भारत की मोक्ष नागरी कहे जाने वाली वाराणसी में भगवान शिव का सातवां ज्योतिर्लिंग स्थित है, जो विश्वभर में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसकी पौराणिक कथा भी इसे अधिक विशेष बनाते हैं। आइए जानते हैं भगवान शिव के सातवें ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और यहां से जुड़ी मान्यताएं।

काशी विश्वनाथ की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक समय मां पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि उन्हें सबसे प्रिय स्थान कौन-सा है। तब भगवान शिव ने उत्तर दिया कि उन्हें काशी अत्यंत प्रिय है और वे सदा यहां निवास करते हैं। यही कारण है कि इस नगरी को ‘अविमुक्त क्षेत्र’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि यह स्थान कभी भी महादेव की कृपा से वंचित नहीं हो सकता।

 

यह भी पढ़ें: भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग: जहां भगवान शिव ने किया कुंभकर्ण के बेटे का वध

 

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव और मां पार्वती जब विवाह के पश्चात कैलाश पर्वत पर गए, तब देवी ने उनसे निवेदन किया कि वे एक ऐसा स्थान बनाएं, जहां सभी भक्त सरलता से आकर उनकी पूजा-अर्चना कर सकें। भगवान शिव ने तब काशी को अपने निवास के रूप में चुना और यहां स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। यही ज्योतिर्लिंग ‘काशी विश्वनाथ’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 

पुराणों में एक अन्य कथा मिलती है जिसमें बताया गया है कि एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव ने एक अनंत प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट होकर दोनों देवताओं से कहा कि वे इस ज्योति के अंत को खोजने का प्रयास करें। भगवान विष्णु ने नीचे की ओर जाना प्रारंभ किया, जबकि ब्रह्मा ऊपर की ओर गए। विष्णु जी ने हार मान ली लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोल दिया कि उन्होंने अंत खोज लिया है। इस असत्य के कारण भगवान शिव ने ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी पूजा पृथ्वी पर नहीं होगी। इसी प्रकाश स्तंभ के रूप में शिवजी का जो रूप प्रकट हुआ, वही ज्योतिर्लिंग कहलाया। काशी विश्वनाथ इन्हीं बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

काशी विश्वनाथ का महत्व

काशी विश्वनाथ मंदिर को मोक्ष का द्वार माना जाता है। यह मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है, जिसे अत्यंत पवित्र स्थान माना जाता है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहां आकर भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करता है, उसे जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति मिलती है।

 

स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि काशी में मृत्यु को प्राप्त करने वाला व्यक्ति स्वयं महादेव के द्वारा मोक्ष प्राप्त करता है। यही कारण है कि यहां अनेक भक्त अपने अंतिम समय में आकर बसना चाहते हैं, ताकि वे भगवान शिव के आशीर्वाद से मोक्ष प्राप्त कर सकें।

 

इसके अतिरिक्त, यह मंदिर कई ऐतिहासिक आक्रमणों का साक्षी भी रहा है। मुगल काल में इसे कई बार तोड़ा गया, लेकिन हर बार भक्तों की श्रद्धा के कारण इसे पुनः स्थापित किया गया। वर्तमान में जो मंदिर स्थित है, वह 18वीं शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा पुनर्निर्मित कराया गया था।

 

यह भी पढ़ें: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: जहां महाकाल का आभूषण है भस्म

काशी विश्वनाथ से जुड़े रहस्य

काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े कई रहस्य हैं, जो इसे और भी अद्भुत बनाते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के गर्भगृह में जो शिवलिंग स्थापित है, वह स्वयंभू है और इसके चारों ओर अनेक छोटे-छोटे शिवलिंग हैं, जो प्राकृतिक रूप से प्रकट हुए हैं। इसके साथ माना जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में एक गुप्त द्वार है, जिसे सदियों से बंद रखा गया है। इस द्वार के पीछे क्या रहस्य छिपे हैं, यह कोई नहीं जानता।

 

मंदिर का शिखर शुद्ध सोने से बना हुआ है, जिसे पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने दान किया था। कहा जाता है कि जो भी भक्त इसे देखता है, उसे विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।