चीन के पास है तुरुप का इक्का, क्या जिनपिंग के सामने झुकेंगे ट्रंप
अमेरिका को झुकाने के लिए चीन ने कमर कस ली है और झुकने को तैयार नहीं है। हालांकि, अभी अमेरिका के भी तेवर हल्के होते हुए दिखाई नहीं पड़ रहे हैं।

डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग। Photo Credit: Khabargaon
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर जारी है। कुछ दिन पहले अमेरिका ने पूरी दुनिया के लिए रेसिप्रोकल टैरिफ को बढ़ाने के अपने फैसले को 90 दिनों तक के लिए रोक दिया लेकिन चीन को इससे अलग रखा। यानी कि चीन के लिए बढे हुए टैरिफ को लागू किया जाएगा जबकि बाकी देशों को फिलहाल राहत दी जाएगी, तो चीन भी कहां पीछे रहने वाला था। उसने भी कह दिया कि अमेरिका से अंतिम लड़ाई के लिए चीन तैयार है।
अमेरिकी राष्ट्रपति और वर्तमान चुनावी दावेदार डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा कदम उठाते हुए चीन से आने वाले सामानों पर 125% तक भारी टैरिफ (शुल्क) लगा दिया। ट्रंप का दावा है कि यह फैसला चीन की ‘वैश्विक बाज़ारों के प्रति असम्मानजनक’ नीतियों के कारण लिया गया फैसला है। हालांकि, रेसिप्रोकल टैरिफ ट्रंप की ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ की पॉलिसी के अंतर्गत किया जा रहा है। ट्रंप का मानना है कि दूसरे देशों द्वारा ज्यादा टैरिफ लगाए जाने की वजह से अमेरिका को नुकसान होता है और अन्य देशों को फायदा होता है।
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ट्रंप ने जहां दुनिया के बाकी देशों को टैरिफ से कुछ समय की राहत दी है, वहीं चीन को इस छूट से बाहर रखकर सीधे टकराव का रास्ता अपनाया है। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर 125% टैक्स लगा दिया, जिससे दोनों देशों के बीच तीखा व्यापारिक संघर्ष शुरू हो गया है।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध शुरू हुआ है। इससे पहले 2018 में भी इस तरह की स्थितियां बनी थीं, लेकिन पिछली बार की तुलना में इस बार की स्थिति काफी अलग है। अब चीन न केवल पहले से ज्यादा ताकतवर हो गया है बल्कि वह दुनिया के सप्लाई चेन में एक मजबूत भूमिका निभा रहा है। अमेरिका और चीन दोनों एक-दूसरे के बड़े व्यापारिक साझेदार हैं – जहां अमेरिका चीन को खाद्यान्न, तेल, मशीनरी और मेडिकल इक्विपमेंट सप्लाई करता है, वहीं चीन अमेरिका को इलेक्ट्रॉनिक सामान, खिलौने, कपड़े और फर्नीचर जैसी वस्तुएं भारी मात्रा में भेजता है। लेकिन चीन के पास कई ऐसी चीजें है जो कि अमेरिका को झुकाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
चीन का पलटवार
11 अप्रैल 2025 को, चीन ने ट्रंप द्वारा टैरिफ को खत्म न किए जाने की कार्रवाई को ‘मजाक’ कहकर खारिज कर दिया और उसने भी अमेरिकी सामानों पर 125% का भारी टैरिफ लगा दिया। इसके साथ ही दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक व्यापार युद्ध में फंस गई हैं।
2018 में चीन की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही थी और उसका बहुत बड़ा हिस्सा अमेरिका से आने वाले व्यापार पर निर्भर था। उस समय चीन के कुल निर्यात का करीब 19.8% हिस्सा अमेरिका जाता था। लेकिन 2023 तक यह आंकड़ा घटकर सिर्फ 12.8% रह गया। अब चीन अमेरिका पर उतना निर्भर नहीं रहा जितना वह पहले हुआ करता था।
चीन ने अब इसकी काट खोज ली है और अपने घरेलू बाज़ार को बढ़ावा दे रहा है। यानी अब वह अपने ही लोगों की खरीदने की ताकत या कहें क्रय शक्ति को बढ़ाकर अपना बाज़ार मजबूत करना चाहता है।
अमेरिका की निर्भरता ज्यादा
हालांकि, बढ़े हुए टैरिफ के कारण अमेरिका में चीन से आने वाले सामानों की सीधी खरीदारी में कमी आई है, लेकिन अभी भी अमेरिका कई जरूरी चीजों के लिए चीन पर निर्भर है। 2022 तक अमेरिका 532 महत्वपूर्ण वस्तुओं के लिए चीन पर निर्भर था, जो साल 2000 की तुलना में चार गुना ज़्यादा है। इसके उलट, चीन की अमेरिकी वस्तुओं पर निर्भरता आधी रह गई।
ट्रंप के इस फैसले से अमेरिकी जनता, खासकर मध्यम और गरीब तबके के लोगों की समस्याएं बढ़ सकती हैं क्योंकि कई उत्पादों की कीमतें बढ़ जाएंगी। इसकी वजह से अमेरिका में महंगाई और जनता में नाराज़गी बढ़ सकती है, जो कि ट्रंप के लिए चुनावी नुकसान का कारण बन सकता है।
क्या कहते हैं आंकड़े
अमेरिका का चीन को निर्यात
2023 में अमेरिका ने चीन को कुल $147.8 बिलियन मूल्य का सामान निर्यात किया।
- खनिज ईंधन और तेल: $19.74 बिलियन
- तेल बीज और अनाज: $15.85 बिलियन
- मशीनरी और परमाणु रिएक्टर: $13.72 बिलियन
- इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण: $11.64 बिलियन
- ऑप्टिकल और मेडिकल उपकरण: $11.31 बिलियन
- फार्मास्यूटिकल उत्पाद: $9.90 बिलियन
- वाहन (रेलवे और ट्रामवे के अलावा): $8.14 बिलियन
- प्लास्टिक: $7.45 बिलियन
- विमान और अंतरिक्ष यान: $6.81 बिलियन
- जैविक रसायन: $4.21 बिलियन
- मांस और खाद्य मांस बाई प्रोडक्ट: $3.34 बिलियन
- अनाज: $3.24 बिलियन
- रासायनिक उत्पाद: $3.15 बिलियन
- तांबा: $2.22 बिलियन
- अन्य वस्त्र: $1.57 बिलियन
- लकड़ी और लकड़ी से बने उत्पाद: $1.49 बिलियन
चीन का अमेरिका को निर्यात
2023 में चीन ने अमेरिका को कुल $501.22 बिलियन मूल्य का सामान निर्यात किया:
- इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण: $124.52 बिलियन
- मशीनरी और परमाणु रिएक्टर: $88.98 बिलियन
- फर्नीचर, लाइटिंग साइन और प्रीफैब्रिकेटेड बिल्डिंग: $30.66 बिलियन
- खिलौने, खेल और खेल सामग्री: $29.36 बिलियन
- प्लास्टिक: $23.25 बिलियन
- वस्त्र (बुनाई या क्रोशिया) के लेख: $18.90 बिलियन
- अन्य वस्त्र: $18.83 बिलियन
- वाहन (रेलवे और ट्रामवे के अलावा): $18.26 बिलियन
- लोहा या स्टील के लेख: $13.20 बिलियन
- जैविक रसायन: $7.43 बिलियन
- चमड़े, पशु आंत, हार्नेस और यात्रा सामान: $6.61 बिलियन
चीन के पास है तुरुप का पत्ता
चीन का रेयर अर्थ मेटल्स (Rare Earths) पर लगभग आधिपत्य है। वह अमेरिका की जरूरतों का 72 प्रतिशत निर्यात करता है। इन मेटल्स का प्रयोग टेक्नोलॉजी और हथियार बनाने होता है।
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अब ट्रेड वॉर छिड़ने के बाद चीन ने मार्च और अप्रैल में 27 अमेरिकी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है, जिनमें रक्षा और टेक्नॉलजी से जुड़ी कंपनियां शामिल हैं। खेती-किसानी के मामले में भी चीन का पलड़ा भारी है। चीन ने उन चीजों के खिलाफ भी जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है जिनमें अमेरिका चीन को निर्यात करता था जैसे कि सोयाबीन और पोल्ट्री (चिकन)।
इसका एक बड़ा हिस्सा अमेरिका चीन को निर्यात करता था। चीन ने पहले ही तीन प्रमुख अमेरिकी सोयाबीन निर्यातकों की मंज़ूरी रद्द कर दी है। इसके अलावा मंगलवार को चीन द्वारा अमेरिका से खरीदे जाने वाले बोइंग विमान पर भी रोक लगा दी है।
बड़ी अमेरिकी कंपनियों पर भी खतरा
Apple, Tesla और दूसरी बड़ी अमेरिकी कंपनियां चीन में उत्पादन करती हैं। अगर टैरिफ बढ़ते हैं तो इन कंपनियों के मुनाफे पर भी असर पड़ेगा। इसलिए चीन इन कंपनियों पर नियमों और क़ानूनों का दबाव बनाकर अमेरिका पर और दबाव डाल सकता है।
एलन मस्क जैसे बड़े कारोबारी जिनके चीन में भी व्यापारिक हित हैं, वे ट्रंप प्रशासन में अच्छा दखल रखते हैं। चीन इस स्थिति का फायदा उठाकर अमेरिकी प्रशासन में फूट डाल सकता है।
एशिया में बढ़ा रहा दोस्ती
ट्रंप की इन नीतियों से लड़ने के लिए चीन अब एशिया में आसपास के देशों को एकजुट करने में लगा है। कुछ दिन पहले चीन ने भारत के लिए भी कहा था भारत और चीन को साथ आना चाहिए। इसके अलावा चीन ने जापान और दक्षिण कोरिया के साथ भी दोस्ती बढ़ाई है।
30 मार्च 2025 को, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया ने पांच साल बाद पहली बार आर्थिक बैठक की और एक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (मुक्त व्यापार समझौता) की बात कही। यह अमेरिका के लिए झटका है क्योंकि वह इन देशों को चीन से दूर रखने की कोशिश करता रहा है।
ट्रंप द्वारा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों – वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया – पर भी भारी टैरिफ लगाने के बाद अब ये देश चीन के करीब जा रहे हैं। शी जिनपिंग 14 से 18 अप्रैल के बीच इन तीनों देशों की यात्रा पर जा रहे हैं, ताकि इनसे हर स्तर पर सहयोग को बढ़ाया जा सके।
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यूरोप की ओर भी चीन का झुकाव
यूरोपीय संघ (EU) और चीन के बीच पहले तनाव था, लेकिन अब दोनों एक-दूसरे से सहयोग बढ़ाने की सोच रहे हैं। 8 अप्रैल को EU के अध्यक्ष और चीन के प्रधानमंत्री ने अमेरिका की नीतियों की आलोचना की और खुला व्यापार बढ़ाने की बात की।
9 अप्रैल को EU ने भी अमेरिकी सामान पर 25% टैक्स लगाने की घोषणा की। अब जुलाई में EU और चीन एक बड़ी व्यापारिक बैठक करने जा रहे हैं।
डॉलर पर भी खतरा
ट्रंप की इन टैरिफ नीतियों का असर अमेरिकी डॉलर की वैश्विक स्थिति पर भी पड़ रहा है। जब इतने सारे देशों पर एक साथ टैरिफ लगाए जाते हैं, तो निवेशकों का भरोसा डगमगाने लगता है।
डॉलर और अमेरिकी सरकारी बॉन्ड्स को हमेशा से दुनिया भर में ‘सुरक्षित निवेश’ माना जाता रहा है, लेकिन अब ये छवि कमजोर हो रही है। इससे डॉलर की कीमत गिर सकती है और अमेरिका की आर्थिक स्थिति को लेकर दुनिया में चिंता बढ़ रही है।
किसका पलड़ा भारी?
ट्रंप द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ चीन की अर्थव्यवस्था को जरूर चोट पहुंचाएंगे, लेकिन इस बार चीन पहले से कहीं ज्यादा तैयार है। साथ ही चीन के अगर अपने सामानों के निर्यात के लिए अन्य बाजार खोज लेता है तो अमेरिका के लिए मुश्किल हो सकती है क्योंकि अमेरिका एक मैन्युफैक्चरिंग मार्केट नहीं है ऐसे में वहां पर महंगाई बढ़ सकती है और देश के भीतर भी लोगों का विरोध देखने को मिल सकता है जैसा कि कुछ दिन पहले देखने को मिला था।
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