भारत के कई ऐसे मंदिर हैं, जिनसे जुड़ी पौराणिक और प्राचीन मान्यताएं प्रचलित हैं। इसी में से एक मंदिर उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के मझौली राज क्षेत्र में स्थित दीर्घेश्वर नाथ मंदिर है, जो एक अत्यंत पावन और ऐतिहासिक शिव मंदिर है। यह शिव धाम अपने रहस्यमयी मान्यताओं और प्राचीन धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है और इसे विशेष रूप से अश्वत्थामा की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है।

पौराणिक कथा और अश्वत्थामा से जुड़ी मान्यता

महाभारत के युद्ध में जब गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, तब उन्हें भगवान शिव ने अमरता का श्रापयुक्त वरदान दिया। युद्ध समाप्त होने के बाद, अश्वत्थामा ने अपने किए पापों का प्रायश्चित करने हेतु विभिन्न स्थानों पर तपस्या की, जिनमें यह स्थान प्रमुख माना जाता है।

 

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लोकमान्यता के अनुसार, अश्वत्थामा आज भी रात्रि के समय मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं। यह विश्वास इस आधार पर और भी गहरा होता है कि जब मंदिर के पट सुबह खोले जाते हैं, तो शिवलिंग पर ताजे बेलपत्र और फूल चढ़े होते हैं, जबकि मंदिर पूरी रात बंद रहता है और वहां कोई दिखाई नहीं देता। यह रहस्य आज भी भक्तों के बीच आस्था और जिज्ञासा का विषय बना हुआ है।

मंदिर का इतिहास और निर्माण

दीर्घेश्वर नाथ मंदिर का नाम भी इसी पौराणिक कथा से जुड़ा है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने अश्वत्थामा को दीर्घायु होने का वरदान दिया था, जिससे इस मंदिर को 'दीर्घेश्वर' नाम मिला। इतिहासकारों और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर द्वापर युग से अस्तित्व में है।

 

मंदिर का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार मझौली राज परिवार की रानी श्यामसुंदरी कुंवरी ने करवाया था। इसके बाद कई संतों जैसे बंगाली बाबा, नगीना दास जी, टेंगरी दास जी और टांगुन दास जी ने इसके संरक्षण और धार्मिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया।

पार्वती सरोवर और चमत्कारी कथाएं

मंदिर परिसर में स्थित पार्वती सरोवर एक और खास आकर्षण का केंद्र है। कहा जाता है कि इस सरोवर में स्नान करने से चर्म रोगों से छुटकारा मिलता है। मान्यता है कि अश्वत्थामा इसी सरोवर से जल और कमल के फूल लेकर आते थे और भगवान शिव को सहस्त्र बार अर्पित करते थे, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दीर्घायु का वरदान दिया।

 

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पूजा-पाठ और धार्मिक आयोजनों का महत्व

यह मंदिर विशेषकर सोमवार और शुक्रवार को भक्तों से भरा रहता है। इन दिनों विशेष पूजन और अभिषेक होते हैं। सावन का महीना यहां सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव बन जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु कांवर लेकर आते हैं और शिवलिंग पर जल अर्पण करते हैं। सावन के दौरान भव्य भंडारे, कीर्तन और रात्रि जागरण होते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।