देश में कई चुनाव हुए हैं जिसमें कैंडिडेट से ज्यादा नारों ने लोगों की सुर्खियां बटोरी। 2014 के चुनाव में केंद्र में 'अबकी बार मोदी सरकार' जमकर लगा था। बिहार की चुनावी राजनीति में भी नारों का हमेशा से एक केंद्रीय स्थान रहा है। कई बार एक छोटा-सा नारा ही चुनाव की हवा को पूरी तरह से बदल देता है, मतदाताओं के मन में घर कर जाता है और चुनाव परिणामों पर गहरा असर डालता है। बिहार के राजनीतिक इतिहास में ऐसे कई नारे रहे हैं जिन्होंने जनता को आंदोलित किया और बड़े सामाजिक समीकरणों को प्रभावित किया। आइए डालते हैं उन चुनावी नारों पर नजर-
बिहार की राजनीति में पिछले 10 साल में खासकर 2014 के बाद के चुनावों में कई ऐसे नारे लगे हैं जिन्होंने चुनावी नतीजों और राजनीतिक माहौल पर गहरा असर डाला है। बिहार के चुनावों को बदलने वाले कुछ सबसे असरदार नारे:
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1. 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है'
विधानसभा चुनाव 2015 का नारा। जेडीयू के नेतृत्व वाला महागठबंधन (जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस)। इस नारे का मकसद नीतीश कुमार की 'सुशासन' वाली छवि फिर से लोगों को याद दिलाना। यह 15 साल के लालू-राबड़ी शासन के 'जंगल राज' की तुलना में एक सकारात्मक बदलाव का संदेश लेकर आया। 2015 में इस नारे ने महागठबंधन को शानदार जीत दिलाई। हालांकि, तब इस गठबंधन में खुद लालू यादव की पार्टी भी शामिल थी।
2. 'झांसे में ना आएंगे, नीतीश को जिताएंगे'
विधानसभा चुनाव 2015, यह नारा नेशनल लेवल पर 'मोदी लहर' के विपरीत स्थानीय नेतृत्व और विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। यह नारा मतदाताओं को किसी भी 'बाहरी प्रभाव' या 'झूठे वादों' से दूर रहने की अपील करता था, जिससे महागठबंधन की स्थानीय पकड़ मजबूत हुई।
3. 'अबकी बार मोदी सरकार'
लोकसभा चुनाव 2014, बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए)। इस नारे का राष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल किया गया था, लेकिन बिहार में भी इसने 'मोदी लहर' को जबरदस्त मजबूती दी। उसने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों को बिहार में बड़ी जीत दिलाने में मदद की, जिससे राज्य में राष्ट्रीय राजनीति का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखा।
4. 'मैं भी चौकीदार'
लोकसभा चुनाव 2019, बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए, यह नारा राष्ट्रीय स्तर पर चलाए गए भ्रष्टाचार विरोधी और राष्ट्रवाद के अभियान का हिस्सा था। 2019 के लोकसभा चुनावों में, यह नारा भी बिहार के मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को एनडीए के पक्ष में एकजुट करने में सफल रहा, जिसके चलते एनडीए ने बिहार में लगभग क्लीन स्वीप किया।
5. 'जंगल राज बनाम सुशासन' या '15 साल बनाम 15 साल'
विधानसभा चुनाव 2020, जेडीयू और बीजेपी (एनडीए), हालांकि यह एक स्पष्ट नारा नहीं था, लेकिन जेडीयू और बीजेपी ने अपने पूरे अभियान को लालू-राबड़ी के 15 साल के शासन को 'जंगलराज' बताकर और नीतीश कुमार के 15 साल के कार्यकाल को 'सुशासन' बताकर मतदाताओं के सामने एक तुलना पेश की। यह रणनीति 2020 के चुनाव में एनडीए को सत्ता में वापस लाने में सफल रही। हालांकि, जीत का अंतर बहुत कम था।
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6. 'तेजस्वी का नौकरी बम' / 'युवाओं की पुकार, तेजस्वी सरकार'
विधानसभा चुनाव 2020, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाला महागठबंधन, तेजस्वी यादव ने अपने अभियान को '10 लाख नौकरियों' के वादे के इर्द-गिर्द केंद्रित किया। बिहार में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा रही है और यह वादा युवा मतदाताओं के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ। इस वादे ने महागठबंधन को 2020 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने में मदद की और यह नारा आज भी आरजेडी के लिए एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बना हुआ है।
7. 2005 में 'हम बदलेंगे बिहार, इस बार बीजेपी सरकार; 'अपराध, भ्रष्टाचार और अहंकार, क्या इस गठबंधन से बचेगा बिहार? नीतीश का नारा जंगलराज के खिलाफ था। जदयू ने 88 सीटें जीतीं, बिहार में पहली बार स्थिर सरकार बनी। नारों ने विकास का नैरेटिव सेट किया।
8. 2000 में बीजेपी ने बिहार में नारा दिया था, 'भ्रष्टाचार हटाओ, देश बचाओ' और लालू ने इसके उलट नारा दिया- 'जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू'। लालू का मजाकिया नारा लोकप्रिय हुआ।