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ब्रह्मपुर विधानसभा: क्या RJD के किले को ढहा पाएगी BJP?

ब्रह्मपुर विधानसभा सीट आरजेडी का गढ़ रही है। इस पर बीजेपी के लिए जीत का परचम लहराना बड़ी चुनौती होगी।

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ब्रह्मपुर विधानसभा का काफी ऐतिहासिक महत्त्व है। माना जाता है कि इस स्थान की स्थापना स्वयं ब्रह्मा जी ने की थी इसीलिए इसका नाम ब्रह्मपुर है। इसके अलावा इससे शिव मंदिर की भी एक ऐतिहासिक कहानी भी जुड़ी हुई है। माना जाता है कि जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और इस मंदिर को नष्ट करने के लिए आया तो उसने कहा कि अगर रातों रात इस पूर्वमुखी मंदिर का मुख पश्चिम की ओर हो जाएगा तो वह इस मंदिर को नहीं तोड़ेगा, तो ऐसी मान्यता है कि रातोंरात इस मंदिर का द्वार पश्चिम की ओर हो गया, जिसके बाद महमूद गजनवी वापस लौट गया।

 

यह सीट बक्सर लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है। इस सीट के अंतर्गत डुमरांव अनुमंडल, सिमरी और चक्की प्रखंड शामिल है। इस क्षेत्र में नुसूचित जाति के मतदाता 11.95%, अनुसूचित जनजाति के 2.34%, और मुस्लिम मतदाता लगभग 4.4% हैं।

 

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मौजूदा राजनीतिक समीकरण

 इस सीट पर अब तक 17 बार विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से कांग्रेस और आरजेडी ने इसे 5-5 बार जीता है जबकि निर्दलीय और बीजेपी कैंडीडेट्स ने दो-दो बार इस सीट से जीत दर्ज की है, लेकिन साल 2000 से यह सीट आरजेडी का गढ़ बनी हुई है तब से पांच बार चुनाव जीता है। बीजेपी ने इस सीट पर साल 2010 में चुनाव जीता था लेकिन उसके बाद फिर आरजेडी ने ही इस सीट पर कब्जा जमाए रखा। इस तरह से यह सीट आरजेडी का गढ़ है।

2020 की स्थिति

पिछली बार के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के शंभूनाथ यादव ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। उन्हें कुल 90,176 वोट मिले थे जो कि कुल वोटों का 48.6 प्रतिशत था। दूसरे स्थान पर एलजेपी के हुलास पाण्डेय थे जिन्हें कुल 39,035 वोट मिले थे। इस तरह से शंभूनाथ यादव ने करीब 51 हजार वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की थी। वीआईपी के जयराज चौधरी को 30,482 वोट मिले थे और वह तीसरे नंबर पर आए थे।

विधायक का परिचय

ब्रह्मपुर से आरजेडी विधायक शंभूनाथ यादव बिहार के प्रसिद्ध और विवादास्पद राजनेताओं में से एक हैं। वे लगातार दो बार ब्रह्मपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए हैं। राजनीति में आने से पहले वे बिहार पुलिस में कांस्टेबल थे, और लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री रहते उनके बॉडीगार्ड भी रह चुके हैं, जिससे उनकी आरजेडी में गहरी पैठ बनी। बाद में, सिपाही की नौकरी छोड़कर वह व्यवसायी बने और फिर लालू प्रसाद यादव के करीबी होने के नाते उन्हें राजद का टिकट मिला, जिससे वह दो बार विधायक बने। उनकी शिक्षा कुल दसवीं पास है।

शंभूनाथ यादव की संपत्ति को लेकर काफी समय से सवाल उठते रहे हैं। हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) और आयकर विभाग ने उनके करीब 27 ठिकानों पर छापेमारी की, जिसमें उनके निजी स्कूल, आटा मिल, होटल, पेट्रोल पंप और रिश्तेदारों के परिसरों पर भी जांच की गई।


उनके ऊपर कम से कम 5-7 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें धारा 307 (हत्या का प्रयास), 504 (मारपीट) और 506 (धमकी) जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। ED छापे के बाद मनी लॉन्ड्रिंग का केस भी जुड़ गया है। ये मामले मुख्य रूप से पुराने आपसी विवादों और चुनावी हिंसा से जुड़े हैं।


इसके अलावा गेहूं की कालाबाजारी करने का भी मामला उनके ऊपर दर्ज है। हाल के वर्षों में उन पर गिरफ्तारी की तलवार भी लटक चुकी है, क्योंकि अग्रिम जमानत भी उन्हें नहीं मिली थी। इसके अलावा, उन पर सड़क निर्माण में निजी भूमि का अतिक्रमण कर विवादित कार्रवाई करने का आरोप भी लगा है, जिससे स्थानीय भू-स्वामियों में गुस्सा देखा गया।


अप्रैल 2025 में 'माई बहिन सम्मान योजना' के तहत साड़ी वितरण के दौरान महिलाओं के साथ बदसलूकी का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने एक महिला के सिर पर साड़ी का पैकेट फेंका और अन्य को धक्का दिया। वैसे तो वह किसी राजनीतिक परिवार से संबंध नहीं रखते हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि आरजेडी में उनकी पैठ काफी गहरी है।

 

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विधानसभा का इतिहास

इस सीट पर लंबे समय से आरजेडी का दबदबा रहा है। बीच में एक बार बीजेपी भी जीती है लेकिन उसके लिए यहां कब्जा जमाना मुश्किल राह है।

1952: ललन प्रसाद सिंह (कांग्रेस)

1957: ललन प्रसाद सिंह (कांग्रेस)

1962: बुधी नाथ सिंह (निर्दलीय)

1967: सूर्यनारायण शर्मा (निर्दलीय)

1969: सूर्यनारायण शर्मा (लोक तांत्रिक कांग्रेस)

1972: ऋषि केश तिवारी (कांग्रेस)

1977: रामकांत ठाकुर (जनता पार्टी)

1980: ऋषि केश तिवारी (कांग्रेस)

1985: ऋषि केश तिवारी (कांग्रेस)

1990: स्वामी नाथ तिवारी (बीजेपी)

1995: अजीत चौधरी (जनता दल)

2000: अजीत चौधरी (आरजेडी)

2005: अजीत चौधरी (आरजेडी)

2010: दिलमर्णी देवी (बीजेपी)

2015: शंभूनाथ यादव (आरजेडी)

2020: शंभूनाथ यादव (आरजेडी

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