बिहार के बड़े समाजवादी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर राज्य की राजनीति में हमेशा ही प्रासंगिक रहे हैं। चुनावों के समय उनकी प्रासंगिकता हर बार बढ़ जाती है। सभी पार्टियां अपनी विचारधारा को इनके विचारों से जोड़ने के लिए तैयार रहती है। प्रशांत किशोर (PK) की पार्टी भी इस लिस्ट में शामिल हो गई। PK ने कर्पूरी ठाकुर की पोती डॉक्टर जागृति ठाकुर को समस्तीपुर जिले की मोरबा विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है।
PK की पार्टी ने 51 उम्मीदवार की पहली सूची निकाली जिसमें जागृति का नाम चर्चा का विषय बना। जागृति कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे वीरेंद्र नाथ ठाकुर की बेटी हैं। उनके बड़े चाचा राम नाथ वर्तमान में जेडीयू के राज्य सभा सांसद और केंद्र सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री हैं।
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बीजेपी का दांव
2024 में लोकसभा चुनाव से पहले भारत रत्न के नाम की घोषणा हुई जिसमें कर्पूरी ठाकुर का नाम था। बीजेपी ने राज्य के जन नायक को भारत रत्न देकर बिहार के अति पिछड़ा वर्ग के वोटर को भुनाने की कोशिश की, जो सच भी साबित हुई। लोकसभा में एनडीए गठबंधन को कुल 30 सीट मिली। लोकसभा चुनाव पर इसका सीधा प्रभाव पड़ा या नहीं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है पर इस निर्णय से बीजेपी को फायदा जरूर पहुंचा।
PK की कोशिश
प्रशांत किशोर ने जन सुराज में कर्पूरी ठाकुर के परिवार के जरूरी सदस्य को शामिल करके बीजेपी के दांव का सीधा जवाब दिया है। इस कदम को उनके परिवार के विरासत पर अधिकार जताने की एक राजनीतिक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। प्रशांत ने उनकी पोती को अपने पाले में लाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह केवल सम्मान देने की बात नहीं करते बल्कि उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाले लोगों को राजनीति में जगह भी देते हैं।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के बाद प्रशांत ने बीजेपी की मंशा पर सवाल खड़ा किया था। मोदी सरकार पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला करते हुए कहा कि इतने वर्षों तक याद न करने के बाद चुनाव से ठीक पहले यह सम्मान केवल राजनीति से प्रेरित है।
लालू-नीतीश की राजनीति
बिहार में समाजवाद की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार अपने आप को कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक शिष्य बताते हैं। दोनों ही पार्टियां उन्हें लेकर तमाम तरह के दावे करती रहती हैं। पिछले दिनों आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव में यहां तक कह दिया था कि कर्पूरी ठाकुर की मौत उनके पिता लालू प्रसाद यादव की गोद में हुई थी। नीतीश कुमार ने उनके बेटे राम नाथ ठाकुर को अपने कोटे से केंद्र में मंत्री बनवाया।
कांग्रेस भी इसमें पीछे नहीं हैं। कांग्रेस यह कहती है कि कर्पूरी ठाकुर ने उन्हीं की पार्टी में रहकर अपनी राजनीति की शुरुआत की थी।
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कर्पूरी ठाकुर की प्रासंगिकता
कर्पूरी ठाकुर हमेशा से अति-पिछड़ों के सामाजिक न्याय की वकालत करते थे। उनका सबसे बड़ा निर्णय 1978 में आया कर्पूरी ठाकुर आरक्षण फॉर्मूला। कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 26% आरक्षण लागू किया। यह फार्मूला 'मुंगेरी लाल आयोग' की सिफारिशों पर आधारित था और इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें पिछड़े वर्ग (OBC) का उप-वर्गीकरण किया गया। कर्पूरी ठाकुर ने देश में पहली बार, जाति पर ध्यान न देते हुए, सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को आर्थिक आधार पर 3% आरक्षण दिया। साथ ही, उन्होंने महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण की वकालत की। सभी वर्गों की महिलाओं के लिए 3% आरक्षण देकर लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया।
इसी फॉर्मूले को बिहार की पार्टियों ने जोरदार तरीके से लपका। आरजेडी ने समाजवाद के लिए अति-पिछड़े वर्ग की राजनीति को महत्व दिया। नीतीश कुमार ने महिला वोटर को लुभाने के लिए कई काम किए। इस फॉर्मूले ने बिहार की राजनीति में 'अति पिछड़ा वर्ग' को एक शक्तिशाली और अलग राजनीतिक पहचान दी। कर्पूरी फार्मूला में किया गया 'पिछड़े वर्ग के भीतर उप-वर्गीकरण' का प्रयोग, बाद में मंडल आयोग की सिफारिशों को भी प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण आधार बना।
प्रशांत किशोर हों या चाहे कोई अन्य दल, सभी की मंशा है कि बिहार में अति पिछड़े वर्ग ( EBC) को अपनी ओर किया जा सके। सभी पार्टियां यही चाहती हैं कि EBC (लगभग 36 %) का एकमुश्त वोट एक तरफ पड़े। चुनाव परिणाम के बाद ही यह समझ आएगा कि EBC ने किसकी ओर झुकाव रखा है।