अरवल: हर बार मुश्किल रही NDA की राह, इस बार क्या उम्मीद है?
बिहार का अरवल जिला, राज्य के सबसे नए जिलों में से एक है। यह महागठन की पार्टियां बीते कुछ चुनावों से हावी हैं। एनडीए के लिए यहां लगातार चुनौती बनी हुई है।

अरवल। (Photo Credit: Khabargaon)
बिहार के 38 जिलों में से एक जिला है अरवल। यह पहले जहानाबाद जिले का हिस्सा था, 20 अगस्त 2001 को यह जहानाबाद से अलग होकर नया जिला बना। यह मगध मंडल के अंतर्गत आता है। यहां एक उप मंडल और 5 प्रखंड हैं। अरवल, कलेर, करपी, कुर्था और बंशी को मिलाकर यह जिला बना है। जिले में एक लोकसभा सीट और दो विधानसभाएं हैं। एक जमाने में यह इलाका, नक्सलवाद का गढ़ रहा, अब नक्सलवाद यहां खत्म हो गया है।
जहानाबाद संसदीय क्षेत्र से राष्ट्रीय जनता दल के नेता सुरेंद्र प्रसाद यादव सांसद हैं। अरवल विधानसभा से CPI (ML) के महानंद सिंह और कुर्था से आरजेडी के बागी कुमार वर्मा विधायक हैं। दोनों दलों पर इंडिया गठबंधन काबिज है। नए दौर में भी एनडीए के लिए चुनौतियां कम नहीं हुईं हैं।
पटना से करीब 64 किलोमीटर दूर इस जिले में पटना का प्रभाव जरा भी नहीं है। यहां का सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन भी पटना ही है। यह जिला जहानाबाद, औरंगाबाद, पटना और भोजपुर से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है। यह बिहार के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है। यहां की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। यहां धान, गेहूं और मक्के की खेती होती है, कोई बड़ा उद्योग नहीं है, इसलिए इस बार विधानसभा चुनाव में भी यही मुद्दा गूंज रहा है।
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जहानाबाद से कैसे अलग हुआ अरवल
अरवल, जहानाबाद का अनुमंडल हुआ करता था। यहां नक्सलवाद की समस्या हावी थी। वर्ग संघर्ष और अपराध चरम पर था। यहीं शंकर विगहा नरसंहार हुआ था। स्थानीय लोग अरसे से बेहतर प्रशासन के लिए अलग जिले की मांग कर रहे थे। साल 2001 में इसे जिले का दर्जा दिया गया। यह अभी पिछड़े जिलों में शुमार है।
राजनीति समीकरण
राजनीतिक नजरिए से यह सीट हमेशा बीजेपी और दक्षिणपंथी पार्टियों के लिए चुनौती रही। जहानाबाद लोकसभा सीट में 1957 से कांग्रेस, सीपीआई, जनता पार्टी और आरजेडीजैसे दलों का दबदबा रहा है। यहां एनडीए हमेशा संघर्ष करते ही नजर आई है। इस बार भी समीकरण वैसे ही बन रहे हैं। संसदीय क्षेत्र जहानाबाद, अरवल में ही आता है।
यहां साल 1957 और 1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली, अगले दो चुनावों में CPI जीती, फिर कांग्रेस और 1984 से लेकर 1996 तक यहां सिर्फ CPI के सांसद रामाश्रय प्रसाद सिंह चुने जाते रहे। 1998 में आरजेडी के सुरेंद्र प्रसाद यादव जीते। 1999 में जेडीयू के अरुण कुमार, 2008 में जेडूयी के जगदीश कुमार, 2014 में फिर अरुण कुमार, 2019 में जेडूयी के चंद्रेश्वर प्रसाद और फिर 2024 में आरजेडी के सुरेंद्र प्रसाद यादव जीते। यहां लोकसभा में हमेशा एनडीए के लिए चुनौती रही।
अरवल और कुर्था विधानसभा का भी हाल कुछ ऐसा ही है। यहां कांटे की टक्कर होती है, कभी जेडीयू जीतती है, कभी आरजेडी। बीजेपी यहां कभी जड़ जमा नहीं पाई। यह सीट, बीजेपी की सहयोगी पार्टियों के हिस्से आई, यहां बीजेपी के हिस्से कामयाबी नहीं आई। 2020 के चुनाव में समीकरण पूरी तरह से महागठबंधन के पक्ष में ही चले गए।
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विधानसभा सीटें:-
- अरवल: अरवल विधानसभा सीट साल 1951 में अस्तित्व में आई थी। यहां पहली बार गुदानी सिंह यादव विधायक चुने गए थे। वह सोशलिस्ट पार्ट से थे। 1957 और 62 के चुनाव में कांग्रेस के बूढ़न महतो जीते। 1962 के बाद से कांग्रेस यहां कभी नहीं जीती। अब तक कुल 17 चुनाव यहां हो चुके हैं। 4 बार निर्दलीय प्रत्याशी जीते। कांग्रेस, आरजेडी, भाकपा और एलजेपी को दो-दो बार जीत मिली। अरवल विधानसभा की सीट संख्या 214 है। यह एक जमाने में माओवाद प्रभावित इलाका था। यह कृष्ण नंदन प्रसाद सिंह का गढ़ रहा है, 1980, 85 और 1990 के चुनाव में वह निर्दलीय ही चुनाव जीते थे। साल 1995 में जनता दल के रवींद्र सिंह कुशवाहा, 2000 में आरजेडी के अखिलेश प्रसाद सिंह और 2005 के चुनाव में यहां से दुलारचंद सिंह यादव जीते। 2010 में बीजेपी के चितरंजन कुमार पहली बार जीते। 2015 के चनाव में रविंद्र सिंह कुशवाहा फिर जीते और अब लेफ्ट के महा नंद सिंह यहां से विधायक हैं। वह CPI (ML) से विधायक हैं। बीजेपी ने इस सीट से मनोज शर्मा को उतारा है।
- कुर्था: कुर्था विधानसभा साल 1951 में अस्तित्व में आई थी। पहली बार 1952 में चुनाव हुए और सोशलिस्ट पार्टी की जीत हुई। यहां साल 1957 में पहली बार कांग्रेस को जीत मिली। 1972 के बाद से किसी भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नहीं जीत पाई। जनता दल और आरजेडी को दो-दो बार कामयाबी मिली। सबसे अधिक तीन बार जेडीयू को जीत मिली. इसके अलावा सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, शोषित दल, शोषित समाज दल, जनता पार्टी, निर्दलीय और एलजेपी को एक-एक बार जीत मिली। जगदेव प्रसाद, रामचरण सिंह यादव, सहदेव प्रसाद यादव, सुचित्रा सिन्हा और सत्यदेव सिंह दो-दो बार विधायक बने। एनडीए की ओर से जेडीयू के पुष्प कुमार वर्मा चुनावी मैदान में हैं।
अरवल में कब वोटिंग है?
अरवल में 11 नवंबर को चुनाव होगा। 2 विधानसभा सीटों पर 5,23,830 मतदाता हैं।
जिले का प्रोफाइल
अरवल की आबादी 700843 है। 51849 लोग ही सिर्फ शहरों में रहते हैं। यहां सोन नदी का प्रभाव है। अरवल जिला 634.23 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यहां 5 प्रखंड हैं, 335 गांव हैं। 11 पुलिस स्टेशन हैं।
- आबादी: 700,843
- लिंगानुपात: 1000 पुरुषों पर 928 महिलाएं
- विधानसभा: 2
- अरवल- महानंद किशोर सिंह, CPI ML
- कुर्था- बागी कुमार वर्मा, RJD
- लोकसभा: 1
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