फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन क्या है जिसने 'शोले' को प्रिजर्व करने का काम किया है?
अमिताभ बच्चन और धर्मेद्र की 1975 में आई 'शोले' फिल्म 50 साल बाद फिर बड़े पर्दे पर आ रही है। इसे फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने प्रिजर्व और रिस्टोर किया है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। (Photo Credit: film heritage foundation)
फिल्में सिर्फ समाज का आइना ही नहीं होती हैं, बल्कि इस बात का सबूत भी होती हैं कि हम कौन हैं? और कहां से आए हैं? फिल्मों का इतिहास एक सदी से भी ज्यादा पुराना है। मगर बहुत सी बेहतरीन फिल्में हमेशा के लिए खो चुकी हैं। दशकों पुरानी फिल्मों को सहेजकर रखने का काम कुछ संस्थाएं कर रही हैं। भारत में भी एक ऐसी ही गैर-सरकारी संस्था है, जिसका नाम 'फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन' है। यह फाउंडेशन भारतीय सिनेमा की विरासत को बचाकर रखने का काम कर रही है।
यह फाउंडेशन अब इसलिए चर्चा में आ गई है, क्योंकि 1975 में आई अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की फिल्म 'शोले' को रिलीज कर रही है। 70 के दशक में आई 'शोले' भारतीय सिनेमा की कुछ चुनिंदा फिल्मों में से एक है। अब यह फिल्म 12 दिसंबर को देशभर की 1,500 स्क्रीन पर दोबारा रिलीज की जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म को 4K में रिलीज किया जाएगा।
फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने एक पोस्ट कर बताया, 'जीपी सिप्पी की 'शोले- द फाइनल कट' को फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने 4K में ठीक किया है, जिसमें ओरिजिनल एंडिग पहली बार दिखाई जाएगी। इसे सिप्पी फिल्म्स 12 दिसंबर को पूरे भारत में 1,500 स्क्रीन पर रिलीज करने वाला है।'
https://twitter.com/FHF_Official/status/1997194987562492212
फाउंडेशन ने अपनी पोस्ट में आगे बताया, 'यह रिस्टोर की गई किसी फिल्म की अब तक की सबसे बड़ी रिलीज है, जो भारत की सबसे मशहूर फिल्म के पहली बार रिलीज होने के 50 साल बाद बड़े पर्दे पर वापसी के लिए सही है।'
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यह फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन क्या है?
मशहूर फिल्म मेकर और आर्काइविस्ट शिवेंद्र सिंह डुंगरपुर ने 2014 में 'फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन' की स्थापना की थी। इस फाउंडेशन का मकसद सिनेमाई विरासत को बचाना और सहेजकर रखना है।
हॉलीवुड ने 90 के दशक में फिल्म प्रिजर्वेशन के महत्व को समझ लिया था। आज के समय में हॉलीवुड के लगभग सभी बड़े स्टूडियो की अपनी आर्काइव लाइब्रेरी हैं, जहां क्लासिक फिल्मों को रिस्टोर कर रखा जाता है।
https://twitter.com/taran_adarsh/status/1996874144559124770
शिवेंद्र सिंह डुंगरपुर ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'इतनी समृद्ध फिल्म इंडस्ट्री होने के बावजूद भारत में कुछ ही आर्काइव्स लाइब्रेरी हैं, जहां फिल्मों को प्रिजर्व कर रखा जाता है।'
उन्होंने कहा था, 'फिल्म प्रिजर्वेशन, रिस्टोरेशन से पहले आता है। अगर आप अपनी फिल्मों को प्रिजर्व नहीं करते तो आपके पास रिस्टोरेशन के लिए कुछ नहीं बचेगा। यह साबित हो चुका है कि अगर सेल्युलाइड फिल्मों को सही तरह से प्रिजर्व करके रखा जाए तो वे 100 साल तक टिक सकती हैं। भारत पहले ही कई कारणों से अपनी सिनेमाई विरासत का एक बड़ा हिस्सा खो चुका है।'
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इस फाउंडेशन की जरूरत क्यों पड़ी?
फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन को इसलिए बनाया गया ताकि पुरानी फिल्मों को प्रिजर्व करके रखा जा सके और उन्हें रिस्टोर किया जा सके। फाउंडेशन की वेबसाइट पर कुछ आंकड़े हैं, जो बताते हैं कि यह जरूरी क्यों है?
- भारत में लगभग 1,700 साइलेंट फिल्में बनी हैं लेकिन इनमें से 90% फिल्में पूरी तरह खो चुकी हैं। आर्काइव में सिर्फ 5-6 फिल्में ही बची हैं।
- साइलेंट एरा में मद्रासी इंडस्ट्री में 124 फिल्में और 38 डॉक्यूमेंट्री बनी थीं लेकिन इनमें से आज सिर्फ एक ही फिल्म 'मार्तंड वर्मा' बची हुई है।
- आवाज आने के बाद 1931 से 1941 के बीच 250 फिल्में बनीं, जिनमें से सिर्फ 15 ही बची हैं। 1950 तक 70-80% फिल्में खो चुकी थीं। पहली साउंड फिल्म 'आलम आरा' भी अब नहीं बची है।

क्यों नहीं बच पातीं फिल्में?
फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के मुताबिक, फिल्मों को प्रिजर्व करके रखना बहुत मुश्किल काम है। फाउंडेशन का कहना है कि फिल्म अपनी केमिकल प्रॉपर्टीज के कारण बहुत नाजुक होती है। पुरानी फिल्में खराब हो जाती हैं तो नई फिल्मों का कलर उतर जाता है।
1950 से पहले की फिल्में नाइट्रेट से बनी होती थीं, जो बहुत जल्दी आग पकड़ लेता है। स्टूडियो में या फिर प्रोजेक्टर में चलाते वक्त कई फिल्में खराब हो गईं।
1950 के बाद नाइट्रेट की जगह सेल्युलोज एसिटेट से फिल्में बनने लगीं। इन फिल्मों में आग का खतरा तो कम था लेकिन ये भी जल्दी खराब हो जाती थीं।
जब कलर फिल्में बननी शुरू हुईं तो इनमें 'डाई कपलर' का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन इनमें तेजी से रंग उड़ने की समस्या थी।
अब डिजिटल दुनिया में तकनीक आ गई है लेकिन डिजिटल डेटा को भी सुरक्षित रखना भी उतना ही मुश्किल भरा काम है। अभी तक ऐसा कोई डिजिटल प्लेटफॉर्म नहीं है, जिसकी उम्र 100 साल तक चलने वाली फिल्म जैसी हो।
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फाउंडेशन का काम क्या है?
फाउंडेशन का काम सिर्फ पुरानी फिल्मों को बचाना और सहेजकर रखना ही नहीं है। बल्कि यह फाउंडेशन नई पीढ़ी को भी तैयार कर रही है जो भविष्य में फिल्मी विरासत को संभालकर रख सकें।
इसके लिए फाउंडेशन हर साल ट्रेनिंग भी देता है। फाउंडेशन हर साल 'फिल्म प्रिजर्वेशन एंड रिस्टोरेशन वर्कशॉप' का आयोजन करता है। इसमें देशभर से युवा आते हैं और लगभग दो हफ्ते तक लैब में रहते हैं। इसमें फिल्मों के प्रिजर्वेशन से लेकर रिस्टोरेशन तक का काम सिखाया जाता है।
पैसा कहां से आता है?
अब सवाल उठता है कि इतना बड़ा काम करने के लिए फाउंडेशन के पास पैसा कहां से आता है? तो यह समझ लीजिए कि यह पूरी तरह से गैर-सरकारी और गैर-लाभकारी संस्था है। इसे सरकार से कोई फंडिंग नहीं मिलती।
फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन डोनेशन पर चलती है। इसकी वेबसाइट के मुताबिक, फाउंडेशन को आमिर खान प्रोडक्शन, जमना लाल बजाज फाउंडेशन, पीवीआर, राजकुमार हिरानी फिल्म्स, टाटा ट्रस्ट, विनोद चोपड़ा फिल्म्स, वायकॉम 18 फिल्म और यशराज फिल्म्स जैसे संस्थानों से डोनेशन मिलता है।
इनके अलावा अमिताभ बच्चन, अनुराग कश्यप, फरहान अख्तर, हंसल मेहता, संजीव कपूर, सिद्धार्थ रॉय कपूर, राजीव आनंद और जयप्रकाश चौकसे जैसी हस्तियों से भी डोनेशन मिलता है।
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