बिहार: छोटी पार्टियां, बड़ी टेंशन, गठबंधन में BJP की मुश्किलें क्या?
बिहार में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन धर्म में है। JDU, बीजेपी के बाद गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है। गठबंधन के छोटे दलों की वजह से सीट बंटवारे पर अभी तक कुछ तय नहीं हो पाया है।

बिहार विधानसभा चुनाव। (AI Image।Photo Credit: Sora)
बिहार के सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए में अभी तक सीट शेयरिंग पर बात नहीं बन पाई है। हर पार्टी, लोकसभा चुनाव में आए नतीजों के बाद से ज्यादा सीटें चाहती है। जीतन राम मांझी हों या चिराग पासवान, सबकी मांग है कि गठबंधन में ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलें। सीटों का बंटवारा इस हद तक उलझा है कि अभी तक, अलग-अलग राजनीतिक दलों की एक साथ बैठक भी नहीं हो पाई है। जीतन राम मांझी और चिराग पासवान, दोनों नेता अपनी महत्वाकाक्षों के बारे में सार्वजनिक तौर पर बता चुके हैं। जीतन राम मांझी कम से कम 15 से 20 सीटें चाहते हैं, चिराग पासवान 25 से 40 सीटों की मांग कर रहे हैं। बिहार की राजनीति से जुड़े जानकारों का दावा है कि नीतीश कुमार, अपनी सीटें कम करने के लिए तैयार नहीं हैं।
बिहार में जेडीयू कवर करने वाले पत्रकारों का कहना है कि नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में संतोष किया था, बड़े मंत्रालयों से पार्टी दूर रही, जिसकी भरपाई जेडीयू बिहार चुनाव में करेगी। विधानसभा चुनावों में बीजेपी से कम सीटें लेने के लिए जेडीयू तैयार नहीं है। अब अगर गठबंधन के सहयोगी दलों को सीटें दी जाएंगी तो बीजेपी को अपने खाते से ही समझौता करना होगा। नीतीश कुमार, मोदी सरकार की जमकर तारीफ तो कर रहे हैं लेकिन अपनी मांगों को लेकर बेहद स्पष्ट हैं।
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एक नजर, बिहार में NDA के विधायकों पर
बिहार विधानसभा में 243 विधानसभा सीटें हैं। साल 2020 के चुनाव में 74 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी जीती थी, 43 सीटों पर जनता दल यूनाइटेड। चुनाव पूर्ण गठबंधन था, चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर ही लड़ा गया था तो मुख्यमंत्री भी वही बने। जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाले दल हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के 4 विधायक हैं। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) से एक विधायक हैं। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के पास एक भी विधायक नहीं हैं। इस दल के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा हैं।
सीट शेयरिंग पर इंडिया ब्लॉक और NDA की तैयारी क्या है?
बिहार में अब विधानसभा चुनाव बेहद नजदीक हैं। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची संशोधन (SIR) की प्रक्रिया पूरी कर ली है। अगले सप्ताह चुनाव आयोग के अधिकारी बिहार जाने वाले हैं। चुनाव की तारीखों का एलान भी हो सकता है। बिहार में चुनाव आयोग से इतर, राजनीतिक पार्टियों ने भी अपनी तैयारियां शुरू कर दीं हैं। राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' में इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था, तेजस्वी यादव की 'बिहार अधिकार यात्रा' के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इंडिया गठबंधन की सक्रियता के बीच एनडीए खेमे में क्या हो रहा है, इस पर सबकी नजरें टिकीं हैं।
न तो इंडिया ब्लॉक में सीटों का बंटवारा हो पाया है न तो इंडिया ब्लॉक में। इंडिया ब्लॉक में सीट बंटवारे की तस्वीर काफी हद तक साफ है। लेफ्ट, कांग्रेस और जनता दल यूनाइटेड प्रमुख पार्टियां हैं। मुकेश सहनी की विकाश सील इंसान पार्टी (VIP) भी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा है। अगर मौजूदा समीकरण देखें तो लेफ्ट के पास 12 सीटें, आरजेडी के पास 75 सीटें, कांग्रेस के पास 19 सीटें हैं। अभी तक इस पार्टी के बीच सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई है।
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साल 2020 में DNA का सीट बंटवारा, अब क्या चाहिए?
बिहार में कुल सीटें: 243
- भारतीय जनता पार्टी: 110 सीट
2025 में मांग: 120+ - जनता दल यूनाइटेड: 115 सीट
2025 में मांग: 120+ - हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा: 7 सीट
2025 में मांग: 15+ - लोक जनशक्ति पार्टी (RV): 137 (2020 में यह पार्टी, किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं थी)
2025 में मांग: 40+
नोट: जीतन राम मांझी को छोड़कर किसी ने स्पष्ट तौर पर सीटों के बारे में नहीं बात की है। इन दलों के कई नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर बयान दिए हैं, बयान अध्यक्ष और राष्ट्रीय प्रवक्ताओं की तरफ से नहीं आए हैं।
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NDA में अटक कहां रही है बात? 5 फैक्टर
- जीतन राम मांझी: गठबंधन का अहम चेहरा हैं, केंद्रीय मंत्री हैं। उनके पास सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय है। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के वह मुखिया हैं। उनकी मांग है कि कम से कम 15 से 20 सीटें दी जाएं। उनकी पार्टी साल 2015 में स्थापित हुई थी। दो विधानसभा, 2 लोक सभा चुनाव बीत गए, अब भी पार्टी से निबंधित पार्टी का टैग हटा नहीं है। वह अपनी पार्टी की मान्यता चाहते हैं। उनका कहना है कि बिहार में मान्यता प्राप्त पार्टी होने के लिए कम से कम 8 सीटें या 6 प्रतिशत वोट चाहिए। यह तभी होगा, जब सीटें बढ़ाई जाएंगी। उनकी मांग भी एनडीए में सीट बंटवारे को और टाल रहा है।
- चिराग पासवान: केंद्रीय मंत्री हैं, एनडीए गठबंधन का युवा चेहरा हैं। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के पास लोकसभा में 5 और विधानसभा में 1 सीट है। 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की सफलता दर 100 फीसदी रही। चिराग पासवान, युवा बिहारी की राजनीति करते हैं। उनके जीजा अरुण भारती कह चुके हैं कि 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था, ऐसे में सीट बंटवारा सम्मानजनक होना चाहिए। चिराग पासवान, अपनी पार्टी का विस्तार चाह रहे हैं, उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। बिहार में खुद को मजबूत करने के लिए वह ज्यादा सीटें चाहेंगे, बात यहीं अटक रही है। अभी तक चिराग ने खुद कुछ नहीं कहा है लेकिन वह यह जता चुके हैं उन्हें सम्मानजनक हिस्सेदारी चाहिए। चिराग पासवान की पार्टी 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश से अनबन के बाद 137 सीटों पर स्वतंत्र चुनाव लड़ चुकी है। पार्टी का वोट शेयर बढ़ा था, भले ही सिर्फ 1 विधायक जीता हो। पार्टी ने जेडीयू को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया था।
- उपेंद्र कुशवाहा: राष्ट्रीय लोक समता पार्टी सफलता के लिए तरस रही है। उन्होंने बीजेपी में इस पार्टी का विलय किया था, फिर राष्ट्रीय लोक मोर्चा नाम से नई पार्टी बनाई। साल 2020 से लेकर 2025 तक, पार्टी हार का मुंह देखती रही। पार्टी के एक भी विधायक नहीं है फिर भी उपेंद्र कुशवाहा ज्यादा सीटें चाहते हैं। वह खुद काराकाट लोकसभा सीट से चुनाव हार चुके हैं। उपेंद्र कुशवाहा अपने लिए 8 से 10 सीटें चाह रहे हैं। एनडीए में पहले से ही एक-एक सीट के लिए मारामारी मची है, ऐसे में सीट बंटवारे में देरी की एक वजह यह भी मानी जा रही है। वह पहले ही इशारा कर चुके हैं कि एनडीए को उन्हें साथ लेकर ही चलना होगा।

- JDU और BJP की खींचतान: साल 2020 के चुनाव में बीजेपी के खाते में 110 सीटें आईं थीं, जेडीयू के 115। 7 सीट पर हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और 11 सीटों पर VIP ने उम्मीदवार उतारे थे। VIP अब एनडीए गठबंधन का हिस्सा नहीं है। नतीजे जेडीयू बहुत अच्छे नहीं रहे। सिर्फ 43 सीटों पर जीत मिली। बीजेपी को 74 सीटों पर जीत मिली। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को 5 सीटों पर और VIP को 4 सीटों पर जीत मिली थी। जानकारों का कहना है कि बीजेपी इस प्रदर्शन के आधार पर चाहती है कि उसे जेडीयू से ज्यादा सीटें मिलें, जेडीयू कम सीटों के लिए तैयार नहीं है। 2024 में बीजेपी के सहयोगी दलों का प्रदर्शन अच्छा रहा है, ऐसे में दबाव भी है कि ज्यादा सीटें उन्हें दी जाएं। सीट बंटवारे में देरी की एक वजह यह भी मानी जा रही है।
- दलित वोट की होड़ और दो बड़े नेता: चिराग पासवान और जीतन राम मांझी, इस गठबंधन के दो प्रमुख चेहरे हैं, जिनका कोर वोट बैंक बहुत मजबूत है। चिराग पासवान ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 43 से ज्यादा सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था। 2024 के लोकसभा चुनाव में सफलता दर 100 फीसदी रही है, ऐसे में चिराग ज्यादा सीटों की डिमांड कर रहे हैं। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के साथ भी यही है। लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) पासवान समुदाय की पार्टी कही जाती है। 2 अक्तूबर 2023 में बिहार सरकार ने जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए थे। उसमें बिहार की जनसंख्या इस समुदाय की आबादी 5.23 प्रतिशत है।
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के मुखिया जीतन राम मांझी मुसहर समाज से हैं। वह महादलित समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। इस समुदाय की आबादी करीब 3 प्रतिशत है। सारी कवायद, 8 प्रतिशत वोट बैंक को साधने की है। दोनों नेताओं का असर, दलित समुदाय के दूसरे वर्गों पर भी है। ऐसे में एनडीए गठबंधन दोनों नेताओं को नाराज भी नहीं करना चाहता है। अभी तक सीट बंटवारे पर राज्य स्तरीय बैठकें नहीं हुईं हैं। सभी दल, अपनी-अपनी ओर से प्रेशर पॉलिटिक्स खेल रहे हैं।
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