ब्रेन ईटिंग अमीबा: 19 मौतें, दहशत में लोग, वह सब जो आप जानना चाहते हैं
केरल में ब्रेन ईटिंग अमीबा की वजह से करीब 19 मौतें हो चुकी हैं। यह बीमारी कोविड से ज्यादा खतरनाक है। क्या है यह बला, आइए समझते हैं।

ब्रेन ईटिंग अमीबा। (AI Image। Photo Credit: Sora)
बीते 6 सितंबर को केरल में एक 45 साल के आदमी की मौत हो गई। 8 सितम्बर को एक 56 साल की महिला की मौत हुई। मौत की वजह डॉक्टरों ने एमेबिक मनिंगोसिफैलिटिस बताती है। यह एक अमीबा है जो लोगों का दिमाग खा जाता है। पिछले एक महीने में केरल में 19 मौतें हो चुकी हैं जो ब्रेन ईटिंग अमीबा की वजह से हुई। सिर्फ इस साल ही, केरल में 40 से ज्यादा केस रिपोर्ट हो चुके हैं।
ब्रेन ईटिंग अमीबा है क्या? कहां पाए जाते हैं ये और कहां से आते हैं? यह इतना तेजी से कैसे फैल रहा है? इसका पानी से क्या कनेक्शन है? पानी के इस्तेमाल को लेकर किस तरह की सावधानी बरतने की जरूरत है? लोग इसे वायरस मान रहे हैं लेकिन यह वायरस नहीं है, वायरस से कहीं ज्यादा घातक है।
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ब्रेन ईटिंग अमीबा है क्या?
ब्रेन ईटिंग अमीबा को वैज्ञानिक नेग्लेरिया फॉउलेरी बताते हैं। यह इतना छोटा जीव है, जिसे आंखों से नहीं देखा जा सकता है, इन्हें माइक्रोस्कोप के सहारे देखा जा सकता है। इसका कोई फिक्स्ड आकार नहीं होता। यह अपनी बॉडी को इधर-उधर खींचकर या सिकोड़कर चलता है। जेली जैसा दिखता है। ये ज्यादातर पानी में पाया जाता है। कुछ अमीबा इंसानों या जानवरों के शरीर में भी रहते हैं।
नेग्लेरिया फॉउलेरी क्या है?
यह 'एक कोशिकीय' जीव है, जो अमीबा ग्रुप का हिस्सा है। साल 1960s में ऑस्ट्रेलिया में इसे पाया गया था। वहां रहस्यमयी परिस्थितियों में बच्चों की मौत हो रही थी। लगातार हो रही मौतों की वजह से डॉक्टरों ने इस पर शोध किया तो पता चला कि यह नेग्लेरिया फॉउलेरी है।
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कहां मिलता है ब्रेन ईटिंग अमीबा?
यह अमीबा गरम फ्रेश-वाटर एनवायरनमेंट्स में जिंदा रहता है। झीलों, नदियों, हॉट स्प्रिंग्स और अच्छी तरह से क्लोरीनेट ना किए गए स्विमिंग पूल्स में इनकी मौजूदगी होती है। जो साफ पानी हो, जरूरी नहीं है कि वह पूरी तरह से सुरक्षित भी हो। यह अमीबा 25°C से 46° सेल्सियस के बीच के टेम्परेचर के पानी में तेज़ी से बढ़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक तापमान बढ़ने के साथ इसका फैलाव हो रहा है।
कैसे असर करता है?
नेग्लेरिया फाउलरी एक सूक्ष्मजीव है जो गर्म, रुके हुए पानी जैसे झीलों, तालाबों या अनट्रीटेड स्विमिंग पूल में पाया जाता है। अगर आप इस दूषित पानी को पी लें, तो पेट का एसिड इसे मार देता है, लेकिन अगर ये पानी नाक के रास्ते शरीर में घुस जाए तो खतरा शुरू होता है। यह अमीबा नाक से होते हुए दिमाग तक पहुंचता है। वहीं इसका विस्तार होता है और ब्रेन टिश्यू को खाना शुरू कर देता है। इसे प्राइमरी अमीबिक मेनिन्जोएन्सेफलाइटिस (PAM) कहते हैं, जो एक जानलेवा बीमारी है।
लक्षण क्या दिखते हैं?
शुरुआती लक्षण सामान्य फ्लू जैसे होते हैं, जैसे- सिरदर्द, बुखार, उल्टी और थकान। 3-4 दिन बाद हालत बिगड़ने लगती है। गर्दन में अकड़न, भटकाव, दौरे, कोमा और आखिर में मौत हो सकती है। यह सब कुछ 7-14 दिनों में हो जाता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि शुरुआती लक्षणों को डॉक्टर अक्सर सामान्य बीमारी समझ लेते हैं और जब तक सही डायग्नोसिस होता है, तब तक ब्रेन डैमेज इतना हो चुका होता है कि बचना मुश्किल हो जाता है।
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क्यों है इतना खतरनाक?
- 97% से ज्यादा मरीज इस इन्फेक्शन से मर जाते हैं।
- यह इतनी तेजी से दिमाग दिमाग पर असर डालता है कि इलाज का समय नहीं मिलता।
- शुरुआती लक्षण सामान्य बीमारियों जैसे होने से सही पहचान में देरी होती है।
- अभी तक इसका कोई विश्वसनीय इलाज नहीं है।
कहां से आया ये खतरा?
1965 में ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में पहली बार इस अमीबा का पता चला, जब स्विमिंग के बाद कई बच्चे अजीब तरीके से मर गए। तब से दुनिया भर में इसके छिटपुट मामले सामने आते रहे हैं। अमेरिका में 2010 में 7 साल के काइल लुईस की मौत ने लोगों को चौंकाया। पाकिस्तान के कराची में भी पिछले 10 सालों में कई मामले नलके के अनट्रीटेड पानी से नाक धोने के कारण सामने आए। कुछ लोग चमत्कारिक ढंग से बचे भी हैं। 2013 में अमेरिका की 12 साल की कलि हार्डिग ने इस इन्फेक्शन से जंग जीती। डॉक्टरों ने उन्हें एंटीफंगल दवाएं और हाइपोथर्मिया थेरेपी दी, जिससे वो बच गईं। ऐसे मामले बेहद कम हैं।
बचें कैसे?
- स्विमिंग करते वक्त नोज क्लिप का इस्तेमाल करें ताकि पानी नाक में न जाए।
- स्विमिंग पूल को अच्छी तरह क्लोरीनेट करें।
- नाक साफ करने लिए सिर्फ उबला या स्टरलाइज्ड पानी इस्तेमाल करें।
- अनट्रीटेड नल का पानी नाक में जानें से बचाएं
इस अमीबा से बचने का सबसे अच्छा तरीका है जागरूकता। अगर लोग इसके खतरों को समझें और बचाव के तरीके अपनाएं, तो कई जिंदगियां बच सकती हैं। वैज्ञानिक इसकी दवा खोजने में जुटे हैं, लेकिन प्रिवेंशन ही सबसे बड़ा इलाज है।
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