सिकटा विधानसभा: लेफ्ट से बदला लेगा NDA या निर्दलीय बिगाड़ेंगे खेल?
चुनाव
• PASHCHIM CHAMPARAN 15 Sept 2025, (अपडेटेड 15 Sept 2025, 2:02 PM IST)
सिकटा विधानसभा पर पिछली बार लेफ्ट ने जीत हासिल करके NDA को चौंका दिया था। इस बार NDA यहां हिसाब बराबर करने को आतुर है।

सिकटा विधानसभा, Photo Credit: Khabargaon
पश्चिमी चंपारण जिले की सिकटा विधानसभा वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र में आती है। इसका एक सिरा नेपाल से लगता है तो आधा हिस्सा पूर्वी चंपारण से भी लगा हुआ है। चनपटिया, लौरिया और रक्सौल जैसे विधानसभा क्षेत्र के साथ सीमा शेयर करने वाला यह विधानसभा क्षेत्र निर्दलीयों की जीत की वजह से कई बार चौंकाता भी रहा है। दिलीप वर्मा के अलावा उनके भाई धर्मेश प्रसाद वर्मा भी इस सीट से विधायक बन चुके हैं। दिग्गज नेताओं की जंग का मैदान रहे इस क्षेत्र में आज भी नेपाल से आने वाली नदियां ऐसा कटाव करती हैं कि कई गांवों से संपर्क टूट जाता है।
इस क्षेत्र में 30 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता होने का नतीजा यह है कि कुल 18 में से 9 चुनाव में यहां मुस्लिम उम्मीदवार जीते हैं। मुस्लिमों के अलावा यहां पर ब्राह्णण, रविदास और कोइरी मतदाता भी अच्छी-खासी संख्या में हैं। यहां जातियों का संतुलन बेहद जरूरी है। यही वजह है कि यहां निर्दलीय मतदाता भी बड़ी-बड़ी पार्टिओं का खेल बिगाड़ते रहे हैं।
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मौजूदा समीकरण
एक सीट पर एक उम्मीदवार दिलीप वर्मा लगभग हर चुनाव में लड़ते रहे हैं। वह पांच बार यहां से विधायक भी बने हैं और जिसमें दो बार निर्दलीय और एक-एक बार चंपारण विकास पार्टी, बीजेपी और समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते हैं। दूसरे उम्मीदवार फिरोज अहमद हैं जो एक-एक बार जेडीयू और कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव जीते चुके हैं।1991 से 2015 तक यही दोनों नेता चुनाव जीतते आ रहे थे लेकिन 2020 में बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता की एंट्री हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में नजर आने वाले दिलीप वर्मा इस चुनाव से पहले भी सक्रिय हैं। दिलीप वर्मा के अलावा उनके बेटे समृद्ध वर्मा भी इस विधानसभा क्षेत्र में खूब सक्रिय हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर बीजेपी अपना उम्मीदवार उतारती है तो बाप-बेटे में से कोई एक प्रबल दावेदार होगा।
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हालांकि, पिछला यहां से जेडीयू ने लड़ा था और दिलीप वर्मा निर्दलीय ही उतर गए थे। अगर फिर से जेडीयू को टिकट मिलती है तो दिलीप वर्मा फिर से भी चुनाव लड़ सकते हैं। पूर्व विधायक फिरोज अहमद उर्फ खुर्शीद भी इस सीट के संभावित उम्मीदवारों में से एक हैं। 2020 में चुनाव हारने से पहले वह बिहार सरकार में मंत्री भी थे। खुर्शीद आलम के नाम से मशहूर फिरोज इस बार सिकटा से चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी में हैं और अपने पैसों से कुछ काम भी करवा रहे हैं। उन्होंने अपनी जेब से पैसे खर्च करके कई जगहों पर सड़क, पुल और पुलिया भी बनवा रहे हैं। ऐसे में इस सीट पर चुनाव लड़ने वाले नेता हर दल में हैं। कई उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्हें पार्टी से टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय ही उतरेंगे और यहां की लड़ाई त्रिकोणीय या बहुकोणीय होगी।
2020 में क्या हुआ था?
साल 2000 से ही इस सीट पर हर बार बदलाव देखने को मिला है। 2020 के चुनाव में महागठबंधन की ओर से यह सीट कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माले) के खाते में आई थी। 2010 में निर्दलीय चुनाव जीते दिलीप वर्मा एक बार फिर निर्दलीय ही उतरे थे। वहीं, एनडीए की ओर से तत्कालीन विधायक फिरोज अहमद ही जेडीयू के टिकट पर फिर से चुनाव में उतरे थे। यहां पर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने भी अपना उम्मीदवार उतारा था।
सीपीआई (माले) के बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता और निर्दलीय दिलीप वर्मा में रोमांचक मुकाबला हुआ लेकिन आखिरी बाजी बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता के हाथ लगी। 2015 में सिर्फ 5639 वोट पाने वाले बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने पिछली बार के दोनों उम्मीदवारों फिरोज अहमद और दिलीप वर्मा को पीछे छोड़ दिया। बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता को 49,075 वोट मिले और वह चुनाव जीत गए। वहीं, दिलीप वर्मा 46,773 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे और तत्कालीन विधायक रहे फिरोज अहमद 35,798 वोट पाकर तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे।
विधायक का परिचय
पुराने वामपंथी बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता 2010 और 2015 में भी इसी सीट से चुनाव लड़ते आए थे। 2020 में उन्हें पहली बार जीत हासिल हुई। 2014 में वह वाल्मीकि नगर लोकसभा सीट से सीपीआई (माले) के टिकट पर ही चुनाव लड़े थे। हालांकि, उन्हें 12,581 वोट ही मिले थे। रोचक बात है कि तब दिलीप वर्मा भी वाल्मीकि नगर से चुनाव लड़े थे और उन्हें 58,817 वोट मिले थे।
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2020 में लगभग 98 लाख रुपये की संपत्ति घोषित करने वाले बिरेंद्र प्रसाद मुख्य तौर पर खेती के कामकाज से जुड़े हैं। बिहार इंटरमीडिएट काउंसिल से 12वीं तक पढ़े बिरेंद्र प्रसाद पुराने वामपंथी नेताओं में गिने जाते हैं। 2020 में उनके खिलाफ कुल 4 मुकदमे चल रहे थे, जिसमें हत्या और हत्या के प्रयास जैसे केस भी शामिल थे। एक मामला अपहरण करके हत्या का प्रयास करने और एक मामला सबूतों से छेड़छाड़ का भी था। चुनाव के ऐलान के ठीक पहले बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता जमकर उद्घाटन और शिलान्यास कर रहे हैं।
बड़ी रैलियों के बजाय वह वामपंथी दलों की तरह ही छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं, पदयात्राएं और छोटे कार्यक्रम करके अपने विधानसभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं और इस बार भी चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी में हैं।
विधानसभा का इतिहास
इस विधानसभा सीट पर सिर्फ दिलीप वर्मा ही ऐसे नेता रहे हैं जो लगातार 4 चुनाव जीते हैं। आमतौर पर कोई अन्य नेता यहां से दो बार ही चुनाव जीत पाया है। 1991 से पहले तक ज्यादातर चुनाव में कांग्रेस से ही जीतती रही है। हालांकि, 1991 के बाद कांग्रेस पार्टी यहां पर सिर्फ एक बार चुनाव जीत पाई है। तब फिरोज अहमद यानी खुर्शीद आलम ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे।
1952-फैजुल रहमान-कांग्रेस
1957-फैजुल रहमान-कांग्रेस
1962-रैफुल आजम- स्वतंत्र पार्टी
1967-यू एस शुक्ला-सीपीआई
1969-रैफुल आजम-कांग्रेस
1972-फैयाजुल आजम- कांग्रेस
1977-फैयाजुल आजम- कांग्रेस
1980-धर्मेंद्र प्रसाद वर्मा- जनता पार्टी
1985-धर्मेंद्र प्रसाद वर्मा- जनता पार्टी
1990-फैयाजुल आजम- निर्दलीय
1991-दिलीप वर्मा-निर्दलीय
1995-दिलीप वर्मा-चंपारण विकास पार्टी
2000-दिलीप वर्मा-बीजेपी
2005-दिलीप वर्मा-समाजवादी पार्टी
2005-फिरोज अहमद-कांग्रेस
2010-दिलीप वर्मा-निर्दलीय
2015-फिरोज अहमद-JDU
2020-बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता- CPI (माले)
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