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सीएम फेस के ऐलान में देरी क्यों? कांग्रेस ने RJD के सामने रखी दो शर्त

बिहार में कांग्रेस सीट शेयरिंग को लेकर आरजेडी पर दबाव बना रही है। इस बात को आरजेडी भी बखूबी जानती है। इसी सिलसिले में पिछले दिनों तेजस्वी यादव ने मुजफ्फरपुर की सभा में गठबंधन या सहयोगी दल के नेताओं का नाम नहीं लिया।

Rahul gandhi and Tejaswi yadav

तेजस्वी यादव और राहुल गांधी। Photo Credit (@INCIndia)

संजय सिंह, पटना। महागठबंधन की गांठ को कांग्रेस ने उलझाकर रखा दिया है। कांग्रेस का साफ कहना है कि पहले सीट शेयरिंग और कॉमन मेनिफेस्टो आरजेडी घोषित करे। इसके बाद ही सीएम फेस कांग्रेस घोषित करेगी। कांग्रेस की इस शर्त की वजह से आरजेडी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। इधर तेजस्वी यादव भी अड़े हुए हैं। उन्होंने अकेले अपनी यात्रा शुरू कर दी है। मुजफ्फरपुर के कार्यक्रम में उन्होंने गठबंधन या सहयोगी दलों का नाम नहीं लिया। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भी इस मुद्दे को सुलझाने के पक्षघर हैं। राजनीतिक के जानकारों का कहना है कि इस मुद्दे को सुलझाने में एक सप्ताह का समय लग सकता है।

 

कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीट शेयरिंग को लेकर यह पेंच फंसा है। साल 2020 के चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार भी कांग्रेस 70 सीटों की मांग पर अड़ी है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के मात्र 19 नेता ही विधायक बने थे। अन्य सीटों पर कांग्रेस की हार हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस के हिस्से में जान बूझकर खराब सीटें दी गई थीं। इस बार कांग्रेस को मिली-जुली सीटें चाहिए। 

 

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45 से ज्यादा सीटें नहीं

आरजेडी-कांग्रेस को 45 से ज्यादा सीटें नहीं देना चाहती है। आरजेडी को इस बात डर है कि कांग्रेस की जड़ें मजबूत हुई, तो इसका सीधा नुकसान आरजेडी को होगा। आरजेडी नेता दबी जुबान से यह भी स्वीकारते हैं कि वोटर अधिकार यात्रा के दौरान पूरी कमान राहुल गांधी को सौंप देना आरजेडी की सबसे बड़ी भूल थी। इधर पूर्व अध्यक्ष अखिलेश सिंह पार्टी लाइन से अलग हटकर बयान दे रहे हैं ।

राहुल गांधी की चुप्पी

इधर राहुल गांधी इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे हुए हैं। बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु खुद इस मामले को डील कर रहे हैं। उन्होंने आरजेडी को स्पष्ट कर दिया है कि पहले सीट शेयरिंग का मामला और आम मेनिफेस्टो लागू हो तभी आगे की घोषणा होगी। सीट शेयरिंग में कांग्रेस को 70 सीट पाने की इच्छा है। आरजेडी थक हारकर 50 से 55 सीटें ही कांग्रेस को देना चाहती है। राहुल गांधी की यात्रा के बाद कांग्रेसी ज्यादा उत्साहित हैं। इधर वाम दलों ने भी 25 सीट की मांग कर रखी है। जबकि पिछले चुनाव में वाम दलों को 19 सीट दी गई थीं। 12 सीटों पर वाम दल के प्रत्याशी जीते थे। 

 

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सीट शेयरिंग का उलझता पेंच 

झारखंड मुक्ति मोर्चा और एलजेपी पारस के लिए सीटों का निर्धारण अबतक नहीं हुआ है। विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी सीटों के बारगेनिंग में माहिर माने जाते हैं। पिछले चुनाव में वे आरजेडी को छोड़कर एनडीए में चले गए थे। वहां उन्हें 11 सीटें मिली थीं। इनके दल के चार उम्मीदवार विजयी हुए थे। इस बार महागठबंधन में वीआईपी को 20 से 22 सीटें मिल सकती हैं। सहयोगी दलों के लिए आरजेडी अगर दिल बड़ा नहीं करती है तो सीट शेयरिंग का यह पेंच सुलझता नजर नहीं आता है। 

प्रेशर पॉलिटिक्स का फार्मूला

इधर तेजस्वी यादव को राजनीतिक संकट से उबारने के लिए लालू प्रसाद भी सक्रिय हो गए हैंतेजस्वी ने भी अपना राजनीतिक पैंतरा बदल दिया हैउन्होंने यह घोषणा की है कि राज्य के 11 जिलों में वे अकेले दौरा करेंगे। मुजफ्फरपुर का दौरा उन्होंने किया भी वहां आयोजित जनसभा में न तो सहयोगी दल या नेताओं का नाम लिया। वे अकेले अपनी पार्टी के सिद्धांत और नीति से अवगत कराते रहेतेजस्वी भी प्रेशर पॉलिटिक्स का फार्मूला अपना रहे हैं

 

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