संजय सिंह, पटना। पहले के चुनाव में माई (यादव मुस्लिम) समीकरण की चर्चा खूब होती थी। इस बार एनडीए और महागठबंधन कुशवाहा बिरादरी को लुभाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। इस बिरादरी की संख्या पूरे प्रदेश में लगभग 55 लाख है। संख्या में दूसरे पायदान पर होने की वजह से सियासी दलों की नजर इसपर लगी है। यही कारण है कि एनडीए में सीटों के बंटवारों में उपेंद्र कुशवाहा पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है।
महागठबंधन भी जेडीयू के पूर्व पूर्णियां सांसद संतोष कुशवाहा को अपने पाले में ले आया। कुशवाहा अब जेडीयू प्रत्याशी और पूर्व मंत्री लेसी सिंह के खिलाफ धमदाहा से चुनाव लड़ सकते हैं।
पिछले चुनाव में 16 विधायक चुने गए थे
ऐसी बात नहीं कि कुशवाहा बिरादरी का महत्व पहले के चुनावों में नहीं होता था। जातीय गणना के बाद कुशवाहा समाज का महत्व और बढ़ गया। अब राजनीतिक दलों ने कुशवाहा समाज को ज्यादा महत्व देना शुरू कर दिया है। पिछले चुनाव में इस समाज से 16 विधायक चुने गए थे। जेडीयू और आरजेडी से चार चार, बीजेपी से तीन, भाकपा माले से चार और सीपीआई से एक विधायक बने थे।
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दस लोगों को टिकट देगी आरजेडी
कांग्रेस से कुशवाहा समाज का कोई भी नेता विधायक नहीं बना। पूर्व में कांग्रेस के पास कुशवाहा विधायकों की संख्या अच्छी-खासी होती थी। समय के अंतराल के साथ इस समाज के लोग कांग्रेस से कटते गए। वे या तो एनडीए के पाले में चले गए या फिर महागठबंधन का हिस्सा बन गए। राजनीतिक समीकरण यही बताता है कि बिहार में यादवों के बाद कुशवाहा वोट ही अगली सबसे बड़ी राजनीतिक चाबी है। इस चाबी को घूमाने के लिए एनडीए और महागठबंधन दोनों ने अपने-अपने पिटारे खोल दिए हैं। आरजेडी ने तो यह ऐलान भी कर दिया है कि वे इस विरादरी के दस लोगों को टिकट देंगे।
एनडीए के पास दो मजबूत चेहरा
कुशवाहा समाज को प्रभावित करने के लिए एनडीए के पास दो मजबूत चेहरे हैं, लेकिन इनमें खुद डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी हाल के दिनों में मजबूत हुए हैं। बीजेपी ने उन्हें आगे बढ़ने का पूरा मौका दिया है। कुशवाहा समाज की राजनीति सम्राट चौधरी के पिता शकुनी चौधरी ने भी की है। वे कई दलों में रहने के साथ-साथ सरकार में मंत्री भी रहे। अपने पिता के विरासत का लाभ भी सम्राट को मिल रहा है। कुशवाहा समाज में भी उपेंद्र कुशवाहा का चेहरा बड़ा है। ये केंद्र और राज्य की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। इन्हें केंद्रीय मंत्री के रूप में काम करने का अनुभव भी प्राप्त है। पूरे राज्य में कुशवाहा समाज के बीच उनकी अच्छी पैठ है।
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बिहार के कुशवाहा नेता
वहीं, जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा भी इसी समाज के हैं। उनके अंदर संगठन करने की क्षमता मजबूत है। खासकर वैशाली क्षेत्र में अपने समाज पर उनकी मजबूत पकड़ है। बांका जिले के अमरपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक और राज्य सरकार में मंत्री रहे जयंत राज भी कुशवाहा समाज से आते हैं। इनके पिता भी इसी क्षेत्र से विधायक चुने जाते थे। ये भी अपने समाज में काफी लोकप्रिय थे। इसके अलावा सांसद सुनील कुमार, पूर्व सांसद महाबली सिंह, विधान पार्षद कुमुद वर्मा और भगवान सिंह कुशवाहा अपनी विरादरी को साधने में जुटे हैं। कुशवाहा नेताओं की संख्या एनडीए के पास अच्छी खासी है।
महागठबंधन ने भी झोंकी ताकत
कुशवाहा समाज को जोड़ने के लिए महागठबंधन ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने दो दिन पहले पूर्णिया के पूर्व जेडीयू सांसद संतोष कुशवाहा को आरजेडी ज्वाइन करवाया था। पूर्व सांसद को आरजेडी में इसलिए लाया गया कि कुशवाहा समाज में यह संदेश पूरी तरह फैले। प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस बात की घोषणा पूर्व में ही कर दी थी कि इस बार टिकट वितरण में कुशवाहा और भूमिहार समाज पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
इसके अलावा आरजेडी में पहले से शामिल आलोक मेहता, अजय कुशवाहा और अभय कुशवाहा को भी विशेष महत्व दिया जा रहा है। महागठबंधन के नेता इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि इस बिरादरी को साधकर सत्ता के पलड़े को झुकाया जा सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अभय कुशवाहा को उम्मीदवार बनाकर आरजेडी ने मगध और शाहाबाद की चुनाव की केमेस्ट्री ही बदल दी।