरह, अजगैबीनाथ मंदिर भी कांवड़ यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यहां से गंगाजल लेकर श्रद्धालु देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम तक नंगे पांव यात्रा करते हैं।
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इस स्थान से जुड़ी मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। विवाह, संतान, नौकरी, स्वास्थ्य या मानसिक शांति- सभी के लिए यह स्थान वरदान समान माना जाता है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस स्थान में आज भी दैवीय ऊर्जा सक्रिय है। अजगैबीनाथ से लिए गए गंगा जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह जल कई घरों में पूजा-पाठ, यज्ञ और अभिषेक हेतु साल भर रखा जाता है।
यह मंदिर पूरी तरह से गंगा नदी से घिरा हुआ है। जब गंगा अपने पूरे प्रवाह में होती है, तब मंदिर एक द्वीप जैसा प्रतीत होता है। यह स्थल गुफाओं और पथरीली चट्टानों से युक्त है, जो इसे एक रहस्यमयी आभा प्रदान करता है। यहां मंदिर परिसर के पास ही अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं, जिनमें देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।