बिहार के नवादा जिले में बसा वारसलीगंज एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध विधानसभा क्षेत्र है, जिसका नाम वारिस अली खान के नाम पर पड़ा, जो प्रभावशाली माई खानदान से ताल्लुक रखते थे। इस क्षेत्र का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है, जिसमें माफी गांव का महाभारत काल से संबंध, दरियापुर पार्वती में अवलोकितेश्वर मंदिर के अवशेष और अप्सरह गांव में राजा आदित्यसेन की धरोहरें शामिल हैं। नारोमुरार का 400 साल पुराना ठाकुर वाड़ी मंदिर और मकनपुर की गुप्तकालीन विष्णु प्रतिमाएं इसकी ऐतिहासिकता को और गहरा करती हैं।
मगध क्षेत्र का हिस्सा होने के नाते वारसलीगंज की उपजाऊ भूमि, सकरी नदी और नहरों से सिंचित होती है, जो इसे कृषि के लिए आदर्श बनाती है। एक समय यह चीनी और कपड़ा मिलों के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन लालू के कार्यकाल के दौरान ये इकाइयां बंद हो गईं। अब अडाणी ग्रुप की 1,400 करोड़ की सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट से क्षेत्र में रोजगार और विकास की नई उम्मीदें जगी हैं। वारसलीगंज का समृद्ध इतिहास और उभरता भविष्य इसे बिहार की राजनीति और संस्कृति में विशिष्ट स्थान दिलाता है।
यह भी पढ़ें- बिहार में नेताओं के परिवार में खूब बंटे टिकट, BJP ने कितनों को उतारा?
राजनीतिक इतिहास
1951 में स्थापित हुआ वारसलीगंज विधानसभा क्षेत्र नवादा लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है। अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों के इतिहास में इस क्षेत्र ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। शुरूआती दशकों में यह कांग्रेस का गढ़ रहा, जिसने यहां सात बार जीत दर्ज की। हालांकि, कांग्रेस की आखिरी बार जीत 1995 में हुई थी।
हालांकि, समय के साथ राजनीतिक समीकरण बदले। सीपीआई ने तीन बार, निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो बार, जनता पार्टी और जेडीयू ने एक-एक बार इस सीट पर कब्जा जमाया। बाद में बीजेपी का प्रभाव बढ़ा और उसने 2015 और 2020 में लगातार दो बार जीत हासिल की।
हालांकि, इस बार के चुनाव के लिए वारसलीगंज में आरजेडी और कांग्रेस दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए थे, जिससे महागठबंधन के बीच का टकराव उजागर हो गया था. आरजेडी ने अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी को टिकट दे दिया तो वहीं कांग्रेस ने अपने जिलाध्यक्ष सतीश सिंह मंटन को इस सीट से उम्मीदवार बनाया है। महागठबंधन की इस आंतरिक कलह की वजह से एनडीए को फायदा मिल सकता है।
2020 में क्या स्थिति थी?
पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से बीजेपी की अरुणा देवी जीती थीं। उन्हें कुल 62,451 वोट मिले थे जो कि कुल वोटों का 36.5 प्रतिशत था। वहीं दूसरे स्थान पर कांग्रेस के सतीश कुमार थे जिन्हें कुल 53,421 वोट मिले थे। इस तरह से उनके जीत का अंतर लगभग 9000 था।
2015 में भी अरुणा देवी ही बीजेपी के टिकट पर यहां से जीती थीं, लेकिन दूसरे स्थान पर जेडीयू के प्रदीप कुमार रहे थे 66,385 मिले थे. बीजेपी ने एक बार फिर अरुणा देवी को भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया है।
विधायक का परिचय
अरुणा देवी वारसलीगंज की कद्दावर नेता हैं और स क्षेत्र में इनके परिवार का दबदबा है। शिक्षा की बात करें तो वह मैट्रिक तक पढ़ी हुई हैं। वहीं संपत्ति के मामले में उनके पास लगभग पांच करोड़ की संपत्ति है और देयता लगभग 48 लाख की। वहीं आपराधिक मामलों की बात करें तो उनके ऊपर कुछ खास आपराधिक मामला नहीं है।
अरुणा देवी के पति अखिलेश सिंह इस क्षेत्र के काफी रसूख और पैसे वाले व्यक्तियों में गिने जाते हैं जबकि अरुणा देवी की छवि का साफ-सुथरी नेता की है। हालांकि, इस बार के चुनाव में अनीता देवी के मैदान में उतरने से उनके लिए चुनौतियां काफी बढ गई हैं, क्योंकि वह अशोक महतो की पत्नी हैं जो कि हाल ही में जेल काटकर बाहर आए हैं और काफी जोरशोर से प्रचार प्रसार में लगे हैं।
यह भी पढ़ें- 243 सीटें लड़ने का दावा कर रहे प्रशांत किशोर, 2 कैंडेडिट ने वापस ले लिया नाम
विधानसभा का इतिहास
1952- चेतू राम (कांग्रेस)
1957- रामकिशुन सिंह (कांग्रेस)
1962- राम किशुन सिंह (कांग्रेस)
1967- देव नंदन प्रसाद (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया)
1969- देव नंदन प्रसाद (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया)
1972- श्याम सुंदर प्रसाद सिंह (कांग्रेस)
1977- राम रतन सिंह (जनता पार्टी)
1980- बंदी शंकर सिंह (कांग्रेस)
1985- बंदी शंकर सिंह (कांग्रेस)
1990- देव नंदन प्रसाद (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया)
1995- रामाश्रय प्रसाद सिंह (कांग्रेस)
2000- अरुणा देवी (निर्दलीय)
2005 (फरवरी) - अरुणा देवी (लोक जनशक्ति पार्टी)
2005 (अक्टूबर) - अरुणा देवी (निर्दलीय)
2010- प्रदीप महतो (जेडीयू)
2015- अरुणा देवी (बीजेपी)
2020- अरुणा देवी (बीजेपी)