कितने प्रकार से की जाती है भगवान शिव की पूजा, यहां जानें सभी अनुष्ठान
भगवान शिव की पूजा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं महादेव की पूजा के प्रकार और उनका महत्व।

भगवान शिव पूजा का है विशेष महत्व।(Photo Credit: Freepik)
भगवान शिव को हिन्दू धर्म में आदियोगी, त्रिनेत्रधारी और सृष्टि के संहारक के देवता के रूप में पूजा जाता है। वह संहार और पुनर्निर्माण दोनों के अधिपति माने जाते हैं। उनकी पूजा अनेक विधियों और अनुष्ठानों से की जाती है, विशेषकर श्रावण मास (सावन) में, जो उन्हें समर्पित सबसे पवित्र महीना माना गया है।
भगवान शिव कि पूजा में रुद्राभिषेक अनुष्ठान, लग्नबद्ध रुद्र अनुष्ठान, महामृत्युंजय जाप अनुष्ठान आदि किया जाता है, जिनके लाभ भी धर्म-शास्त्रों में बताए गए हैं। आइए जानते हैं भगवान शिव की पूजा से जुड़ी सभी बातें।
रुद्राभिषेक अनुष्ठान
यह शिव की सबसे पवित्र और प्रभावशाली पूजा विधि है। इसमें रुद्रसूक्त, नमकं, चामकं जैसे वेद मंत्रों के साथ शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल, बेलपत्र, पुष्प, धतूरा आदि से अभिषेक किया जाता है।
सावन में इसे हर सोमवार, विशेषकर श्रावण शुक्ल पंचमी और पूर्णिमा को करना श्रेष्ठ माना गया है। यह मनोकामना पूर्ति, रोगों से मुक्ति, सुख-शांति और समृद्धि के लिए किया जाता है।
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महामृत्युंजय जाप अनुष्ठान
'ॐ त्र्यम्बकं यजामहे...' मंत्र का बार-बार जप इस अनुष्ठान का केंद्र होता है। इसे 108, 1100 या 11,000 बार तक किया जाता है। यह मृत्यु भय, दीर्घायु, असाध्य रोग और जीवन संकट से मुक्ति के लिए किया जाता है।
श्रावण मास में प्रदोष या अमावस्या को इसका जप विशेष प्रभावशाली होता है।
लग्नबद्ध रुद्र अनुष्ठान
यह विशेष रूप से जन्म कुंडली के अनुरूप शुभ लग्न देखकर विधिवत रूप से कई ब्राह्मणों द्वारा किया जाता है। इसमें विशेष मंत्र, हवन और अभिषेक होता है।
श्रावण पूर्णिमा या रक्षाबंधन के दिन, जब चंद्रमा शुभ भाव में हो, यह अनुष्ठान अत्यंत लाभकारी होता है।
लघु रुद्र अनुष्ठान
इसमें 11 बार रुद्रपाठ होता है। यह अनुष्ठान छोटा जरूर है लेकिन प्रभावशाली है और व्यक्तिगत जीवन में संतुलन लाता है।
इसे सावन के पहले और तीसरे सोमवार को किया जाए तो विशेष फल मिलता है।
अति रुद्र अनुष्ठान
इस दुर्लभ अनुष्ठान में 11 ब्राह्मण 11 बार रुद्र पाठ करते हैं, जिससे कुल मिलाकर 121 रुद्र पाठ होते हैं। इसे सावन के अंतिम सोमवार या महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर किया जाता है, जब किसी परिवार, समाज या राष्ट्र में बड़ा संकट हो।
एकादश रुद्र अनुष्ठान
भगवान शिव के 11 रूपों (महादेव, नीलकंठ, ईशान आदि) की पूजा की जाती है। हर रूप के लिए अलग द्रव्य (जैसे- दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल आदि) से अभिषेक होता है।
श्रावण कृष्ण पक्ष की दशमी या एकादशी को करना बहुत शुभ होता है।
प्रदोष व्रत अनुष्ठान
यह व्रत त्रयोदशी तिथि (शुक्ल व कृष्ण पक्ष) को किया जाता है। संध्या समय शिव की विशेष पूजा, दीपदान, व्रत व शिव कथा होती है।
सावन के महीने में दो प्रदोष व्रत आते हैं – इन दिनों रात्रि को शिवचालीसा व शिवाष्टक का पाठ कर लाभ लिया जा सकता है।
सोमवार व्रत अनुष्ठान
श्रावण के हर सोमवार को उपवास रखकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। व्रती बेलपत्र, पुष्प, धतूरा आदि अर्पित करता है और शिव स्तुति, मंत्र जाप व शिव कथा करता है।
यह अविवाहित कन्याओं के लिए उत्तम पति, विवाहितों के लिए सौभाग्य और सभी के लिए मानसिक शांति व सफलता का प्रतीक है।
पार्थिव शिवलिंग पूजा अनुष्ठान
इसमें मिट्टी, गोमय या आटे से छोटे शिवलिंग बनाकर उनकी सामूहिक या व्यक्तिगत पूजा की जाती है। इन शिवलिंगों को मंत्रों से पूजने के बाद नदी या जलस्रोत में प्रवाहित किया जाता है।
यह श्रावण अमावस्या, शिवरात्रि, या श्रावण शुक्ल अष्टमी को विशेष फलदायी होता है।
भस्म आरती अनुष्ठान
यह अनुष्ठान विशेष रूप से महाकालेश्वर उज्जैन में प्रचलित है। इसमें शिव को भस्म से सजाकर आरती की जाती है। भगवान शिव को भस्म प्रिय है, इसलिए यह पूजा उन्हें अति प्रिय मानी जाती है।
श्रावण मास में प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में यह आरती की जाती है, जिससे जीवन में रक्षा और शुद्धि प्राप्त होती है।
शिव सहस्त्रनाम पाठ अनुष्ठान
भगवान शिव के 1000 नामों का जाप करते हुए उनकी प्रतिमा या शिवलिंग का पूजन किया जाता है। यह नाम शक्ति, तपस्या और भक्ति से जुड़ी ऊर्जाओं का संचार करते हैं। श्रावण पूर्णिमा, प्रथम सोमवार या प्रदोष व्रत के दिन इसका पाठ विशेष शुभ होता है।
शिव तांडव स्तोत्र पाठ अनुष्ठान
रावण द्वारा रचित यह स्तोत्र शिव की शक्ति और नटराज रूप की स्तुति करता है। इसे पढ़ने से आत्मबल, साहस और भक्ति की अनुभूति होती है।
श्रावण के किसी भी सोमवार, विशेषकर शिवालय में एकांत में बैठकर इसका पाठ करने से विशेष कृपा मिलती है।
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नवरात्रि में भैरव/शिव पूजा अनुष्ठान
कुछ स्थानों पर शिव के भैरव रूप की पूजा नवरात्रि में भी की जाती है, खासकर अष्टमी और नवमी को। यह पूजा शक्ति, भय निवारण और रक्षण के लिए की जाती है।
सावन के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भी यह अनुष्ठान प्रभावशाली होता है।
कालसर्प दोष निवारण हेतु शिव अनुष्ठान
जिनकी कुंडली में कालसर्प योग होता है, उनके लिए विशेष रूप से रुद्र जाप, नाग पूजन और शिवलिंग पर नाग रूपी अभिषेक करने से लाभ मिलता है।
यह विशेष रूप से श्रावण अमावस्या और नाग पंचमी को किया जाता है।
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