हिंदू धर्म में भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव की उपासना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। बता दें कि भगवान शिव की उपासना सनातन धर्म में शिवलिंग के रूप में की जाती है, जिन्हें ऊर्जा का भंडार माना जाता है। महादेव के इस दिव्य स्वरूप का विवरण न केवल धार्मिक ग्रंथों में है बल्कि विभिन्न कथाओं में भी मिलता है। आइए जानते हैं, कैसे हुई थी शिवलिंग की उत्पत्ति, आइए जानते हैं पौराणिक कथा और महत्व।

शिवलिंग के उत्पत्ति की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब इस संसार का आरंभ भी ठीक से नहीं हुआ था, तब भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच एक विचित्र विवाद हुआ था। दोनों देवता यह जानना चाहते थे कि उनमें से सबसे श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्मा जी सृष्टिकर्ता होने के कारण स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते थे, वहीं विष्णु जी अपने पालनकर्ता पद को सबसे बड़ा समझते थे। धीरे-धीरे यह विवाद इतना बढ़ा कि दोनों के बीच इस विषय पर गंभीर बहस छिड़ गई।

 

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दोनों देवताओं की यह बहस देखकर संपूर्ण ब्रह्मांड विचलित हो उठा। तब अचानक एक तेजस्वी प्रकाश पुंज प्रकट हुआ, जिसकी महिमा अपार थी। यह कोई साधारण प्रकाश नहीं था, बल्कि एक दिव्य अग्नि स्तंभ था, जिसकी न कोई सीमा थी और न ही कोई ओर-छोर। वह अनंत तक फैला हुआ था। यह खकर भगवान ब्रह्मा और विष्णु दोनों ही अचंभित रह गए। तभी आकाशवाणी हुई— 'जो भी इस अग्नि स्तंभ के आदि या अंत का पता लगा सकेगा, वही सबसे श्रेष्ठ माना जाएगा।'

 

ब्रह्मा जी तुरंत हंस का रूप धारण कर स्तंभ के ऊपरी छोर की ओर उड़ चले, जबकि भगवान विष्णु ने वाराह (सूअर) का रूप धारण कर इसकी गहराइयों में प्रवेश किया। दोनों देवता अनेकों वर्ष तक चलते रहे लेकिन इस स्तंभ का न कोई आदि मिला और न कोई अंत।

 

विष्णु जी ने अंततः अपनी हार स्वीकार कर ली और लौट आए लेकिन ब्रह्मा जी को यह स्वीकार करना कठिन लगा। उन्होंने एक चाल चली। उन्हें एक केतकी का पुष्प मिला, जो उस अग्नि स्तंभ से गिरा था। ब्रह्मा जी ने उस पुष्प से कहा कि वह झूठी गवाही दे कि उन्होंने स्तंभ का अंत देख लिया है। केतकी पुष्प ने सहमति जताई और दोनों भगवान विष्णु के पास लौटे।

 

ब्रह्मा जी ने गर्व से घोषणा की कि उन्होंने स्तंभ का शिखर देख लिया है और केतकी पुष्प ने इसकी पुष्टि की। जैसे ही उन्होंने यह झूठ कहा, उसी क्षण वह अग्नि स्तंभ फट गया और भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए। उनके मुखमंडल पर गंभीरता थी। उन्होंने ब्रह्मा जी की ओर देखा और बोले की आपने झूठ बोला है और केतकी पुष्प ने आपके झूठ की गवाही दी है। इस कारण, आज से पृथ्वी पर आपकी पूजा नहीं होगी और केतकी का पुष्प भी मेरी पूजा में निषेध रहेगा।'

 

भगवान विष्णु ने अपनी हार स्वीकार कर ली थी, इसलिए भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया आप मेरे सच्चे भक्त हैं और सृष्टि में आपकी पूजा युगों-युगों तक की जाएगी। उस दिन से भगवान शिव ने यह कहा कि वह इस अग्नि स्तंभ रूप में ही पूजे जाएंगे। यही अग्नि स्तंभ बाद में 'शिवलिंग' के रूप में प्रसिद्ध हुए। तब से शिवलिंग भगवान शिव के निराकार स्वरूप और सृष्टि के रहस्य का प्रतीक बना।

 

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शिवलिंग की महानता

आध्यात्मिक विद्वान बताते हैं कि शिवलिंग केवल एक आधा गोलाकार पत्थर नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का प्रतीक है। इसका गोलाकार आधार जीवन के पालन और विस्तार का प्रतीक है, जबकि ऊपर का अंडाकार भाग अनंत ब्रह्मांड और ऊर्जा का संकेत देता है। शिवलिंग में शिव की वह महाशक्ति समाहित होती है, जो सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार करती है।

 

शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग को जल, दूध और बेलपत्र से स्नान कराने का विशेष महत्व है। इसका कारण यह है कि शिवलिंग ऊर्जा का केंद्र होता है और इन पदार्थों से इसका शीतलता प्रदान की जाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी शिवलिंग एक उच्च ऊर्जा स्रोत माना जाता है, जो सकारात्मकता और शांति प्रदान करता है।

शिवलिंग पूजा का महत्व

इस घटना के बाद से भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाने लगी और इसे ध्यान व साधना का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग की पूजा करने से मन शुद्ध होता है, पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। शिवलिंग स्वयं सृष्टि, पालन और संहार का महानतम रहस्य है और यही शिव की महिमा का भी प्रतीक है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।