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GDP की बढ़ती दरों के बीच IMF ने भारत को क्यों दिया 'C ग्रेड'? जानिए वजह

IMF ने भारत के GDP और नेशनल अकाउंट्स की गुणवत्ता को सी रेटिंग दी है, जबकि भारत ने 7.3 ट्रिलियन डॉलर की अनुमानित GDP के साथ खुद को सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बताया है। इस अंतर के पीछे की वजह जानिए-

Kristalina Georgieva

क्रिस्टालिना जॉर्जीवा, Photo Credit- Social Media

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अपनी रिपोर्ट में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और नेशनल अकाउंट्स यानी आंकड़ों की गुणवत्ता को सी रेटिंग दी है। वहीं दूसरी तरफ भारत ने अपनी अनुमानित GDP 7.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर बताया है। भारत सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि देश ने सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत किया है। अब इस बात पर बहस छिड़ गई है कि जब GDP के आंकड़े विकास की तरफ इशारा कर रहे हैं तो IMF ने ऐसी रेटिंग क्यों दी?

 

कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने पोस्ट कर केंद्र सरकार से सवाल किया था कि वे बताएं कि IMF ने अपनी सालाना समीक्षा रिपोर्ट में भारत के राष्ट्रीय अकाउंट्स स्टैटिस्टिक्स को सी ग्रेड में क्यों रखा है। बीजेपी ने इस बहस को सिरे से खारिज किया है।

 

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IMF की रिपोर्ट में क्या है?

26 नवंबर को IMF ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि निगरानी के लिए पर्याप्त डेटा न होने के कारण भारत को सी ग्रेड दिया गया है। रिपोर्ट में आगे कहा गया कि नेशनल अकाउंट्स के आंकड़ों की फ्रीक्वेंसी सही है और पर्याप्त बारीकी में उपलब्ध हैं लेकिन इसमें मेथाडोलॉजिकल खामियां हैं जो इसके सर्विलांस में बाधा डालती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि नॉन बैंकिंग वित्तीय संस्थान (NBFC), परिवारों और पूरे सिस्टम में वित्तीय इंटरकनेक्शन को लेकर डेटा सीमित है।

आंकड़ों में अंतर पर IMF ने कहा

IMF ने भारत और अपने आंकड़ों के बीच अंतर को लेकर एक बयान जारी किया है जिसमें भारत के अंदर इस्तेमाल किए गए आंकड़ों में खामियों का उल्लेख किया है। दरअसल IMF उपलब्ध कराए गए डेटा को चार ग्रेड्स में बांटता है।

 

पहला, निगरानी के लिए पर्याप्त डेटा यानी ए ग्रेड, दूसरा, डेटा में कुछ कमियां हैं लेकिन समग्र रूप से यह निगरानी के लिए पर्याप्त हैं। तीसरा, डेटा में कुछ कमियां हैं जो निगरानी की प्रक्रिया को कुछ हद तक प्रभावित करती हैं। चौथा, डेटा में कुछ गंभीर कमियां हैं जो निगरानी को काफी हद तक बाधित करती हैं।

 

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IMF का कहना है कि भारत सरकार जिस डेटा का इस्तेमाल करती है वह साल 2011-12 का है और यह आधार वर्ष अब प्रासंगिक नहीं रहा। इसके साथ ही भारत प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स का नहीं बल्कि होलसेल प्राइस इंडेक्स का इस्तेमाल करता है जिससे डेटा में फर्क आ सकता है।

 

बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि 2011-12 का आधार वर्ष तकनीकी मुद्दे का प्राथमिक कारण है। अमित मालवीय ने बताया कि सरकार ने घोषणा की है कि इन मुद्दों को देखने के लिए आने वाली फरवरी 2026 में 2022-23 की सीरीज में बदलाव करेगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस चीज को नजरअंदाज किया गया कि भारत को फ्रीक्वेंसी के लिए ए ग्रेड भी मिला है।

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