सनातन धर्म में भगवान शिव आदियोगी, आदिगुरु और देवताओं के राजा आदि अनेकों अनेक के रूपों में पूजा जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में भगवान शिव को समर्पित कई मठ-मंदिरों का शास्त्रों में भी उल्लेख मिलता है। इन सबमें भगवान शिव के पंच केदारों का भी नाम शामिल हैं। यह न सिर्फ भगवान शिव को समर्पित 5 प्रसिद्ध मंदिरों का समूह है, बल्कि भगवान शिव और पांडवों से भी इन पांच केदारों का संबंध जुड़ता है।

 

क्या आप जानते हैं कि पंच केदार की स्थापना के पीछे पांडवों की गलती और भगवान शिव का क्रोध था? यह कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है और इन केदारों से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं, आइए जानते हैं-।

महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों की चिंता

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत का भयंकर युद्ध समाप्त हो चुका था। कुरुक्षेत्र की भूमि पर हजारों योद्धाओं का रक्त बह चुका था। अंत में पांडवों की जीत हुई, लेकिन इस युद्ध में उन्होंने अपने कई सगे-संबंधी, गुरुजन और न जाने कितने योद्धाओं को खो दिया था। युद्ध समाप्त होने के बाद जब पांडवों को यह एहसास हुआ कि उन्होंने अनजाने में भारी पाप कर दिया है, तो उनके मन में गहरी ग्लानि उत्पन्न हो गई।

 

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धर्मराज युधिष्ठिर इस चिंता में थे कि वे इतने भारी पाप का प्रायश्चित कैसे करें। तब ऋषि मुनियों ने उन्हें बताया कि केवल भगवान शिव ही इस पाप का प्रायश्चित कर सकते हैं और उनसे क्षमा मांगने के लिए उन्हें माहदेव की शरण में ही जाना होगा, तभी यह संभव है ।

पांडवो से क्रोधित थे भगवान शिव

महादेव भगवान महाभारत के युद्ध से बहुत नाराज थे क्योंकि यह युद्ध धर्म-अधर्म के नाम पर अपनों का ही संहार था। पांडव भगवान शिव से क्षमा मांगने के लिए पहुंचे, तब भगवान शिव पांडवों की मंशा को समझ गए और पांडव उनसे न मिल सके इसलिए वह अंतर्ध्यान होकर केदारनाथ चले गए। जब पांडवों को यह पता चला कि भगवान शिव अपने निवास स्थान पर नहीं हैं, तो वे हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी खोजबीन करने लगे।

भीम ने भगवान शिव को पहचाना

भगवान शिव ने सोचा कि यदि वह एक बैल का रूप ले लेंगे, तो पांडव उन्हें पहचान नहीं पाएंगे। लेकिन भीम काफी चतुर थे। उन्होंने अपनी विशालकाय शक्ति से दो पहाड़ों के बीच अपने पैरों को फैला दिया और बैलों के झुंड को वहां से गुजरने के लिए मजबूर कर दिया।

 

जैसे ही शिवजी बैल के रूप में वहां से जाने लगे, भीम ने उन्हें पहचान लिया और उनकी पूंछ पकड़ने की कोशिश की। महादेव इस चाल को समझ गए और तुरंत ही धरती के भीतर समाने लगे।

 

भीम ने पूरी ताकत लगाकर बैल की पूंछ पकड़ ली लेकिन भगवान शिव का शरीर पांच भागों में विभाजित होकर अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुआ। इन पांच स्थानों को ही पंच केदार के नाम से ही ख्याति प्राप्त हुई। ये वही पांच स्थान है जहां-जहां भगवान शिव पांडवों से न मिल सकें, इसलिए छुपते रहे और यहां महादेव के स्वयंभू शिवलिंग भी स्थापित है।

पंच केदार के नाम

केदारनाथ – यहां भगवान शिव की पीठ (कूबड़) प्रकट हुई।

तुंगनाथ – यहां भगवान शिव की भुजाएं प्रकट हुईं।

रुद्रनाथ – यहां भगवान शिव का मुख प्रकट हुआ।

मध्यमहेश्वर – यहां भगवान शिव का नाभि और पेट का भाग प्रकट हुआ।

कल्पेश्वर – यहां भगवान शिव की जटाएं प्रकट हुईं।

 

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भगवान शिव का पांडवों को दर्शन और आशीर्वाद

भगवान शिव की इस लीला को देखकर पांडवों को समझ आ गया कि भगवान शिव उनसे बहुत क्रोधित हैं। वे तुरंत शिवजी की भक्ति में लीन हो गए और उन्होंने घोर तपस्या शुरू कर दी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उनका पाप क्षमा कर दिया।

पंच केदार की पूजा का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार,जो भी पंच केदार की यात्रा करता है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में भी पंचकेदार के महत्व को विस्तार से बताया गया है। हालांकि, इन सबमे केदारनाथ को सबसे महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक माना जाता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भी एक हैं, जहां लाखों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता यह भी है कि इन केदारों के दर्शन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।