वर्षों से उत्तर प्रदेश में बंद आरक्षण और जाति की सियासत एक बार फिर से गर्म हो गई है। जाति की सियासत इसलिए, क्योंकि इस बार जिस आरक्षण की बात हो रही है वह ओबीसी जातियों के बीच का है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर सामाजिक न्याय समिति लागू करने की मांग उठा दी है। उन्होंने 3 सितंबर को इसको लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को पत्र लिखा है

 

इसके अलावा उन्होंने अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल, आरजेडी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, बसपा अध्यक्ष मायावती और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद को भी पत्र भेजा है। पत्र में ओम प्रकाश राजभर ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के कार्यकाल के दौरान साल 2001 में हुकुम सिंह की अध्यक्षता में 'सामाजिक न्याय समिति' का गठन किया गया था। इसका मकसद था कि उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग को मिल रहे 27% आरक्षण में बंटवारा कर पिछड़े वर्ग की वंचित शेष सभी जातियों को भी आरक्षण का लाभ दिया जाए। समिति ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर सरकार के समक्ष प्रस्तुत की थी।

 

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सामाजिक न्याय की नई ललकार

दरअसल, मंत्री ओपी राजभर ने अपने एक्स पर कहा, 'उत्तर प्रदेश की राजनीति में सामाजिक न्याय की नई ललकार! अब समय आ गया है कि सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को तत्काल लागू किया जाए। उत्तर प्रदेश में OBC के 27% आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटकर प्रत्येक वर्ग को उसका वास्तविक हिस्सा मिले।' ऐसे में ओबीसी को मिल रहे आरक्षण में तीन हिस्सों में बांटना यूपी की राजनीति में बड़ा मास्टर स्ट्रोक हो सकता है। इससे बीजेपी को फायदा और नुकसान दोनों हो सकता है। आइए समझते हैं यह पूरा मामला क्या है...

राजभर ने क्या कहा?

मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने पिछड़ा वर्ग को तीन भागों में बांटते हुए पिछड़ा वर्ग को 7 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 9 प्रतिशत और सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग को 11 प्रतिशत आरक्षण देने की वकालत की है। राजभर ने कहा, 'यह नारा सिर्फ रिपोर्ट लागू करने के लिए नहीं है, बल्कि हर उस वर्ग की आवाज है जो अबतक विकास की धारा से महरूम रहा है, जिनका हक अन्य दूसरे लोग खा गए।'

 

 

राजभर ने कहा, 'अब हक और हिस्सेदारी का दौर शुरू होगा। अब कोई पीछे नहीं रहेगा। आइए इस लड़ाई को और मजबूत करें और न्याय की मांग को हर कोने तक पहुंचाएं। यही है सच्चा लोकतंत्र, यही है सामाजिक न्याय की ललकार है।'

क्या है आरक्षण का गणित?

जिन ओबीसी जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है उसमें- यादव, कुर्मी, कोईरी, जाट, कुम्हार, सुनार, कहार, लुहार, नाई, गड़रिया, वारी, मोची, दर्जी आदि आते हैं। इन जातियों में यादव, कुर्मी, कोईरी और जाट को 7 प्रतिशत में रखा गया है। माना जाता है कि इसमें से एक यादव जाति ही ऐसी है जो यूपी में राजनीतिक तौर पर बीजेपी के खिलाफ वोट करती है। इसके अलावा ज्यादातर ओबीसी जातियां बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों की वोटर हैं।

 

राजभर की यह मांग भले ही रोहिणी आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए है, लेकिन कहीं ना कहीं यह ओबीसी जातियों को सत्तापक्ष की ओर रिझाने की ओर भी इशारा करती है। इसके जरिए यह गैर यादव जातियों को यह बताया जा सकता है कि ओबीसी में कुछ जातियां ऐसी हैं जो अत्यंत पिछड़ों का हक मार रही हैं। ऐसे में अत्यंत पिछड़ों को समझाकर उनका वोट हासिल किया जा सकता है। हालांकि, सत्तापक्ष के लिए इसके नफा-नुकसान दोनों हैं।

 

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बीजेपी को हो सकता है नुकसान

क्योंकि जिस पिछड़ा वर्ग के लिए 7 प्रतिशत वर्गीकरण किया गया है उसमें सिर्फ अकेले यादव ही नहीं हैं- इसमें कुर्मी, जाट और कोईरी भी हैं। यादव को बहुत हद तक छोड़ दिया जाए तो वर्तमान में कुर्मी, जाट और कोईरी बीजेपी के ही वोटर हैं। ऐसे में अगर इसको 27 प्रतिशत में से हटाकर 7 प्रतिशत में डाला जाता है तो ये जातियां बीजेपी से नाराज हो सकती हैं। बीजेपी इनकी नाराजगी बिल्कुल भी नहीं झेलना चाहेगी।

गले की फांस?

मंत्री ओम प्रकाश राजभर जिसे उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई हुंकार कह रहे हैं, सामाजिक न्याय की राजनीति में मील का पत्थर बताना चाह रहे हैं, दरअसल बीजेपी के लिए वह गले की फांस बन सकती, जिसे वह न निगल सकती है न उगल सकती है। क्योंकि ओबीसी वर्ग के आरक्षण को तीन हिस्से में बांटने पर अति पिछड़ा अत्यंत पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा की जो पंक्तियां बन रही हैं, उनमें नीचे से दोनों यानी अत्यंत पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा पहले से ही बीजेपी को वोट दे रहा है।

 

अन्य पिछड़ा जिसे सुविधा संपन्न माना जा रहा है, उसमें भी गैर यादव बीजेपी को ही वोट कर रहे हैं। ऐसे में राजभर और निषाद जैसे सहयोगियों की प्रेशर पॉलिटिक्स की वजह से ही अगर उपवर्गीकरण लागू कर दिए गए तो उसमें अन्य पिछड़ा का नाराज होना तय है क्योंकि उनकी बड़ी आबादी को मात्र 7% आरक्षण दिया जाएगा।

यादव कैसे होंगे अलग-थलग?

पहली बात तो सिर्फ यादवों की आबादी 7% से ज्यादा है दूसरी बात कि सिर्फ यादव को अलग-थलग नहीं किया जा सकेगा, अन्य जातियों को जैसे जाट कुर्मी कोईरी समेत कुछ और ओबीसी जातियों को उसमें रखना पड़ेगा। लगभग 17 फीसदी आबादी, जो अपने पंख पसार चुकी है; उसे कहा जाएगा 7% में एडजस्ट कर लो तो नाराज होना लगभग तय है और राजनीतिक रूप से मुखर जातियां ही इस उपवर्गीकरण का शिकार होंगी तो राजनीतिक विरोध बहुत ज्यादा होने की संभावना है।

 

समाजवादी पार्टी अन्य पिछड़ों को थोड़ा बहुत जोड़कर इतनी सफलता पा रही है तो योगी सरकार से नाराज होने की दशा में अगर अन्य समृद्ध ओबीसी जातियों को अपने साथ कर ली तब फिर बीजेपी का और बुरा हाल हो सकता है। ऐसा न करने की दशा में राजभर और निषाद जैसे सहयोगी नाराज होंगे और करने की दशा में कुर्मी कोइरी जाट जैसे समर्पित वोटर भी।