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तेजस्वी को CM फेस बनाने को तैयार नहीं कांग्रेस, सीटों पर भी फंसा पेच

बिहार में आरजेडी और कांग्रेस की बातचीत अटकती दिख रही है। राहुल गांधी की यात्रा के बात कांग्रेस पार्टी कम सीटें लेने पर तैयार नहीं है।

rahul gandhi and tejashwi yadav

वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी और तेजस्वी यादव, File Photo Credit: PTI

संजय सिंह, पटना: बिहार में हुई वोटर अधिकार यात्रा की सफलता के बाद कांग्रेस की मंशा परवान पर है। कांग्रेस अब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की पिछलग्गू बनकर नहीं रहना चाहती है। 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की मंशा पाले कांग्रेस अब बिहार में मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने में आनाकानी कर रही है। इधर आरजेडी भी झुकने को तैयार नहीं है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने स्पष्ट कर दिया है कि मुख्यमंत्री का चुनाव जनता करेगी जबकि आरजेडी चाहती है कि तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट घोषित करके ही चुनाव लड़ा जाए।

 

सीटों के बंटवारे को लेकर पिछले दिनों राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की मौजूदगी में मंथन भी हुआ लेकिन इसका कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका दिया गया था लेकिन संगठनात्मक रूप से कमजोर कांग्रेस 51 सीट पर चुनाव हार गई थी और सिर्फ 19 सीटें जीत पाई थी। यही कारण है कि आरजेडी कांग्रेस पर 46 सीटों पर चुनाव लड़ने का दबाव बना रही है लेकिन कांग्रेस इतनी कम सीट पाकर संतुष्ट नहीं है। 

 

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बढ़ रही है आरजेडी की चिंता

 

राजनीतिक हल्के में कांग्रेस के बिहार प्रभारी का बयान महत्वपूर्ण माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ बैठक के बाद इस तरह का बयान आना आरजेडी के लिए चिंता का कारण है। कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि अब तक कांग्रेस पर यह आरोप लगता रहा है कि यह पार्टी आरजेडी की पिछलग्गू है। जब तक ऐसे आरोपों से मुक्ति नहीं मिलेगी तब तक कांग्रेस का भला कैसे हो सकता है।

 

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वोटर अधिकार यात्रा की सफलता के बाद कांग्रेस और आरजेडी के बीच दांव पेंच शुरू हो गया। इस यात्रा को कांग्रेस ने पूरी तरह अपनी मुट्ठी में कर लिया था। अपनी धाक जमाने के लिए दूसरे प्रदेश के मुख्यमंत्री को बुला लिया गया था। इस यात्रा के बहाने कांग्रेस अपने परंपरागत अल्पसंख्यक और दलित वोटरों का मिजाज टटोल रही थी। कांग्रेस को यह लगने लगा है कि दोनों तबके का झुकाव कांग्रेस की ओर बढ़ा है। पार्टी के लोगों का यह मानना है कि अगर आरजेडी के पिछलग्गू बने रहे तो कांग्रेस को सवर्णों का एक भी वोट नहीं मिलेगा। 

पप्पू यादव के बयान ने तेजस्वी को दे दी टेंशन

 

तेजस्वी यादव ने जिस तरह से वोटर अधिकार यात्रा की पूरी कमान राहुल गांधी को सौंप दी थी उससे यह लगने लगा था कि कांग्रेस, आरजेडी की परेशानी को बढ़ाएगी। आज कांग्रेस के नेता अपनी डफली, अपना राग अलाप रहे हैं। आरजेडी के प्रवक्ता चितरंजन गगन का कहना है कि बिहार की जनता तेजस्वी यादव को सीएम फेस मान चुकी है इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है।

 

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इस बीच पूर्णिया सांसद पप्पू यादव के बयान को भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पप्पू ने अपने बयान में कहा था, 'प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा, यह यहां की जनता तय करेगी। चुनाव के बाद सभी दल के विधायक अपने अपने दल का नेता चुनेंगे। इस प्रक्रिया के बाद महागठबंधन दल का नेता चुना जाएगा।' कल तक पप्पू यादव को मंच पर जगह नहीं देने वाले नेता उनके बयान से हैरान हैं। हालांकि, पप्पू यादव नेआरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ रिश्ता सुधारने का भरपूर प्रयास किया लेकिन दोनों के बीच बात नहीं बनी। अब कांग्रेस ने संगठन को मजबूत करने के उद्देश्य से हर घर यात्रा निकालने का मन बनाया है।

 

इधर सीपीआई ने भी अपना राजनीतिक पैंतरा बदला है। अब पार्टी 24 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है। वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम पद के साथ साथ 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की गारंटी चाहिए। सहनी का यह दावा संभव होता नहीं दिख पा रहा है। महागठबंधन में शामिल झारखंड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (पारस) ने भी सीटों को लेकर अब तक पत्ते नहीं खोले हैं। हालांकि, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आरजेडी को झारखंड में 10 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका दिया था। इन राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर ऐसा लगता है कि कांग्रेस और आरजेडी कहीं विधानसभा चुनाव में अपने-अपने दम पर चुनाव न लड़े।

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