भारत सरकार 1 दिसंबर से शुरू होने वाली शीतकालीन सत्र में हायर एजुकेशन से जुड़ा एक अहम बिल पेश कर सकती है। शिक्षा मंत्रायलय हायर एजुकेशन काउंसिल ऑफ इंडिया (HECI) के रूप में हायर एजुकेशन के लिए एक नई बॉड का गठन करने जा रहा है। यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार की गई है। इस बिल को लाने के लिए सरकार कई सालों से प्रयास कर रही थी और अब इस बिल से एजुकेशन सिस्टम में बड़ा बदलाव होने वाला है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) भारत में हायर एजुकेशन के लिए नियम बनाती है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) तकनीकी शिक्षा, नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) टीचर एजुकेशन से जुड़े नियम बनाती है। इन तीनों का काम अलग-अलग नियम बनाना होता है। अब केंद्र सरकार NMC को छोड़कर अन्य सभी संस्थाओं को एक साथ मिलाकर एक रेगुलेटरी बॉडी बनाने जा रही है। इससे हायर एजुकेशन के लिए नियम बनाना आसान हो जाएगा। शिक्षा मंत्री ने बताया कि यह एक सख्त रेगुलेटरी बॉडी होगी।
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क्या है HECI?
HECI बिल के तहत अलग-अलग संस्थाओं (UGC, AICTE, NCTE) को खत्म कर उन्हें एक ही कमीशन में जोड़ा जाएगा। HECI का मकसद है कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी को निर्णय लेने के लिए ज्यादा फ्रीडम दी जाएगी। इससे एक पारदर्शी सिस्टम तैयार किया जाएगा। इस बिल से अब मौजूदा सिस्टम पूरी तरह बदल जाएगा। नए ढांचे से कॉलेज और यूनिवर्सिटी के कामकाज, फंडिग के तरीके भी बदल सकते हैं। इस बिल को लाने के लिए सरकार 2018 से तैयारी कर रही है। 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिशों में भी इस कमीशन का जिक्र किया गया था।
इस नए कमीशन के तीन मुख्य काम होंगे। इन कामों में कॉलेजों को मान्यता देना, पढ़ाई के स्तर और गुणवत्ता के लिए नियम बनाना। हालांकि, इस कमीशन के पास फंडीग का अधिकार नहीं होगा। फंडिग का अधिकार् सरकार के अलग-अलग विभागों के पास ही रहेगी। इस कमीशन से मेडिकल और लॉ की पढ़ाई को बाहर रखा गया है।
अब तक किए गए प्रयास
केंद्र सरकार कई सालों से इस बिल को लाने की दिशा में काम कर रही है। साल 2018 में सरकार ने इस बिल को लाने का प्रयास किया था। उस बिल में व्यवस्था को सरल बनाने की बात की गई थी लेकिन फंडिग का अधिकार HECI को नहीं दिया गया था। उस बिल के अनुसार, केंद्र सरकार को पहले की तुलना में हायर एजुकेशन को लेकर ज्यादा शक्तियां दी गई थी। उस समय शिक्षा जगत से जुड़े लोगों ने इस बिल का विरोध किया था। साल 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में फिर से इस तरह की बॉडी बनाने की बात की गई थी। 2021 में इस दिशा में नए सिरे से प्रयास शुरू किए गए। संसद के मानसून सत्र में भी इस बिल को लाने की चर्चा थी लेकिन अंतिम समय में सरकार ने अपना प्लान बदल लिया था।
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विरोध का कारण
2018 से ही इस बिल पर बार-बार चर्चा हो रही है। कई राज्यों ने इस बिल का विरोध इसलिए किया था क्योंकि इसमें केंद्र सरकार की भूमिका ज्यादा दी गई थी। विपक्षी दलों ने ज्यादा केंद्रीयकरण का डर जताते हुए राज्यों ने आशंका जताई थी कि राज्यों की भूमिका कम हो जाएगी और केंद्र सरकार का नियंत्रण बढ़ जाएगा। इस बिल को लेकर कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह के नेतृत्तव में बनी संसदीय समिति चिंता जाहिर कर चुकी है। समिति ने कहा था कि UGC जैसी संस्थाओं को खत्म कर देने से एजुकेशन सिस्टम में असंतुल पैदा होगा और इसके साथ ही निजीकरण को भी बढ़ावा मिलेगा। शिक्षा जगत से जुड़े कई लोग सरकार की मंशा पर सवाल उठा चुके हैं।