बाराचट्टी विधानसभा: मांझी के गढ़ में सेंध लगा पाएगा महागठंधन?
कभी नक्सल प्रभावित रहे इस क्षेत्र से लड़ने के लिए इस बार CPI (माले) भी अपना भरपूर जोर लगा रही है। दूसरी तरफ जीतनराम मांझी को भरोसा है कि उनके परिवार को यह सीट जीतने में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी।

बाराचट्टी विधानसभा, Photo Credit: Khabargaon
झारखंड और बिहार की सीमा पर बसे गयाजी जिले की बाराचट्टी विधानसभा उन क्षेत्रों में गिनी जाती है जो नक्सल प्रभावित रहे हैं। लंबे समय तक यहां वोटिंग कर पाना ही बड़ी चुनौती था क्योंकि नक्सली अक्सर वोटिंग का बहिष्कार करते और लोगों को धमकी देते थे। नतीजा होता कि यहां वोटिंग बहुत कम होती थी। अब हालात बदल गए हैं और स्थिति शांतिपूर्ण रही है। ज्यादातर ग्रामीण आबादी वाले इस विधानसभा क्षेत्र में आज भी कई ऐसे गांव हैं जहां से हर दिन सवारी गाड़ियां भी नहीं मिलती हैं।
बिहार की बोधगया, शेरघाटी, गुरुआ, बेलगंज और गया टाउन जैसी विधानसभा सीटों की बाउंड्री से सटी बाराचट्टी विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसकी सीमाएं झारखंड के चतरा और हजारीबाग क्षेत्रों से लगती है। ये इलाके पूर्व में नक्सल प्रभावित रहे हैं।
साल 2005 के फरवरी महीने में बाराचट्टी में ही वेंकैया नायडू के हेलिकॉप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग करानी पड़ी थी और नक्सलियों ने उनके हेलिकॉप्टर पर पेट्रोल डालकर फूंक दिया था। गनीमत रही थी कि राजेंद्र साव ने वेंकैया नायडू को वहां से अपनी बाइक पर बिठाकर पुलिस स्टेशन तक पहुंच गया था और उनकी जान बच गई थी।
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मौजूदा समीकरण
NDA गठबंधन में यह सीट एक बार फिर से हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (HAM) के ही खाते में गई है। इसी सीट से HAM की ही ज्योति देवी विधायक हैं और पूरी उम्मीद है कि वही एक बार फिर से यहां से चुनाव लड़ेंगी। अगर वही यहां से चुनाव लड़ती हैं तो विपक्ष के सामने चुनौती होगी कि वह जीतन राम मांझी को उनके गढ़ में पटखनी दे पाए। भले ही समता देवी पिछला चुनाव हार गई हों लेकिन अभी भी वह अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं और टिकट के लिए आरजेडी के संपर्क में हैं।
इस विधानसभा सीट से जन सुराज ने इंजीनियर हेमंत पासवान को टिकट देकर मामले को रोमांचक बनाने की कोशिश की है। इसी सीट से जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के अध्यक्ष रहे धनंजय भी लेफ्ट के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। अब देखना यह है कि आखिर यह किस पार्टी के हिस्से में जाती है। विपक्ष के लिए एक राहत की बात यह है कि चुनाव दर चुनाव यहां जीत-हार का अंतर कम होता जा रहा है।
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2020 में क्या हुआ था?
2015 में इस सीट पर लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल का मुकाबला हुआ था और आरजेडी ने जीत हासिल की थी। 2020 में गठबंधन में सीटों का बंटवारा हुआ और एलजेपी इस गठबंधन से बाहर थी तो जीतन राम मांझी यह सीट अपने पाले में करने में कामयाब रहे। यहां से उतारा गया पूर्व विधायक और जीतन राम मांझी की समधन ज्योति देवी को। ज्योति देवी जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन की सासू मां और दीपा मांझी की मां हैं।
आरजेडी ने अपनी ओर से एक बार फिर समता देवी को चुनाव लड़ाया। समता देवी तब मौजूदा विधायक थीं और पहल भी आरजेडी के टिकट पर इसी सीट से विधा यक रह चुकी थीं। इसी सीट से चिराग पासवान की एलजेपी ने रेणुका देवी को टिकट देकर चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की। हालांकि, नतीजे इस बार एनडीए के पक्ष में रहे। ज्योति देवी को 72,491 वोट मिले और वह चुनाव जीत गईं। समता देवी को कुल 66,173 वोट मिले और एलजेपी की रेणुका देवी को सिर्फ 11,244 वोट ही मिले।
विधायक का परिचय
रिश्ते में जीतन राम मांझी की समधन ज्योति देवी इसी सीट से दो बार विधायक बनी हैं। 2010 में वह जेडीयू के टिकट पर जीती थीं। 2015 में वह चुनाव नहीं लड़ीं और 2020 में HAM टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बनीं।
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2023 में वह खूब चर्चा में आई थीं क्योंकि तब वह अपने क्षेत्र के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने बेटे की संस्था में सहयोग कर रही थीं। उनके बेटे रूपक कुमार ने 'बाल ज्योति फाउंडेशन' नाम की संस्था शुरू की थी जिसमें महिलाओं को सिलाई और कताई-बुनाई जैसे काम सिखाकर उन्हें रोजगार मुहैया कराया जाता था।
2020 के चुनावी हलफनामे में ज्योति देवी ने कुल 17.68 लाख रुपये की संपत्ति घोषित की थी और उनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा नहीं दर्ज था। तब ज्योति देवी ने बताया था कि वह 10वीं तक पढ़ी हैं।
विधानसभा का इतिहास
अगर पिछले 3 दशक का इतिहास देखें तो यह सीट मांझी परिवार की वजह से चर्चा में रही है। इसी सीट से भगवती देवी विधानसभा पहुंची थीं। भगवती देवी एक समय पर पत्थर तोड़कर अपना घर चलाती थीं लेकिन पहले राममनोहर लोहिया और फिर लालू यादव उन्हें राजनीति में लाते रहे। भगवती देवी के बाद उनके बेटे विजय मांझी भी इसी सीट से विधायक रह चुके हैं। जीतन राम खुद इसी सीट से दो बार विधानसभा का चुनाव जीते। उनकी समधन यानी ज्योति देवी भी इसी सीट से दो बार विधायक बनीं। इसी सीट से दो बार विधायक बनीं समता देवी उन्हीं भगवती देवी की बेटी हैं। यानी मांझी परिवार के अलावा इस सीट पर भगवती देवी परिवार का भी दबदबा रहा है।
1957-श्रीधर नारायण- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
1962-मुश्ताक अली खान-स्वतंत्र पार्टी
1967-विष्णु चरण भारती-कांग्रेस
1969-भगवती देवी-संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1972-मोहन राम-कांग्रेस
1977-भगवती देवी-जनता पार्टी
1980-जी एस रामचंद्र दास-कांग्रेस
1985-जी एस रामचंद्र दास-कांग्रेस
1990-उमेश सिंह- इंडिपेंडेंट पीपल्स फ्रंट
1995-भगवती देवी-जनता दल
1996-जीतन राम मांझी-जनता दल(उपचुनाव)
2000-भगवती देवी-RJD
2003-समता देवी-RJD (उपचुनाव)
2005-विजय मांझी-RJD
2005-जीतन राम मांझी-JDU
2010-ज्योति देवी-JDU
2015-समता देवी-RJD
2020-ज्योति देवी-HAM
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