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प्राणपुर विधानसभा: क्या 15 साल बाद BJP को हरा पाएगा महागठबंधन?

1977 में बनी प्राणपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस औऱ BJP में कांटे की टक्कर है। पिछली बार अगर निर्दलीय प्रत्याशी ने खेल नहीं बिगाड़ा होता तो सीट कांग्रेस के पाले में जाती।

pranpur assembly seat bihar

प्राणपुर विधानसभा सीट, Photo Credit- KhabarGaon

बिहार की प्राणपुर विधानसभा सीट पर पहला चुनाव इमरजेंसी हटने के ठीक बाद हुआ। इस सीट ने पार्टियों के प्रति वफादारी भी निभाई और लोगों की जरूरतों के मुताबिक पलटी भी मारी है। प्राणपुर की सीमा पश्चिम बंगाल के मालदा जिले से लगती है। इसी वजह से इलाके पर बंगाली संस्कृति का भी काफी असर है। यह इलाका कोसी और महानंदा नदी की तलहटी में बसा है, जिससे यहां की जमीन काफी उपजाऊ है लेकिन बाढ़ की आशंका भी बनी रहती है। उपजाऊ जमीन होने की वजह से यहां की अर्थव्यव्सथा कृषि पर केंद्रित है।

 

केले और पान की खेती यहां की विशेषताओं में शामिल है। 1977 में इस सीट के गठन के बाद से यहां 11 बार चुनाव हो चुके हैं। यह सीट कटिहार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैऔर इसमें प्राणपुर व आजमनगर प्रखंड शामिल हैं। ग्रामीण इलाका होने की वजह से यहां शहरी वोटर बिल्कुल नहीं हैं। यहां मुस्लिम मतदाताओं की आबादी लगभग 47% है। इसके बावजूद इस सीट पर सिर्फ 2 बार ही मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है। 

 

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मौजूदा समीकरण 

सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। फिलहाल यह सीट BJP के कब्जे में है और निशा सिंह यहां की विधायक हैं। हालांकि, कांग्रेस और महागठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव में मिली बढ़त को विधानसभा चुनाव में भुनाने की कोशिश करेंगे। इस सीट पर जातिगत समीकरण और व्यक्तिगत दबदबा अहम भूमिका निभाएंगे।  

यहां मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका में है, जबकि यादव और रविदास समुदाय की भी मजबूत उपस्थिति है। पिछले 3 विधानसभा चुनाव में यह सीट BJP के खाते में ही रही है। हालांकि पार्टी की पकड़ यहां लगातार कमजोर हो रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में जीत का अंतर काफी ज्यादा नहीं था, इस बार कांग्रेस इस सीट पर बाजी मार सकती है। 

 

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2020 में क्या हुआ था?

2020 के विधानसभा चुनाव में BJP की निशा सिंह ने जीत हासिल की थी। हालांकि, उनके जीत का मार्जिन बहुत ज्यादा नहीं था। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार तौकीर आलम को 3 हजार वोटों से ही हराया था। जबकि निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ी इशरत प्रवीन को 19 हजार से ज्यादा वोट हासिल हुए थे। चुनाव में 2 मुस्लिम उम्मीदवार होने वोट बंटे और इसका नुकसान कांग्रेस को हुआ।

 

विधायक का परिचय

प्राणपुर सीट से विधायक निशा सिंह ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अपने पति बिनोद सिंह कुशवाह के निधन के बाद की। कोरोना काल में जान गंवाने वाले निशा के पति बिहार BJP के पुराने नेता थे। इसी के दम पर निशा ने अपना पहला चुनाव 2020 में लड़ा और जीता भी। निशा ने अपने पति की मौत के 7 दिन बाद ही नामांकन दाखिल किया था।

 

निशा सिंह ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है। उन पर कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है। 2020 के चुनाव में दिए हलफनामे में निशा ने अपनी संपत्ति 2 करोड़ से ज्यादा बताई थी। 2020 के चुनाव में जीत हासिल होने के बाद निशा ने जनता से वादा किया था कि वह क्षेत्र में रोड नेटवर्क को लेकर काम करेंगी। 

 

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सीट का इतिहास 

प्राणपुर विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1977 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद हुआ था और जनता पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी। इस सीट पर सबसे ज्यादा 4 बार BJP और 2 बार कांग्रेस और 2 बार RJD ने जीत हासिल की है। JDU एक बार भी इस सीट को नहीं जीत पाई है।

 

  • 1977- महेंद्र नारायण यादव (जनता पार्टी)
  • 1980- मोहम्मद सकुर (कांग्रेस)
  • 1985- मंगन इंसान (कांग्रेस)
  • 1990- महेंद्र नारायण यादव (जनता दल)
  • 1995- महेंद्र नारायण यादव (जनता दल)
  • 2000- बिनोद कुमार सिंह (BJP)
  • 2005- महेंद्र नारायण यादव (RJD)
  • 2005-  महेंद्र नारायण यादव (RJD) उपचुनाव में जीते
  • 2010- बिनोद कुमार सिंह (BJP)
  • 2015- बिनोद कुमार सिंह (BJP)
  • 2020- निशा सिंह (BJP)

 

 

 

 

 

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