संजय सिंह, पटना। जन सुराज पार्टी ने अपने 51 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। इस सूची में सामाजिक, जातीय और क्षेत्रीय समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया है। पार्टी ने अपनी सूची में युवा, समाजसेवी, शिक्षाविद और पूर्व नौकरशाहों को प्राथमिकता दी है। 18 विधानसभा सीटों पर जन सुराज ने उन चेहरों पर दांव लगाया है, जो चुनाव को त्रिकोणीय बना सकते हैं। एनडीए के संभावित प्रत्याशी अब इसी को ध्यान में रखकर अपना चुनावी समीकरण बनाने में जुटे हैं।
कितने प्रभावशाली जन सुराज के प्रत्याशी?
जन सुराज पार्टी ने सर्वे के आधार पर अपने उम्मीदवारों को ठोक बजाकर उतारा है। वैसे उम्मीदवारों को ज्यादा महत्व दिया है, जिनकी लोकप्रियता स्थानीय स्तर पर मजबूत है। जातीय समीकरण का भी पूरा ध्यान रखा है। एनडीए के वोट बैंक में सेंधमारी करने की क्षमता रखने वाले उम्मीदवारों को अहम सीटों पर उतारा गया। 2020 के चुनाव में जहां हार जीत का अंतर कम वोटों से था, वहां जन सुराज का ज्यादा फोकस है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही जन सुराज बड़ी संख्या में सीटें ना जीते, लेकिन वह कई जगहों पर बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती है।
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18 सीटों पर बढ़ सकती है मुश्किलें
एनडीए की मुजफ्फरपुर, दरभंगा, कुम्हरार, सोनपुर, प्राणपुर, आरा, गोपालगंज समेत 18 स्थानों पर मुश्किलें बढ़ सकती है। जब जन सुराज का प्रचार अभियान तेज होगा तो एनडीए प्रत्याशियों की मुश्किलें बढ़ेगी। सीट शेयरिंग के बाद जिन लोगों को टिकट नहीं मिलेगा, वैसे लोग भितरघाती बनकर जन सुराज के उम्मीदवार की मदद कर सकते हैं। जन सुराज ने टिकट देने में साफ छवि के लोगों को अधिक तवज्जो दी।
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दरभंगा से होमगार्ड के पूर्व डीजीपी आरके मिश्रा चुनाव मैदान में हैं। मिश्रा का मुकाबला संजय सरावगी से होगा। सरावगी मंत्री भी रहे हैं। इसी तरह गोपालगंज में डॉक्टर शशि शेखर को टिकट दिया गया है। पिछले उप चुनाव में यहां से पूर्व मंत्री सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी बहुत कम वोट से जीती थीं। यहां भी कांटे की टक्कर होने की संभावना है। प्राणपुर में भी पूर्व मंत्री विनोद सिंह की पत्नी निशा सिंह मात्र तीन हजार वोट से जीती थीं। मुजफ्फरपुर में भी कांटे की टक्कर हो सकती है।
संगठन के मामले में कमजोर है जन सुराज
कई लोगों को जन सुराज की टिकट की उम्मीद थी। जमीनी पकड़ और जन संपर्क के मामले में पार्टी ने खूब काम किया। युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल की, लेकिन धरातल पर पार्टी का संगठन मजबूत नहीं है। चुनावी बाजी पलटने में संगठन की भूमिका भी अहम होती है। हालांकि सतही तौर पर संगठन बनाने पर पूरी कोशिश की गई है, लेकिन चुनाव में यह संगठन कितना कारगर होगा यह तो वक्त बताएगा?