फ्रांस के प्रधानमंत्री फ्रांस्वा सोमवार को फ्रांस की संसद में विश्वास मत हार गए हैं, जिसके बाद आज वह अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। प्रधानमंत्री बनने के महज आठ महीने बाद उन्हें यह पद छोड़ना पड़ रहा है। विश्वास मत हारने के बाद अब फ्रांस में राजनीतिक संकट गहरा गया है और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को 12 महीने में चौथी बार नए प्रधानमंत्री की तलाश करनी होगी।
फ्रांस की संसद में रखे गए विश्वास प्रस्ताव में फ्रांस्वा बारू के विरोध में 364 वोट पड़े जबकि उनके पक्ष में मात्र 194 वोट ही पड़े, जिससे उनकी विदाई पर मुहर लग गई। स्पीकर ब्राउन पिवेट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 50 के अनुसार, प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना होगा। फ्रांस्वा से पहले मिशेल बार्नियर को पीएम पद से महज तीन महीने बाद दिसंबर 2024 में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। अविश्वास प्रस्ताव में हार के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
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अब क्या करेंगे मैक्रों
फ्रांस में उपजे इस राजनीतिक संकट में अब गेंद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के पाले में है। आज प्रधानमंत्री उन्हें इस्तीफा सौंप देंगे, जिसके बाद उन्हें अगली सरकार पर फैसला लेना है। वह अब तक मध्यावधि चुनावों के विरोध में रहे हैं लेकिन फ्रांस के विपक्षी दल चुनाव कराए जाने की मांग कर रहे हैं। अगर मैक्रों अगला कदम उठाने के लिए समय लेते हैं तो फ्रांस्वा बारू को केयर टेकर पीएम की जिम्मेदारी मिल सकती है। फ्रांस के अगले प्रधानमंत्री की रेस में कई नाम चल रहे हैं। हालांकि, अंतिम फैसला राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को ही लेना है।
बार-बार गिर रही सरकार
- 2024 – गेब्रियल अट्टल (जनवरी से सितंबर)
- 2024 – मिशेल बार्नियर(सितम्बर से दिसंबर)
- 2025 – फ्रांस्वा बारू(दिसंबर 2024 से सितंबर 2025)
क्यों लाया गया अविश्वास प्रस्ताव?
फ्रांस सरकार ने सरकारी खर्च में कटौती की एक बड़ी योजना बनाई है। विपक्ष और जनता इसका विरोध कर रही है। विश्वास मत पेश होने से पहले ही विपक्ष ने संकेत दे दिए थे कि वे विश्वास मत का समर्थन नहीं करेंगे। फ्रांस्वा ने नए सुधारों को इसलिए पेश किया था क्योंकि सरकार पर कर्ज बढ़ता जा रहा था। इस समय फ्रांस का कर्ज जीडीपी का 114 प्रतिशत है। इस साल के बजट में इस कर्ज को कम करने के लिए ही बजट 2025-26 में सरकार ने बचत पर जोर दिया था लेकिन विपक्ष ने इसका विरोध किया। माना जा रहा है विपक्ष 2027 में होने वाले चुनावों के लिए तैयारी कर रहा है, जिसके चलते उन्होंने इस बचत योजना का विरोध किया। संसद में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग से पहले फ्रांस्वा ने कहा, 'आप मेरी सरकार गिरा सकते हैं लेकिन वास्तविकता को नहीं मिटा सकते। अगर खर्चे बढ़ते रहेंगे तो पहले से ही असहनीय हो चुका कर्ज का बोझ और भी बढ़ता जाएगा।' प्रधानमंत्री की इस चेतावनी के बाद भी विपक्ष ने उनका साथ नहीं दिया और वह विश्वास प्रस्ताव हार गए।
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2024 में हुए थे चुनाव
फ्रांस के राष्ट्रपति ने 2024 में राष्ट्रीय संसद भंग कर दी थी और उनके इसी फैसले के कारण वह इस राजनीतिक संकट में फंसे हैं। संसद भंग होने के बाद हुए संसदीय चुनाव में मैक्रों की उम्मीद के विपरित जनता ने खंडित जनादेश दे दिया। हालांकि, मैक्रों को उम्मीद थी कि उनके यूरोप समर्थक गठबंधन पर जनता को पूरा भरोसा है लेकिन उनका अनुमान गलत निकला और खंडित जनादेश वाली संसद कई धड़ों में बंट गई।
आधुनिक फ्रांस के इतिहास में यह पहली बार है जब संसद में किसी एक दल या गठबंधन के पास मजबूत समर्थन नहीं है। ऐसे में सत्ता पर काबिज होने के कुछ समय बाद ही सरकार गिर जाती है। वामपंथी और दक्षिणपंथी गुटों के पास पर्याप्त सीटें होने के कारण वह मिलकर सरकार गिरा देते हैं। ऐसे में राष्ट्रपति के सामने अब बड़े राजनीतिक संकट आ खड़ा हुआ है। सब की नजर राष्ट्रपति के अगले फैसले पर है।