संजय सिंह, पटना। वर्तमान समय में चुनाव प्रचार का तरीका बदलता जा रहा है। अब बैनर पोस्टर के बदले चुनाव का प्रचार सोशल मीडिया के माध्यम से ज्यादा हो रहा है। जातीय सम्मेलन, सामूहिक भोज भी चुनाव प्रचार का माध्यम बनता जा रहा है। आरजेडी के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह प्रचार के इन तरीकों से हमेशा दूर रहे। उनका जीवन सादगी से भरा था। वे अपने को लोहिया का अनुयायी बताते थे। चुनाव प्रचार के लिए वे कभी लाखों करोड़ों रुपया खर्च नहीं करते थे। उनकी कोशिश होती थी कि नाश्ता या भोजन कार्यकर्ताओं के ही घर हो। इससे कार्यकर्ता और नेताओं के बीच प्रगाढ़ संबंध बना रहता था। उनका सुबह का प्रिय नाश्ता दही चूड़ा था।
रघुवंश बाबू का राजनीतिक कद बहुत ऊंचा था। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भी उनका पूरा सम्मान करते थे। अपनी राजनीति कुशलता के बदौलत ये केंद्रीय मंत्री भी बने। लोगों के बीच वे काफी लोकप्रिय थे। अपने क्षेत्र के वोटरों से वे कभी हिंदी में बात नहीं करते। क्षेत्र में मिलने जुलने के दौरान वे अपनी स्थानीय भाषा बज्जिका का इस्तेमाल करते थे।
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छोटे आयोजनों का आमंत्रण मिलता था
उनकी लोकप्रियता का पैमाना यह था कि छोटे-छोटे आयोजनों का भी लोग उन्हें आमंत्रण देते थे। उनकी कोशिश रहती थी कि अधिकांश आमंत्रण में वे स्वयं शामिल हों। उनका मानना था कि आमंत्रण प्रचार-प्रसार और मिलने जुलने का बढ़िया तरीका है। आयोजन स्थल पर एक साथ सौ दो सौ लोगों की मौजूदगी रहती है। वहां अपनी बात रखने में आसानी होती है। लोगों को समझाने में भी आसानी होती है।
'रघुवंश बाबू को पूरी बात समझ में आ गई'
उनके करीबी बताते हैं कि साल 1980 में वे बेलसंड विधानसभा का चुनाव प्रचार कर रहे थे। उनके साथ कुछ कार्यकर्ता भी थे। सुबह से चुनाव प्रचार करते करते अब रात हो चली थी। कार्यकर्ताओं को भूख लग रही थी। लेकिन लाज के मारे कोई कुछ बोल नहीं रहा था। रघुवंश बाबू को पूरी बात समझ में आ गई थी। उनके साथ चलने वाले हरेराम कहते हैं कि रास्ते में एक जगह महिलाएं मंगल गीत गा रही थीं। पेट्रोमेक्स की रोशनी से आयोजन स्थल जगमग हो रहा था।
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अगुवाई के लिए दौड़े लोग
उन्होंने चालक को गाड़ी रोकने का इशारा किया। गाड़ी रुक गई, कार्यकर्ताओं से पूछा इनके यहां से आमंत्रण है या नहीं। भूखे कार्यकर्ताओं ने हामी भर दी। रघुवंश बाबू उतरे और आयोजन स्थल की ओर बढ़ चले। वहां मौजूद लोग उनकी अगुवाई के लिए दौड़ पड़े। लोगों का उत्साह देखने लायक था। भोजन करने के बाद रघुवंश बाबू ने आधे घंटे तक उपस्थित लोगों के बीच अपनी बात रखी। फिर खुशी खुशी वहां से विदा हो गए। वे हमेशा कहा करते थे कि आमंत्रण जनसंपर्क का सबसे बढ़िया माध्यम है। जनसंपर्क के लिए वे जिस भी गांव में जाते उसी गांव के कार्यकर्ताओं के यहां उनके भोजन और नाश्ते की व्यवस्था रहती थी। इस इलाके के लोग आज भी उनके कुशल व्यवहार और सादगी के कायल हैं।