संजय सिंह, पटना। महिलाओं की वोट में सेंधमारी के लिए एनडीए और महागठबंधन दोनों आतुर हैं। एनडीए की सरकार ने तो महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिए चुनाव से पहले कई तरह की घोषणाएं भी रखी हैं। महिलाओं के सीटों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। चुनाव की घोषणा के पहले तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार जीविका दीदियों से संवाद स्थापित करते रहे। रोजगार शुरु करने के लिए दीदियों के खाते में दस दस हजार रुपये भी डाले गए।
इधर महागठबंधन ने भी सत्ता में आने पर 'माई बहन योजना' के तहत महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाने की बात कही है। महिलाएं राजनीतिक रूप से जागृत भी हुई हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में वोट करने की क्षमता अधिक है। लेकिन हिस्सेदारी के हिसाब से महिलाओं को टिकट नहीं मिल पाता है। कई महिलाएं ऐसी हैं जो अपनी राजनीति विरासत को अच्छी तरह संभाल रही हैं।
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इन्होंने आगे बढ़ाई विरासत
कुछ ऐसी महिलाएं है, जिनके पति, ससुर या मां को जनता का जनादेश प्राप्त हुआ था, लेकिन बाद में उनकी विरासत को घर की महिलाएं संभालने लगी। 2020 के चुनाव में 26 महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं। जिनमें से 16 ऐसी थीं, जिन्हें विरासत में राजनीति मिली। विरासत में मिली इन राजनीति को वे बेहतर तरीके से आगे बढ़ा रही हैं। इस बार के चुनाव में भी वह पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रही हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े?
आंकड़ों पर यदि गौर करें तो, सात सीटों में चुनाव जीतने वाली महिलाओं के पति पहले राजनीति में थे। ये सीटें हैं प्राणपुर, संदेश, गोपालगंज, नवादा, नोखा, मोकामा और महनार। मोकामा से इस बार नीलम देवी के पति अनंत सिंह स्वयं चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। प्राणपुर की विधायक निशा देवी के पति पहले राजनीति में थे। अब वह अपने पति की विरासत को स्वयं आगे बढ़ा रही हैं। संदेश से चुनाव जीतने वाली किरण देवी के पति भी पहले विधायक थे। अब किरण स्वयं हर चीजों को देख रही हैं।
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जमुई की विधायक श्रेयसी सिंह के पिता दिग्विजय सिंह और मां पुतुल देवी दोनों सांसद रह चुके हैं। अब श्रेयसी स्वयं विधायक बनकर अपने कार्यों को अच्छी तरह पूरा कर रही हैं। इसी तरह शीला कुमारी (फुलपरास), नीलू कुमारी (हिसुआ), शालिनी मिश्रा (केशरिया), गायत्री देवी (परिहार), किरण देवी (संदेश), दीपा कुमारी (इमामगंज) कुसुम देवी (गोपालगंज) सहित कई अन्य महिलाएं अपनी राजनीतिक विरासत को अच्छी तरह आगे बढ़ा रही हैं।
टिकट देने से परहेज
राजनीति में इस चुनाव में यह नारा जोर पकड़ा है कि जिसकी जितनी हिस्सेदारी उनकी उतनी भागीदारी, लेकिन यह नारा महिलाओं को टिकट देने के मामले में सटीक नहीं बैठता है। महिलाओं का वोट सभी राजनीतिक दलों को चाहिए, लेकिन टिकट देने में राजनीतिक दलों के हाथ बंध जाते हैं। इस बार जन सुराज को छोड़कर किसी अन्य दल ने महिलाओं पर उतना भरोसा नहीं जताया है जितना जताया जाना चाहिए।
महिलाओं को पंचायत चुनाव में तो 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया, लेकिन विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। इस बार भी विभिन्न दलों से लगभग 38 महिलाओं ने टिकट की दावेदारी के लिए विभिन्न दलों में अपना बायोडाटा दिया था, लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दलों ने पुराने चेहरे पर ही भरोसा जताया। ऐसे में राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखनेवाली महिलाओं को एक बार फिर निराश होना पड़ा है।