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हाजीपुर विधानसभा: BJP का विजय रथ कैसे रोक पाएगा महागठबंधन?

हाजीपुर विधानसभा सीट पर साल 2000 से ही बीजेपी जीतती आ रही है। पिछली बार जीत-हार का अंतर बहुत कम जरूर हुआ लेकिन नतीजे नहीं बदले।

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हाजीपुर विधानसभा, Photo Credit: Khabargaon

बिहार के वैशाली जिले की हाजीपुर विधानसभा सीट बीते कुछ साल में नित्यानंद राय की वजह से चर्चा में रही है। उनके केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भी उनके साथी अवधेश सिंह पटेल ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का यह किला बरकरार रखा है। वैशाली और सारण जिले की सीमा पर बसा यह विधानसभा क्षेत्र गंगा नदी के तट पर बसा हुआ है। रेलवे के पूर्व मध्य रेलवे का मुख्यालय हाजीपुर इसी विधानसभा क्षेत्र में है। इसके अलावा हाजीपुर में इंडस्ट्रियल एरिया भी है जो इसे बिहार के प्रमुख शहरों में लाकर खड़ा करता है।

 

गंगा और गंडक नदी से घिरा यह क्षेत्र राजा पाकर, राघोपुर और लालगंज जैसे विधानसभा क्षेत्रों से अपनी सीमा शेयर करता है। लगभग दो तिहाई ग्रामीण आबादी वाला यह विधानसभा क्षेत्र हर साल गंगा की बाढ़ से प्रभावित होता है। बारिश के मौसम में आने वाली बाढ़ के अलावा हाजीपुर शहर में जाम की समस्या हर किसी को परेशान करती है। पूर्व में राम विलास पासवान की कर्मभूमि रहे हाजीपुर में विकास के काम तो खूब हुए लेकिन आज भी यह क्षेत्र कहीं न कहीं पीछे ही रह जाता है।

 

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यादव और राजपूत मतदाता यहां अच्छी-खासी संख्या में हैं। लगभग 8 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता भी हैं लेकिन यहां MY समीकरण आज तक कभी भी आरजेडी के पक्ष में नहीं बैठा है। 1995 में राजेंद्र राय जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते थे लेकिन उसके बाद से बीजेपी ने हर चुनाव जीता है।

मौजूदा समीकरण

 

लगातार तीन चुनाव में मिली जीत और नित्यानंद राय का आशीर्वाद मौजूदा विधायक अवधेश सिंह को टिकट का प्रबल दावेदार बनाता है। उनके पक्ष में एक नकारात्मक पहलू यह है कि पिछली बार उनकी जीत का अंतर 3 हजार वोटों से भी कम का रह गया था। विधायक होने के नाते अवधेश सिंह अपने क्षेत्र में खूब सक्रिय भी हैं और लगातार जनसंपर्क भी कर रहे हैं। पिछले चुनाव में मामूली अंतर से चुनाव हारने वाले आरजेडी के देव कुमार चौरसिया भी इस दावे के साथ मैदान में हैं कि वह इस बार कसर पूरी कर देंगे। वह भी अपने जनसंपर्क अभियान में लगातार सक्रिय हैं।

 

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लंबे समय तक बीजेपी और एनडीए का समर्थन करते रहे कृष्णा सोनी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन का समर्थन किया था। अब वह जन सुराज में हैं और टिकट की दावेदारी पेश कर रहे हैं। उनके अलावा राजेश ठाकुर भी जन सुराज में ही टिकट के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह दिखाता है कि कई सीटों पर जन सुराज कम से कम ऐसा फैक्टर है जो चुनाव में भले ही न जीते लेकिन जीतने और हारने वाले का फैसला जन सुराज को मिलने वाले वोटों से हो सकता है।

2020 में क्या हुआ था?

 

2014 के उपचुनाव और 2015 में हुए चुनाव में आराम से जीतने वाले अवधेश सिंह पर बीजेपी ने एक बार फिर से भरोसा जताया। सामने से महागठबंधन ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। 2015 में इस सीट पर कांग्रेस के जगन्नाथ प्रसाद राय उतरे थे और लगभग 12 हजार वोटों से चुनाव हारे थे। इस बार इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने देव कुमार चौरसिया को चुनाव लड़ाया। 

 

2020 में बीजेपी बनाम आरजेडी की लड़ाई जोरदार हुई। वह भी तब, जब यहां पर चिराग पासवान ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। बमुश्किल ही अवधेश सिंह अपना चुनाव जीत पाए। उन्हें आरजेडी के देव कुमार चौरसिया से सिर्फ 2990 वोट ही ज्यादा मिले। कई निर्दलीय भी ऐसे थे जिन्हें 3 से 5 हजार वोट मिले थे।

विधायक का परिचय

 

साल 2014 में जब नित्यानंद राय लोकसभा सांसद बने तो यह विधानसभा सीट खाली हुई। उसी उपचुनाव में अवधेश सिंह पटेल को मौका मिला और वह पहली बार में ही चुनाव जीत गए। बीजेपी के संगठन में लंबे समय से काम कर रहे अवधेश ने नित्यानंद राय की सीट बचाए रखी तो इसका इनाम उन्हें 2015 में भी मिला और फिर से उन्हें ही उतारा गया। नित्यानंद राय के करीबी अवधेश सिंह अपने बारे में खुद बताते हैं कि जब ममता बनर्जी ने रेलमंत्री रहते यह एलान किया था कि ईस्ट सेंट्रल रेलवे का हेडक्वार्टर हाजीपुर से हटाकर कोलकाता किया जाएगा तो नित्यानंद राय के निर्देश पर उन्होंने 3 किलोमीटर की रेल पटरी ही उखाड़ दी थी।

 

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12वीं तक पढ़े अवधेश सिंह पटेल ने 2020 के चुनाव में बताया था कि उनकी संपत्ति लगभग 4.5 करोड़ रुपये की है। 2020 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक, उनके खिलाफ कोई केस नहीं दर्ज था।

विधानसभा का इतिहास

 

शुरुआती 3 चुनावों के बाद से यह विधानसभा समाजवादियों का गढ़ बन गई थी। 1967 में कम्युनिस्ट पार्टी, 1969 में शोषित दल, फिर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, फिर जनता पार्टी, फिर कांग्रेस, फिर लोकदाल, फिर कांग्रेस और फिर जनता दल ने यहां से जीत हासिल की। हालांकि, साल 2000 से लगातार 7 चुनाव में यहां से बीजेपी ही जीतती आ रही है।

 

1952-सरयुग प्रसाद-कांग्रेस
1957-दीप नारायण सिंह-कांग्रेस
1962-दीप नारायण सिंह-कांग्रेस
1967-केपी सिंह- CPI
1969-मोतीलाल सिन्हा कानन-शोषित दल
1972-मोतीलाल सिन्हा कानन- संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1977-जगन्नाथ प्रसाद राय-जनता पार्टी
1980-जगन्नाथ प्रसाद राय-कांग्रेस
1985-मोतीलाल सिन्हा कानन- लोकदल
1990-जगन्नाथ प्रसाद राय-कांग्रेस
1995-राजेंद्र राय-जनता दल
2000-नित्यानंद राय-BJP
2005-नित्यानंद राय-BJP
2005-नित्यानंद राय-BJP
2010-नित्यानंद राय-BJP
2014-अवधेश सिंह-BJP (उपचुनाव)
2015-अवधेश सिंह-BJP
2020-अवधेश सिंह-BJP

 

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