मुजफ्फरपुर जिले की सकरा विधानसभा सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है। इस सीट पर हमेशा से कड़ा मुकाबला देखने को मिलता रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू के अशोक कुमार चौधरी मैदान में थे। उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी उमेश कुमार राम ने कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन अंत में अशोक कुमार चौधरी ने जीत दर्ज की। दोनों के बीच काफी करीबी मुकाबला देखने को मिला था।
इस सीट का चुनावी इतिहास भी काफ़ी रोचक रहा है। 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के शिवनंदन पासवान ने कांग्रेस प्रत्याशी फकीर चंद राम को हराकर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1980 के चुनाव में कांग्रेस के फकीर चंद राम ने वापसी करते हुए जनता पार्टी सेक्यूलर के पलटन राम को पराजित किया। 1985 में लोक दल के शिवनंदन पासवान ने जीत हासिल की। वहीं 1990 और 1995 के चुनावों में जनता दल के कमल पासवान लगातार विजयी रहे और उन्होंने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत बनाई।
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मौजूदा समीकरण?
यह सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है और यहां जातीय समीकरण हमेशा से परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। यादव, दलित, महादलित और सवर्ण मतदाता यहां की राजनीति का संतुलन बदलते हैं। फिलहाल इस सीट पर जेडीयू का कब्जा है, लेकिन कांग्रेस और आरजेडी भी इसे अपने पक्ष में करने के लिए ज़ोर-आजमाइश कर रही हैं।
जेडीयू वर्तमान विधायक के दम पर यहां पकड़ बनाए रखना चाहती है, जबकि आरजेडी और कांग्रेस महागठबंधन के सहारे इस सीट पर दावा मजबूत कर रही हैं। बीजेपी भी एनडीए के साथ मिलकर सवर्ण और पिछड़े वोटरों के सहारे समीकरण साधने में जुटी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि 2025 में यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले का गवाह बन सकती है, जहां जीत-हार का फैसला कुछ हज़ार वोटों से तय होगा।
2020 में क्या हुआ था?
2020 के विधानसभा चुनाव में सकरा सीट पर एक बार फिर जेडीयू की वापसी हुई। इस बार पार्टी ने अशोक कुमार चौधरी को उम्मीदवार बनाया था, जबकि कांग्रेस ने उमेश कुमार राम को मैदान में उतारा। नतीजों में जेडीयू ने बाजी मार ली और अशोक कुमार चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी को करीबी अंतर से हराकर जीत दर्ज की। उन्हें कुल 67,265 वोट मिले, जबकि उमेश कुमार राम को 65,728 वोट हासिल हुए।
मतों के प्रतिशत पर नज़र डालें तो अशोक कुमार चौधरी को 40.25% वोट मिले, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी को 39.33% वोट हासिल हुए। बेहद मामूली अंतर से हुए इस परिणाम ने साफ़ कर दिया कि सकरा सीट पर मुकाबला हमेशा कड़ा रहता है और जातीय समीकरणों के साथ-साथ उम्मीदवार की लोकप्रियता भी जीत-हार का निर्णायक कारण बनती है।
विधायक का परिचय
अशोक कुमार चौधरी की गिनती जिले के अनुभवी नेताओं में होती है। वे मूल रूप से एक साधारण परिवार से आते हैं और छात्र राजनीति से ही सक्रिय रहे। उनकी शिक्षा स्नातक स्तर तक हुई है और राजनीति में कदम रखने के बाद उन्होंने अपने क्षेत्र में संगठनात्मक पकड़ मजबूत की।
2020 की जीत उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि रही, जिसमें उन्होंने बेहद करीबी मुकाबले में कांग्रेस उम्मीदवार को मात दी। इसके अलावा, उन्होंने अपने क्षेत्र में सड़क, बिजली और शिक्षा से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता दी है।
हालांकि, अशोक कुमार चौधरी विवादों से भी अछूते नहीं रहे। कई बार उनके बयानों ने राजनीतिक हलचल पैदा की है। विपक्ष ने उन पर जातीय समीकरण साधने और प्रशासनिक मुद्दों पर अस्पष्ट रुख अपनाने का आरोप लगाया है। इसके बावजूद, वे जेडीयू के मजबूत नेताओं में गिने जाते हैं। कुछ दिन पहले फरवरी में कुंदन कुमार ने हमला कर दिया था। यह हमला उनके सम्मान समारोह के दौरान किया गया था। पहले आरोपी ने विरोध शुरू किया था और उसके बाद मंच पर पहुंचकर विधायक के साथ मारपीट की थी।
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कब कौन जीता:
1957 – कपिलदेव नारायण सिंह (कांग्रेस)
1962 – रामगुलाम चौधरी (कांग्रेस)
1967 – महेश प्रसाद सिंह (कांग्रेस)
1969 – नेवा लाल महतो (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1972 – हीरालाल पासवान (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1977 – शिवनंदन पासवान (जनता पार्टी)
1980 – फकीरचंद राम (कांग्रेस)
1985 – शिवनंदन पासवान (लोकदल)
1990 – कमल पासवान (जनता दल)
1995 – कमल पासवान (जनता दल)
2000 – सीतल राम (आरजेडी)
2005 (फरवरी) – बिलात पासवान (जेडीयू)
2005 (अक्टूबर) – सुरेश चंचल (जेडीयू)
2010 – सुरेश चंचल (जेडीयू)
2015 – लाल बाबू राम (आरजेडी)
2020 – अशोक कुमार चौधरी (जेडीयू)