अरवल विधानसभा के अलावा जिला भी है। सामान्य श्रेणी की इस विधानसभा सीट पर वाम दलों का खूब प्रभाव देखने को मिलता है। यहां की जनता ने निर्दलियों के साथ-साथ समाजवादी विचारधारा के दलों पर भी भरोसा जताया। यह विधानसभा सीट जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। कभी अरवल जिला रेड कॉरिडोर का हिस्सा था। यहां के गांवों तक में नक्सलवाद का प्रभाव देखने को मिलता था। हालांकि मौजूदा समय में हालात पूरी तरह बदल चुके हैं।
साल 2001 में जहानाबाद से अलग करके बिहार सरकार ने अरवल नाम का नया जिला बनाया। यह बिहार का सबसे कम जनसंख्या वाला तीसरा जिला है। सोन नदी के किनारे बसे होने के कारण यहां की मिट्टी उपजाऊ है। लोगों का जीवन खेती-किसानी पर निर्भर है। स्थानीय स्तर पर बड़े उद्योग और रोजगार का अभाव है। कामकाज की तलाश में लोगों को अन्य प्रदेशों का रुख करना पड़ता है।
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मौजूदा समीकरण
अरवल विधानसभा में कुल 2,51,657 पंजीकृत मतदाता हैं। यहां अनुसूचित जातियां काफी प्रभावशाली हैं। करीब 21.23 फीसद मतदाता इसी समुदाय से हैं। इतनी बड़ी हिस्सेदारी किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखती है। मुस्लिम वोटर्स लगभग 9.4 फीसद हैं। पासवान समुदाय की हिस्सेदारी 6.4 प्रतिशत है। अगर यादव समुदाय की बात करें तो उनकी हिस्सेदारी 4.7 फीसद है। विधानसभा क्षेत्र की अधिकांश आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती हैं। आंकड़ों के मुताबिक 85.27 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण और 14.73 फीसद वोटर्स शहरी क्षेत्र में रहते हैं।
2020 चुनाव का रिजल्ट
पिछले चु्नाव में अरवल विधानसभा सीट से कुल 23 उम्मीदवार मैदान में थे। बीजेपी ने दीपक कुमार शर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया था। उनके सामने सीपीआई (माले) ने महा नंद सिंह को उतारा। बीजेपी प्रत्याशी को कुल 48,336 वोट मिले। वहीं महा नंद सिंह के खाते में 68,286 मत आए। सीपीआई (माले) प्रत्याशी ने 19,950 मतों से चुनाव अपने नाम किया। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के सुभाष चंद्र यादव को सिर्फ 7,941 वोट मिले। 23 में से 21 प्रत्याशियों को अपनी जमानत तक गंवानी पड़ी।
मौजूदा विधायक का परिचय
अरवल के मौजूदा विधायक महा नंद सिंह की गिनती भाकपा माले के पुराने नेताओं में होती हैं। वे मूलरूप से पटना जिले के कौरी गांव के रहने वाले थे। 2020 में पार्टी ने टिकट दिया तो बीजेपी उम्मीदवार को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे। विधायक बनने से पहले महा नंद सिंह पार्टी के अरवल जिला सचिव थे। इसी साल एक 24 साल पुराने मामले में अदालत ने उन्हें जेल भेजा था। 2020 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक विधायक महा नंद सिंह के पास 23 लाख रुपये से अधिक की संपत्ति और कोई कर्ज नहीं है। सामाजिक कार्य और खेती-किसानी को अपना पेशा बता रखा है। उनके खिलाफ तीन आपराधिक मामले भी दर्ज हैं।
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विधानसभा सीट का इतिहास
साल 1951 में विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। उस वक्त जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी तब अरवल का पहला विधानसभा चुनाव सोशलिस्ट पार्टी ने जीता था। बिहार की अन्य विधानसभा की तरह अरवल में कांग्रेस का करिश्मा नहीं चला। यहां पार्टी सिर्फ दो बार ही जीत सकी। 1962 के बाद से कांग्रेस को अपनी तीसरी जीत की तलाश है। अब तक कुल 17 चुनाव हो चुके हैं। सबसे अधिक चार बार निर्दलीय प्रत्याशियों पर अरवल की जनता ने भरोसा जताया। कांग्रेस, आरजेडी, भाकपा और एलजेपी को दो-दो बार जीत मिली।
सोशलिस्ट पार्टी, बीजेपी, जनता दल और जनता पार्टी को एक-एक बार फतेह मिली। 1980 से 1995 तक अरवल विधानसभा सीट पर कृष्णानंदन प्रसाद सिंह का दबदबा रहा है। उन्होंने लगातार तीन बार बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीता। बुधन मेहता, शाह जोहैर, रविन्द्र सिंह कुशवाहा और दुलारचंद सिंह यादव यहां से दो-दो बार विधायक रहे।
अरवल विधानसभा: कब-कौन जीता?
वर्ष |
विजेता |
दल |
1952 |
गुदानी सिंह यादव |
सोशलिस्ट पार्टी |
1957 |
बुधन मेहता |
कांग्रेस |
1962 |
बुधन मेहता |
कांग्रेस |
1967 |
शाह जोहैर |
सीपीआई |
1969 |
शाह जोहैर |
सीपीआई |
1972 |
रंग बहादुर सिंह |
निर्दलीय |
1977 |
बनेश्वर प्रसाद सिंह |
जनता पार्टी |
1980 |
कृष्ण नंदन प्रसाद सिंह |
निर्दलीय |
1985 |
कृष्ण नंदन प्रसाद सिंह |
निर्दलीय |
1990 |
कृष्ण नंदन प्रसाद सिंह |
निर्दलीय |
1995 |
रविन्द्र सिंह कुशवाहा |
जनता दल |
2000 |
अखिलेश प्रसाद सिंह |
आरजेडी |
2005 (फरवरी) |
दुलारचंद सिंह यादव |
एलजेपी |
2005 (नवंबर) |
दुलारचंद सिंह यादव |
एलजेपी |
2010 |
चितरंजन कुमार |
बीजेपी |
2015 |
रविन्द्र सिंह कुशवाहा |
आरजेडी |
2020 |
महा नंद सिंह |
सीपीआई (माले)
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