बिहार की दीघा विधानसभा, पटना जिले का हिस्सा है। यह पटना साहिब संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। दीघा एनडीए का गढ़ रही है। यह बिहार की सबसे नई विधानसभाओं में से एक है। साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद इस सीट पर पहली बार साल 2010 में विधानसभा चुनाव हुए। तब से लेकर अब तक कुल 3 चुनाव हो चुके हैं। दीघा के विधायक संजीव चौरसिया हैं।
विधानसभा की सीट संख्या 243 है। विधानसभा के अंतर्गत 6 पंचायतें और 14 वार्ड आते हैं। यह बिहार की सबसे बड़ी विधानसभाओं से एक है। यहां करीब 4 लाख वोटर हैं। विधानसभा में सवर्ण वोटरों का दबदबा है। कायस्थ वर्ग के मतदाता जीत-हार तय करने की स्थिति में हैं।
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विधानसभा का परिचय
दीघा विधानसभा में करीब 473108 वोटर हैं। पुरुष मतदाताओं की संख्या 247959 है, वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 225131 है। 18 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। दीघा में छह पंचायतें और पटना नगर निगम के 14 वार्ड शामिल हैं।यह विधानसभा, गंगा नदी के किनारे बसी है। यहां कई पॉश कॉलोनियां भी हैं।
दीघा और उत्तर बिहार को जोड़ने वाला जेपी सेतु भारत का दूसरा सबसे लंबा रेल-सड़क पुल है। इस पुल के जरिए पटना और सोनपुर को लिंक किया गया है। यह बिहार में गंगा पर बना दूसरा रेल-सड़क पुल है।
एक किस्सा है कि रेल मंत्री राम विलास पासवान और लालू यादव के बीच इस पुल को लेकर टकराव भी हुआ था। रामविलास पासवान इसे हाजीपुर से जोड़ना चाहते थे, लालू प्रसाद चाहते थे कि सोनपुर से इसे कनेक्ट किया जाए। नीतीश कुमार की मदद से यह सोनपुर से कनेक्ट हो गया।
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सामाजिक ताना बाना
दीघा की ज्यादातर अबादी शहरी है। 2 फीसदी से कम भी ग्रामीण मतदाता है। यहां कायस्थ वर्ग निर्णायक स्थिति में है। अनुसूचित जाति के वोटर यहां करीब 10 फीसदी हैं, वहीं अल्पसंख्यक वोटरों की भी संख्या 9 फीसदी से ज्यादा है। शहरी इलाके में वोटिंग प्रतिशत कम है।
मुद्दे क्या हैं?
यहां 2020 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 37 फीसदी वोटिंग हुई थी। यहां भी पलायन और बेरोजगारी बड़े सियासी मुद्दों में शुमार है।
2025 में क्या समीरण बन रहे हैं?
दीघा में कम वोटिंग राजनीतिक पार्टियों के लिए हमेशा चुनौती रही है। यह सीट, महागठबंधन के लिए चुनौती है। बीजेपी संजीव कुमार पर एक बार फिर भरोसा जता सकती है। महागठबंध ने भी अभी तक तय नहीं किया है कि यह सीट, किस पार्टी को दी जाएगी।
विधायक का परिचय
दीघा के विधायक संजीव चौरसिया हैं। वह साल 2015 में पहली बार विधायक बने। साल 2006 में रांची विश्वविद्याल से उन्होंने पीएचडी की उपाधि हासिल की है। साल 1993 में उन्होंने एम. कॉम की डिग्री हासिल की। साल 1996 में उन्होंने एमबीए की डिग्री ली थी। उनकी कुल संपत्ति, 5 करोड़ 33 लाख से ज्यादा है। वह पेशे से असिस्टेंट प्रोफेसर रहे हैं। उनकी पत्नी उद्यमी हैं।
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2020 का चुनाव कैसा था?
साल 2020 के चुनाव में यहां महागठबंधन बनाम एनडीए की लड़ाई थी। महागठबंधन की यह सीट, CPI (ML) (L) के खाते में गई। यहां से शशि यादव को सीपीआई (एमएल) ने टिकट दिया। बीजेपी ने यहां से संजीव यादव को उतारा। उन्हें कुल 97,318 वोट पड़े। CPI(एमएल) एल के प्रत्याशी शशि यादव को कुल 51,084 वोट पड़े। तीसरे नंबर द प्लूरल्स पार्टी की शांभवी रहीं। उन्हें 4713 वोट पड़े। बीजेपी ने करीब 46,234 वोटों से चुनाव अपने नाम कर लिया।
विधानसभा सीट का इतिहास
साल 2010 में इस विधानसभा सीट पर पहली बार चुनाव हुए। दब जेडीयू उम्मीदवार पूनम देवी, यहां से विधायक बनीं। साल 2015 के विधानसभा चुनाव में संजीव चौरसिया को जीत मिली। उन्होंने जेडीयू के राजीव रंजन प्रसाद को हराया था। 2015 में नीतीश कुमार, एनडीए गठबंधन का हिस्सा नहीं थे। साल 2020 में भी उन्होंने जीत हासिल की।
- विधानसभा चुनाव 2010: पूनम देवी, जेडीयू
- विधानसभा चुनाव 2015: संजीव चौरसिया
- विधानसभा चुनाव 2020: संजीव चौरसिया