हम सभी अक्सर अपने परिवार और दोस्तों के साथ सिनेमाघरों में फिल्म देखने जाते हैं। बड़े पर्दे पर फिल्म देखने का अपना ही मजा है। स्क्रीन पर विलेन का हीरो को पीटना, हीरोइन का डांस, गानों के साथ दमदार कहानी आपको तीन घंटे के लिए जोड़े रखती है। क्या आपने सोचा है कि कभी फिल्म के बीच में इंटरवल या इंटरमिशन क्यों आता है। इसके पीछे कई कारण हैं।
बॉलीवुड फिल्मों के बीच में इंटरवल इसलिए दिया जाता है ताकि लोग को कुछ देर के लिए रिफ्रेशमेंट एन्जॉय करें। आपको सिनेमाघरों के बाहर खाने- पीने के लिए तमाम चीजें मिल जाएगी। इसका फायदा सिनेमाघरों के मालिकों को मिलता है। इससे मोटा मुनाफा होता है।
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क्यों फिल्म के बीच में होता है इंटरवल
इसके अलावा इंटरमिशन इसलिए भी जरूरी है कि दर्शक फिल्म के दूसरे हॉफ को लेकर काफी एक्साइटेड रहे। वे इस बात को जानने के लिए उत्सुक रहे कि फिल्म की कहानी आगे क्या मोड लेगी। 1960 और 1970 के दशक में इंटरमिशन का इस्तेमाल उस समय में फिल्मों की रील बदलने के लिए किया जाता था। पहले के समय में एक फिल्म को दो रील्स में बनाया जाता था।
हॉलीवुड में नहीं होता है इंटरवल
आपको जानकर हैरानी होगी कि हॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल नहीं होता है। उनकी फिल्म 100 मिनट की होती है। ज्यादा लंबी नहीं होने की वजह से लोग इन फिल्मों में इंटरवल देखना पसंद नहीं करते हैं। बॉलीवुड में 3 घंटे से ज्यादा की फिल्म होती है जिसमें आधे घंटे का इंटरवल होता है। बॉलीवुड फिल्म 'इत्तेफाक' में भी कोई इंटरवल नहीं था। राजेश खन्ना की ये फिल्म राजेश खन्ना की ये फिल्म 1 घंटा 44 मिनट की थी। इस फिल्म का निर्देशन यश चोपड़ा ने किया था।
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इन फिल्मों में थे दो इंटरवल
बॉलीवुड की दो फिल्में ऐसे भी हैं जिनमें एक नहीं दो इंटरवल थे। ये दोनों फिल्में बहुत ज्यादा लंबी थी। राज कपूर की फिल्म 'संगम' और 'मेरा नाम जोकर' में दो इंटरवल थे। एक फिल्म हिट हुई थी और दूसरी बुरी तरह से पिट गई थी। राज कपूर ने 'संगम' बनाई थी जिसमें वैजयंतीमाला, राज कपूर और राजेंद्र कपूर लीड रोल में थे। ये फिल्म 4 घंटे 13 मिनट की थी। 1964 में ये फिल्म रिलीज हुई थी। इस फिल्म ने वर्ल्डवाइड 8 करोड़ का बिजनेस किया था। राज कपूर का ड्रीम प्रोजेक्ट 'मेरे नाम जोकर' बुरी तरह से पिट गई थी। इस फिल्म के फ्लॉप होने के बाद राज कपूर कर्जे में डूब गए थे।