बिहार का सहरसा जिला के अलावा विधानसभा सीट भी है। विधानसभा सीट का गठन सहरसा नगर परिषद, कहरा सामुदायिक विकास खंड, सौर बाजार सीडी ब्लॉक को मिलाकर हुआ है। लोकसभा में यह सीट मधेपुरा के अंतर्गत आती है। यहां गंडक, कोसी और बागमती नदियां बहती हैं। हर साल यह नदियां अपने साथ इलाके में बाढ़ के साथ भारी तबाही लाती हैं। बुनियादी ढांचा तबाह होने से लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यह विधानसभा सीट शुरुआत में तो कांग्रेस का गढ़ रही है। मगर बाद में यहां बीजेपी का दबदबा देखने को मिला। आरजेडी उम्मीदवारों को भी सफलता मिली। बिहार की अन्य विधानसभा सीटों की तरह ही सहरसा में बाढ़, पलायन, बेरोजगारी, सड़क-बिजली और पानी बड़ा मुद्दा है।
सीट का समीकरण
2020 के चुनावी आंकड़ों के मुताबिक सहरसा विधानसभा सीट में कुल 3,50,424 मतदाता हैं। पुरुष वोटर की संख्या 1,82,606 और महिला मतदाताओं की संख्या 1,67,818 है। इस सीट पर यादव मतदाताओं का दबदबा है। आंकड़ों के मुताबिक यादव मतदाताओं की संख्या 17.4 फीसदी है। मुस्लिम वोटर्स भी अच्छी खासी तादाद में हैं। इनकी हिस्सेदारी लगभग 14.6 फीसद है। यहां मुस्लिम और यादव फैक्टर हार-जीत में अहम होता है। अगर शहरी और ग्रामीण अनुपात की बात करें तो लगभग 69.46 फीसदी मतदाता गांवों में रहते हैं और 30.54 फीसदी वोटर्स शहरी हैं। अनुसूचित जाति के मतदाताओं की हिस्सेदारी करीब 12.05 फीसद है।
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2020 विधानसभा चुनाव का रिजल्ट
पिछले चुनाव में कुल 14 प्रत्याशी मैदान में थे। भाजपा ने आलोक रंजन को टिकट दिया। आरजेडी ने उनके सामने लवली आनंद को अपना प्रत्याशी बनाया। आलोक को कुल 103,538 वोट मिले। लवली के खाते में 83,859 मत आए। आरजेडी प्रत्याशी को 19,679 मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। इन दो उम्मीदवारों के अलावा कोई और प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाया।
मौजूदा विधायक का परिचय
1995 से बीजेपी में सक्रिय आलोक रंजन बिहार सरकार में कला संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री भी रह चुके हैं। 2015 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 2020 में दूसरी बार विधायक बने। पहली बार उन्होंने साल 2010 में चुनाव जीता था। 2020 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक आलोक रंजन के पास 4 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है। 65 लाख रुपये की देनदारी भी है। अगर शिक्षा की बात करें तो उन्होंने 2007 में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा से पीएचडी किया। 1996 में इसी विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया।
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विधानसभा सीट का इतिहास
सहरसा विधानसभा सीट का गठन साल 1957 में हुआ। पहली बार यहां की जनता ने महिला प्रत्याशी पर भरोसा जताया। दूसरे चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को जीत मिली। इसके बाद लगातार तीन चुनाव कांग्रेस जीती। शंकर प्रसाद टेकरीवाल ने सहरसा में जनता पार्टी का सूर्य उदय किया। अब तक हुए 16 चुनाव में सबसे अधिक छह बार कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया। चार बार बीजेपी, जनता दल और आरजेडी ने दो-दो बार, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और जनता पार्टी ने एक-एक बार जीत हासिल की। रमेश झा लगातार चार बार चुनाव जीते। कुल 5 बार विधायक रहे। शंकर प्रसाद टेकरीवाल भी 4 बार चुनाव जीतने में सफल रहे। आलोक रंजन और संजीव कुमार झा ने दो-दो बार चुनाव जीता।
सहरसा: कब-कौन जीता?
वर्ष |
विजेता |
दल |
1957 |
विश्वेश्वरी देवी |
कांग्रेस |
1962 |
रमेश झा |
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
1967 |
रमेश झा |
कांग्रेस |
1969 |
रमेश झा |
कांग्रेस |
1972 |
रमेश झा |
कांग्रेस |
1977 |
शंकर प्रसाद टेकरीवाल |
जनता पार्टी |
1980 |
रमेश झा |
कांग्रेस |
1985 |
सतीश चंद्र झा |
कांग्रेस |
1990 |
शंकर प्रसाद टेकरीवाल |
जनता दल |
1995 |
शंकर प्रसाद टेकरीवाल |
जनता दल |
2000 |
शंकर प्रसाद टेकरीवाल |
आरजेडी |
2005 (फरवरी) |
संजीव कुमार झा |
बीजेपी |
2005 (नवंबर) |
संजीव कुमार झा |
बीजेपी |
2010 |
आलोक रंजन झा |
बीजेपी |
2015 |
अरुण कुमार यादव |
आरजेडी |
2020 |
आलोक रंजन झा |
बीजेपी |
नोट: आंकड़े भारत निर्वाचन आयोग