महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के वेरुल गांव में स्थित घृष्णेश्वर मंदिर न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है। इसे भगवान शिव के बारहवें और अंतिम ज्योतिर्लिंग के रूप में भी पूजा जाता है। इस मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यता, पौराणिक कथा और ऐतिहासिक महत्व इसे विशेष बनाते हैं। कहा जाता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों के सभी पापों का नाश होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
एलोरा की विश्व प्रसिद्ध गुफाओं के पास स्थित यह मंदिर भगवान शिव और देवी पार्वती की अनंत कृपा का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव यहां अपने भक्त घृष्ण की गहन भक्ति से प्रसन्न होकर ‘घृष्णेश्वर’ रूप में स्वयं प्रकट हुए थे। इसी वजह यह स्थान घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम से प्रचलित हुआ।
यह भी पढ़ें: केसरिया: वह स्तूप, जहां बुद्ध ने दिया था लिच्छवी राजवंश को अंतिम उपदेश
मंदिर से जुड़ी मान्यता
- घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की मान्यता है कि यहां भगवान शिव स्वयं "घृष्णेश्वर" (अर्थात् – करुणा या प्रेम से भरे ईश्वर) के रूप में विराजमान हैं।
- यह स्थान भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला और पापों का नाश करने वाला माना जाता है।
- यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, उसे मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त होती है।
मंदिर की विशेषताएं
स्थापत्य कला:
- यह मंदिर दक्षिण भारतीय (हैदराबादी) और मराठा शैली के सुंदर मिश्रण में बना है।
- लाल पत्थर से बना यह मंदिर अपनी नक्काशी और शिल्पकला के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
- मंदिर में लगभग 24 मीटर ऊंचा शिखर (ऊपरी भाग) है, जिस पर सुन्दर मूर्तियों की नक्काशी उकेरी गई हैं।
यह भी पढ़ें: कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है देव दीपावली, इस दिन घर में पूजा कैसे करें?
मंदिर से जुड़ा इतिहास
- मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठा साम्राज्य की रानी अहिल्याबाई होलकर ने 18वीं शताब्दी में करवाया था।
- रानी अहिल्याबाई होलकर ने ही काशी विश्वनाथ (वाराणसी) और सोमनाथ जैसे कई प्रसिद्ध शिव मंदिरों का भी पुनर्निर्माण कराया था।
मंदिर में दर्शन नियम
- मंदिर के गर्भगृह में केवल पुरुष भक्तों को प्रवेश की अनुमति है, महिलाएं गर्भगृह के द्वार तक ही दर्शन कर सकती हैं।
- यहां हर दिन शिवलिंग पर जल, बेलपत्र और दूध से अभिषेक किया जाता है।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा पुराणों में मिलती है। मंदिर से जुड़ी प्रचलित कथा के अनुसार, एक समय देवगिरी (वर्तमान दौलताबाद) नामक नगरी में एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण और उनकी पत्नी रहते थे। उनका नाम सुदर्शन और सुधा था। दोनों बहुत भक्तिमान थे लेकिन उनको कोई संतान नहीं थी। सुधा ने भगवान शिव की आराधना शुरू की और कठोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और वरदान दिया कि उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।
कहते हैं कि उसी पुत्र का नाम घृष्ण रखा गया। जब वह बड़ा हुआ, तो उसने भी भगवान शिव की उपासना शुरू की। घृष्ण की गहरी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए, जिसे आज हम घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।
मंदिर से जुड़ा धार्मिक महत्व
- घृष्णेश्वर मंदिर को भगवान शिव का बारहवां और अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
- मान्यता के अनुसार, यहां दर्शन करने से सभी पापों का नाश होता है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
- यह स्थल शिवभक्तों के लिए बहुत पवित्र माना जाता है।
मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
नजदीकी शहर:
औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजीनगर) — लगभग 30 किलोमीटर दूर।
नजदीकी रेलवे स्टेशन
- औरंगाबाद रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी बड़ा स्टेशन है।
- यहां से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
नजदीकी एयरपोर्ट
- निकटतम हवाई अड्डा -औरंगाबाद एयरपोर्ट है।
- वहां से लगभग 1 घंटे में मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग:
- औरंगाबाद से एलोरा (वेरुल) तक नियमित बसें और टैक्सियां चलती हैं।
- मंदिर एलोरा की प्रसिद्ध गुफाओं से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर है।


