जॉन बोल्टन: कैसे ट्रंप का करीबी दोस्त बना दुश्मन? विवाद की पूरी कहानी
एक समय डोनाल्ड ट्रंप के करीबी रहे जॉन बोल्टन अब जानी दुश्मन बन चुके हैं। इसके बीचे ट्रंप की आलोचना और बोल्टन की एक किताब है। जानते हैं पूरा विवाद कहां से शुरू हुआ?

डोनाल्ड ट्रंप और जॉन बोल्टन। (AI Generated Image)
जॉन बोल्टन एक समय डोनाल्ड ट्रंप के बेहद करीबी थे। अमेरिका की सियासत में अच्छी खासी ताकत हासिल थी। डोनाल्ड ट्रंप ने जॉन बोल्टन को अपना तीसरा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया था। उन्होंने इस पद पर 17 महीने काम किया। कई मुद्दों पर ट्रंप और उनके बीच मतभेद उभरे। अंत में जॉन बोल्टन को अपने पद से हटना पड़ा। ट्रंप का दावा था कि मैंने बोल्टन से इस्तीफा मांगा है, लेकिन बोल्टन का कहना था कि मैंने खुद ही इस्तीफा दिया। अब शुक्रवार यानी 22 अगस्त को एफबीआई ने जॉन बोल्टन के आवास पर छापेमारी की। आज बात करेंगे कि जॉन बोल्टन कैसे डोनाल्ड ट्रंप के करीबी दोस्त से दुश्मन बने। दोनों के बीच मतभेद क्या हैं और बोल्टन भारत के बारे में क्या सोचते हैं?
जॉन बोल्टन का जन्म 20 नवंबर 1948 को अमेरिका के बाल्टीमोर में हुआ। उन्होंने येल विश्वविद्यालय से बीए और येल लॉ स्कूल से कानून की पढ़ाई की। बोल्टन राजनेता के अलावा वकील और राजनयिक रह चुके हैं। अगर कैरियर की बात करें तो 2005 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका का राजदूत नियुक्त किया गया था। उस वक्त जॉर्ज डब्ल्यू. बुश राष्ट्रपति थे। 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने बोल्टन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया। मगर 17 महीने में ही पद से हटना पड़ा। जॉन बोल्टन को आक्रामक विदेश नीति का पक्षधर माना जाता है। उनकी 'हॉकिश' यानी युद्धक विचारधारा दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
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वेनेजुएला को तबाह करने वाले बोल्टन
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहते हुए जॉन बोल्टन ने वेनेजुएला पर सबसे अधिक सख्ती बरती थी। इनकी सलाह पर ट्रंप ने वेनेजुएला पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। विदेश में मौजूद वेनेजुएला की संपत्ति को जब्त किया। तेल पर लगी पाबंदी के बाद वेनेजुएला की पूरी अर्थव्यवस्था ही ध्वस्त हो गई। तेल पर लगे प्रतिबंध के बाद कोई देश वेनेजुएला से ईंधन खरीदने को तैयार नहीं था। वह अपना अधिकांश तेल ब्लैक मार्केट में बेचने लगा। पूरे देश में महंगाई और मंदी का नया दौर शुरू हुआ। लगभग 70 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। वेनेजुएला पर जॉन बोल्टन की अधिकतम दबाव की रणनीति ने यह दिखा दिया कि कैसे अमेरिका बिना गोली चलाए किसी देश को तबाह कर सकता है?
ट्रंप और बोल्टन के बीच क्या मतभेद?
जॉन बोल्टन ने अपने कार्यकाल में हमेशा अधिकतम दबाव की नीति की वकालत की। उनका मानना था कि अमेरिका को ईरान, उत्तर कोरिया और वेनेजुएला पर अधिक दबाव बनाए रखना चाहिए। मगर ट्रंप उनकी इस नीति से सहमत नहीं थे। बोल्टन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहते ही ट्रंप के साथ मतभेद उभरने लगे थे। बोल्टन हमेशा संयुक्त राष्ट्र और आईसीसी जैसे संस्थानों के आलोचक रहे हैं। इराक युद्ध का समर्थन करन वाले बोल्टन का मानना है कि अमेरिका की सैन्य शक्ति का इस्तेमाल और एकतरफा कार्रवाई जरूरी है।
जॉन बोल्टन ने दो किताबें लिखी हैं। उनकी नई किताब 'The Room Where It Happened' साल 2020 में प्रकाशित हुई। बोल्टन की इस किताब से ट्रंप बिल्कुल खुश नहीं हैं, क्योंकि ट्रंप सरकार, उसकी विदेश नीति और फैसले लेने के तरीके के बारे में इस किताब में खुलासा है। ट्रंप प्रशासन ने जॉन बोल्टन पर किताब के माध्यम से गोपनीय जानकारी सार्वजनिक करने का आरोप लगाया है। 22 अप्रैल को एफबीआई की छापेमारी इसी सिलसिले में हुई।
- उत्तर कोरिया: उत्तर कोरिया के मामले में ट्रंप और बोल्टन के बीच मतभेद थे। उनका मानना था कि कूटनीति से कुछ नहीं होने वाला है। अमेरिका को उत्तर कोरिया पर कड़े प्रतिबंध और अधिकतम दबाव बनाए रखना होगा, जबकि ट्रंप तानाशाह किम जोंग उन से सीधी मुलाकात पर यकीन रखते थे। जॉन बोल्टन की नहीं चली। ट्रंप ने तीन बार किम जोंग उन से मुलाकात की। बाद में बोल्टन ने इसकी आलोचना भी की।
- ईरान: जॉन बोल्टन और ट्रंप ईरान के मामले में भी एकमत नहीं थे। 2018 में ईरान से परमाणु समझौता तोड़ने वाले ट्रंप ने बाद में पलटी मारने की कोशिश की। उन्होंने ईरान से सीधे बातचीत करने और डील का प्रयास किया। जबकि बोल्टन ईरान पर सैन्य हमले और दबाव बनाने की रणनीति पर काम करना चाहते थे। साल 2019 में अमेरिका ने ईरान पर हमले का प्लान तैयार किया था। मगर ऐन वक्त पर ट्रंप ने इसे टाल दिया तो बोल्टन भड़क उठे थे।
- तालिबान: अफगानिस्तान और तालिबान पर भी दोनों के विचार अलग-अलग थे। ट्रंप तालिबान से बातचीत करना चाहते थे। मगर बोल्टन इस कदम को खतरनाक मानते थे। उनका मानना था कि अमेरिका को तालिबान पर भरोसा नहीं करना चाहिए। वह नहीं चाहते थे कि अमेरिका जल्दबाजी में अफगानिस्तान छोड़े। बोल्टन ने ट्रंप को चेतावनी दी थी कि वह तालिबान पर भरोसा करके बड़ी गलती कर रहे हैं।
- वेनेजुएला: जॉन बोल्टन ने अपने कार्यकाल में वेनेजुएला में तख्तापलट की खूब कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो पर ट्रंप ने सख्ती की जगह नरमी बरतनी शुरू की तो बोल्टन ने इसका भी विरोध किया। वह वेनेजुएला पर सीधे सैन्य दखल चाहते थे। मादुरो पर दो बार ड्रोन से हमले की कोशिश की गई। वेनेजुएला का मानना है कि इन हमलों की साजिश जॉन बोल्टन ने रची थी।
बोल्टन की किताब से क्यों चिढ़े ट्रंप?
जॉन बोल्टन ने अपनी किताब में डोनाल्ड ट्रंप पर अमेरिका की विदेश नीति को अपने निजी हित में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ ट्रंप की बातचीत का जिक्र किया। ट्रंप ने शी से कहा था कि चीन अमेरिका से बड़ी मात्रा में गेहूं और सोयाबनी खरीदे ताकि 2020 के चुनाव में इसका फायदा मिल सके।
- किताब में यह भी दावा किया गया कि ट्रंप दुनिया के तानाशाह नेताओं के प्रति झुकाव रखते हैं। कई बार वह तानाशाहों की तारीफ कर चुके हैं। जॉन बोल्टन की किताब के मुताबिक ट्रंप ने व्लादिमीर पुतिन, किम जोंग और शी जिनपिंग की तारीफ में कहा था कि ये लोग कितने मजबूत हैं।
- बोल्टन का दावा है कि ट्रंप को वैश्विक मामलों की गहरी जानकारी नहीं है। वह न तो रिपोर्ट्स पढ़ते हैं और नहीं मीडिया ब्रीफिंग सुनते हैं। उन्हें सिर्फ टीवी न्यूज पर यकीन है। बोल्टन ने ट्रंप के इतिहास और भूगोल के ज्ञान पर भी सवाल उठाए और एक बैठक का जिक्र किया। जिसमें ट्रंप ने फिनलैंड को रूस का हिस्सा बता दिया था। बता दें कि हाल ही में ट्रंप ने अलास्का को भी रूस का हिस्सा बता दिया था।
- बोल्टन ने अपनी किताब में ट्रंप की शैली को अराजक और अनिश्चित करार दिया। उनका दावा है कि ट्रंप बार-बार अपने सलाहकारों को बदलते हैं। एक ही मुद्दे पर रोजाना अलग-अलग बयान देते हैं और फैसले अचानक लेते हैं। ट्रंप सरकार की असली नीति क्या है? इस पर अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा टीम भी भ्रम की स्थिति में होती है। बोल्टन का आरोप है कि ट्रंप ने विदेश नीति को इस तरीके से इस्तेमाल करने की कोशिश की, जिससे उन्हें चुनाव में फायदा मिल सके। ट्रंप प्रशासन ने इस किताब का प्रकाशन रुकवाने की खूब कोशिश की। मगर सफलता नहीं मिली। बाद में ट्रंप ने बोल्टन को न केवल झूठा बल्कि युद्ध भड़काने वाला तक कह दिया।
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क्या जॉन बोल्टन पर हुई बदले की कार्रवाई?
एनबीसी न्यूज से बातचीत में जेडी वेंस ने दावा किया कि जॉन बोल्टन के खिलाफ कार्रवाई ट्रंप की आलोचना की वजह से नहीं की जा रही है। अगर कोई अपराध नहीं किया तो हम उनके खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चलाएंगे। अगर कोई अपराध हुआ तो राजदूत बोल्टन को कोर्ट में अपना दिन गुजारना होगा। एफबीआई के निदेशक काश पटेल ने एक्स पर लिखा कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। एफबीआई एजेंट मिशन पर हैं। उनकी पोस्ट को अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी ने शेयर किया और लिखा कि अमेरिका की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। न्याय की रक्षा की जाएगी। काश पटेल ने 2023 में लिखी अपनी किताब में जॉन बोल्टन को डीप स्टेट का सदस्य बताया था।
एफबीआई के छापेमारी पर क्या बोले ट्रंप?
जॉन बोल्टन के आवास पर छापेमारी के मामले में डोनाल्ड ट्रंप कहा कि मैंने तलाशी की न्यूज कवरेज देखी है। मुझे उम्मीद है कि न्याय विभाग इसके बारे में जानकारी देगा। एक इंटरव्यू में बोल्टन ने खुद ही कहा था कि पूरा अंदाजा है कि उनकी कड़ी जांच हो सकती है। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से ठीक पहले बोल्टन ने यह भी कहा था कि जो कोई भी ट्रंप से असहमत होता है, उसे बदले की चिंता करनी चाहिए।
भारत के बारे में क्या सोचते हैं बोल्टन?
जॉन बोल्टन भारत को रणनीतिक साझेदार के तौर पर मानते हैं। हाल ही में भारत पर ट्रंप के टैरिफ की भी उन्होंने आलोचना की थी। वे भारत के साथ अच्छे रिश्तों के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि अगर चीन को काबू करना है तो भारत के साथ संतुलन बनाना जरूरी है। जॉन बोल्टन यह भी चाहते हैं कि भारत को अमेरिका उन्नत तकनीक और हथियारों में सहायता करे।
डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका ने पाकिस्तान पर खूब सख्ती दिखाई थी। इसका एक कारण जॉन बोल्टन भी थे, क्योंकि वह खुद ही पाकिस्तान पर सख्ती के पक्षधर है। वह पाकिस्तान को आतंक का ठिकाना मानते हैं।
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