कस्बा विधानसभा सीट बिहार के पूर्णिया जिले में पड़ती हैं। यह सीट हिंदू बहुल है। मगर लगभग 40 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं की हार-जीत तय करने में भूमिका अहम होती है। विधानसभा क्षेत्र का अधिकांश इलाका पिछड़ा है। जिले की बाकी विधानसभाओं की तरह यहां भी पलायन और बाढ़ सबसे बड़ी समस्या है। जिले मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 12 किमी है।
कजरी नदी पर पुल और कस्बा को अनुमंडल बनाने की मांग लंबे समय से हो रही है। मगर अभी तक पूरी नहीं हो सकी। कस्बा विधानसभा सीट में श्रीनगर, जलालगढ़ और कस्बा सामुदायिक विकास खंड के अलावा बेला रिकाबगंज, झुन्नी इस्तंबरार, कृत्यानंद नगर ब्लॉक के कोहबरा ग्राम पंचायतें शामिल हैं। यहां प्रमुख तौर पर धान, मक्का और जूट की खेती होती है।
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मौजूदा समीकरण
वैसे कस्बा विधानसभा सीट हिंदू बहुल है। मगर लगभग 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता यहां निर्णायक हैं। इनका झुकाव जिस तरफ होता है, पलड़ा उसी का भारी हो जाता है। इस सीट पर छह बार मुस्लिम चेहरों पर जनता ने भरोसा जताया। पिछले तीन विधानसभा चुनाव से मोहम्मद आफाक आलम का सीट पर कब्जा है। कुल मतदाताओं की बात करें तो उनकी संख्या 2,80,771 है। इनमें 1,45,550 पुरुष और 1,35,221 महिला वोटर्स हैं। कुल मतदाताओं में 40.20 फीसदी यानी 1,13,933 मतदाता मुस्लिम हैं।
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2020 चुनाव का रिजल्ट
2010 से लगातार विधायक आफाक आलम पर कांग्रेस ने दांव खेला। उनके खिलाफ लोक जनशक्ति पार्टी ने भाजपा से तीन बार के विधायक रहे प्रदीप कुमार दास को उतारा। मगर उन्हें आफाक आलम के हाथों 17,278 मतों से हार का सामना करना पड़ा। एनडीए ने यह सीट जीतनराम मांझी की पार्टी हम के खाते में दी थी। हम के प्रत्याशी राजेंद्र यादव को कुल 23,716 वोट मिल थे। कुल 13 प्रत्याशी मैदान में से 11 की जमानत जब्त हो गई थी। किशनगंज और पूर्णिया जिले की बाकी विधानसभा सीटों की तरह यहां ओवैसी की पार्टी खास जलवा नहीं दिखा पाई। उसके प्रत्याशी सिर्फ 5,316 मतों से संतोष करना पड़ा।
पिछले चुनाव में किसको-कितने वोट मिले
कांग्रेस |
42 फीसदी |
एलजेपी |
32.6 फीसदी |
हम |
12.9 फीसदी |
निर्दलीय |
4.4 फीसदी |
एआईएमआईएम |
2.9 फीसदी |
मौजूदा विधायक का परिचय
कस्बा विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक मोहम्मद आफाक आलम की गिनती बिहार के दिग्गज कांग्रेस नेताओं में होती है। वे 2010 से लगातार तीन बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। फरवरी 2005 में आफाक आलम ने पहली बार समाजवादी पार्टी की टिकट से विधानसभा चुनाव जीता था। मगर नंवबर में दोबारा विधानसभा चुनाव होने पर उन्हें भाजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार दास के हाथों हार का सामना करना पड़ा था, तब उन्होंने आरजेडी की टिकट पर चुनाव लड़ा था। 2010 में कांग्रेस से चुनाव लड़े और अभी तक अजेय हैं।
2020 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक आफाक आलम के पास 89 लाख से अधिक की संपत्ति और 35 हजार रुपये से अधिक देनदारी है। उन्होंने साल 1981 में पटना विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की थी। किसानी को अपना व्यवसाय बता रखा है। कस्बा थाने में उनके खिलाफ एक मामला भी दर्ज है।
विधानसभा सीट का इतिहास
बिहार में पहली बार विधानसभा चुनाव 1952 में संपन्न हुए। तब से 1967 तक कस्बा विधानसभा पूर्णिया सीट का हिस्सा थी। 1967 में पहली बार इसे अलग विधानसभा बनाया गया। लगातार छह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों को जीत मिली। 1967 से 1990 तक कांग्रेस का दबदबा रहा। 1990 विधानसभा चुनाव में पहली बार शिवचरण मेहता ने कांग्रेस से यह सीट छीनी और जनता दल के खाते में डाल दी। यहां कांग्रेस कुल आठ बार चुनाव जीत चुकी है।
भाजपा के प्रदीप कुमार दास तीन बार विधायक बने। हैट-ट्रिक लगाने वालों में कांग्रेस नेता राम नारायण मंडल और मोहम्मद आफाक आलम भी शामिल हैं। हालांकि आफाक आलम ने फरवरी 2005 का चुनाव समाजवादी पार्टी की टिकट से जीता था। कस्बा विधानसभा सीट पर आरजेडी और जेडीयू को एक बार भी जीत नहीं मिली। 2010 से अभी तक कस्बा विधानसभा सीट पर कांग्रेस नेता आफाक आलम का ही कब्जा है।
कस्बा विधानसभा: कब-कौन जीता
वर्ष |
विजेता |
पार्टी |
1967 |
राम नारायण मंडल |
कांग्रेस |
1969 |
राम नारायण मंडल |
कांग्रेस |
1972 |
राम नारायण मंडल |
कांग्रेस |
1977 |
जय नारायण मेहता |
कांग्रेस |
1980 |
मोहम्मद यासिन |
कांग्रेस (आई) |
1985 |
सैयद गुलाम हुसैन |
कांग्रेस |
1990 |
शिवचरण मेहता |
जनता दल |
1995 |
प्रदीप कुमार दास |
बीजेपी |
2000 |
प्रदीप कुमार दास |
बीजेपी |
2005 (फरवरी) |
मो. आफाक आलम |
सपा |
2005 (अक्टूबर) |
प्रदीप कुमार दास |
बीजेपी |
2010 |
मो. आफाक आलम |
कांग्रेस |
2015 |
मो. आफाक आलम |
कांग्रेस |
2020 |
मो. आफाक आलम |
कांग्रेस |
नोट: आंकड़े भारत निर्वाचन आयोग