हिंदू धर्मग्रंथों में सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र को कलियुग का सबसे सरल और प्रभावी स्तोत्र बताया गया है। इसे 'छोटी दुर्गा सप्तशती' भी कहा जाता है, क्योंकि इसके सात श्लोकों में पूरी दुर्गा सप्तशती का सार समाहित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने स्वयं माता दुर्गा से पूछा था कि कलियुग में भक्त अपने कार्यों की सिद्धि और सभी दुखों से मुक्ति के लिए कौन-सा उपाय करें। तब माता दुर्गा ने प्रसन्नता से इन सात श्लोकों का उपदेश दिया था। यही स्तोत्र आज सप्तश्लोकी दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भय, रोग, दरिद्रता और संकटों का नाश होता है। साथ ही मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती तीनों स्वरूपों की कृपा से सुख-समृद्धि और शांति मिलती है। इसे पढ़ने से परिवार में कलह और बाधाएं दूर होती हैं, संतान और घर-परिवार की रक्षा होती है। श्रद्धालु नवरात्रि, अष्टमी, नवमी या किसी भी संकट के समय इसे विशेष रूप से पढ़ते हैं।
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शिव उवाच:
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥
भावार्थ:
भगवान शिव कहते हैं – हे देवी! आप भक्तों के लिए सहज ही प्रसन्न होने वाली हैं और सब कार्यों को सिद्ध करने की शक्ति रखने वाली हैं। अब आप कृपया कलियुग के लोगों के लिए यह बताइए कि कार्यसिद्धि के लिए कौन-सा सरल और उत्तम उपाय करना चाहिए।
देव्युवाच:
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥
भावार्थ:
माता दुर्गा भगवान शिव से कहती हैं – हे देव! सुनो, मैं आपको बताती हूं कि कलियुग में सभी कार्यों की सिद्धि और मनोवांछित फल पाने का क्या उपाय है। आपके प्रति प्रसन्नता वश, मैं अपनी इस स्तुति (दुर्गा सप्तश्लोकी) को प्रकट कर रही हूं।
विनियोग:
ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः ।
भावार्थ:
इस विनियोग का अर्थ है कि यह सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र एक मंत्र है।
इसके ऋषि नारायण हैं।
इसका छंद अनुष्टुप है।
इसमें जिन देवियों की स्तुति की गई है, वे हैं महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती।
इस स्तोत्र का पाठ मां दुर्गा की प्रसन्नता और कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र भावार्थ सहित
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥
भावार्थ:
हे भगवती! आप इतनी अद्भुत हैं कि ज्ञानीजन भी आपके मोह में पड़ जाते हैं। आप अपनी शक्ति से उनका चित्त खींचकर मोहाविष्ट कर देती हैं। यह आपकी महामाया शक्ति है, जो सबको अपने अधीन कर लेती है।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥2॥
भावार्थ:
हे दुर्गे! जब भी कोई संकटग्रस्त जीव आपको याद करता है, आप उसका भय दूर कर देती हैं। जो लोग निरोग और स्वस्थ हैं, उनके लिए भी आप स्मरण करने पर शुभ बुद्धि देती हैं। दुख, भय और दरिद्रता हरने वाली, आप जैसी उपकारी और दयालु कोई दूसरी देवी नहीं है।
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सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥3॥
भावार्थ:
आप सभी मंगलों में सर्वोत्तम मंगल देने वाली हैं। आप शिव की स्वरूपिणी हैं और सभी कार्यों को सिद्ध करने वाली हैं। त्र्यम्बका, गौरी, नारायणी आप सबकी शरण लेने योग्य हैं, आपको बार-बार प्रणाम है।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥
भावार्थ:
हे नारायणी! जो दुखी, दरिद्र और पीड़ित आपकी शरण में आते हैं, उनका परित्राण (कल्याण) करना ही आपका धर्म है। आप सबकी पीड़ा हरने वाली हैं। आपको नमन है।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥
भावार्थ:
हे दुर्गे! आप सब स्वरूपों की अधिष्ठात्री हैं, सभी की ईश्वरी हैं और सब शक्तियों से सम्पन्न हैं। हम भयभीत जनों की रक्षा कीजिए। आपको नमस्कार है।
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा
तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥
भावार्थ:
हे देवी! जब आप प्रसन्न होती हैं तो रोग और कष्ट मिटा देती हैं और भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करती हैं और जब आप अप्रसन्न होती हैं तो इच्छाएं भी बाधित हो जाती हैं लेकिन जो आपके शरणागत हैं, वे कभी नष्टित नहीं होते, वे हमेशा आपके ही आश्रित रहते हैं।
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम् ॥7॥
भावार्थ:
हे अखिलेश्वरी! आप समस्त तीनों लोकों की बाधाओं को शांति प्रदान करने वाली हैं। इसी प्रकार इस साधक के शत्रुओं का नाश करना और उसकी रक्षा करना, यह कार्य भी आपसे अपेक्षित है।
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सप्तश्लोकी दुर्गा का महत्व
- इसे 'छोटी दुर्गा सप्तशती' भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें पूरी दुर्गा सप्तशती का सार समाया है।
- सात श्लोकों में माता दुर्गा की शक्ति, करुणा और भक्तवत्सलता का गुणगान है।
- इसका पाठ कलियुग में सभी इच्छाओं की पूर्ति और कष्ट निवारण का सबसे सरल मार्ग माना गया है।
- यह स्तोत्र माता के तीन प्रमुख स्वरूपों – महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की आराधना है।
- नवरात्रि, अष्टमी, नवमी और विशेषत: संकट के समय इसे पढ़ना बहुत शुभ होता है।
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे
- भय और संकट से मुक्ति – नियमित पाठ करने से जीवन के सभी भय, शत्रु और संकट दूर होते हैं।
- दरिद्रता और दुःख का नाश – माता लक्ष्मी की कृपा से धन, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- स्वास्थ्य लाभ – रोग, पीड़ा और मानसिक क्लेश कम होते हैं, मन को शांति मिलती है।
- संतान और परिवार की रक्षा – घर-परिवार की सभी बाधाएँ मिटती हैं और संतान सुख मिलता है।
- आध्यात्मिक उन्नति – मन में भक्ति, शांति और अध्यात्म की ओर झुकाव बढ़ता है।
- सर्वकार्य सिद्धि – जिस कार्य के लिए श्रद्धा से पाठ किया जाए, वह कार्य शीघ्र ही सिद्ध होता है।
- कलियुग का सबसे सरल साधन – लंबे मंत्रों और अनुष्ठानों की जगह केवल सात श्लोकों के इस स्तोत्र से माता की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
