पाकिस्तान का सिरदर्द बन गए TTP की शुरुआत कैसे हुई? पढ़िए पूरी कहानी
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने इस्लामाबाद की लाल मस्जिद पर हमला करवाया था और यही हमला आज तक पाकिस्तान को परेशान कर रहा है।

सांकेतिक तस्वीर, File Photo Credit: PTI
एक कुख्यात आतंकी है। नाम है नूर वली महसूद। अमेरिका ने उस पर 25 करोड़ का इनाम रखा हुआ है। महसूद, तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान यानी TTP का मौजूदा अमीर। अमीर यानी मुखिया। 2018 में मुल्ला फजलुल्लाह की हत्या के बाद महसूद को TTP की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। महसूद पढ़ा लिखा था। उसने TTP को संगठित करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। TTP का ख़ूब PR किया। उसकी छवि सुधारने की कोशिश की। एक किताब भी लिखी, जिसमें अपने संगठन के मिशन के बारे में तफसील से बातें लिखी।
उसकी लीडरशिप में TTP ने फिर पेस पकड़ना शुरू किया क्योंकि पाकिस्तान के ऑपरेशन ज़र्ब-ए-अज्ब (Zarb-e-Azb) के बाद TTP कमज़ोर पड़ गई थी। महसूद ने अपनी लीडरशिप में कई बड़े बदलाव देखे। 2021 में तालिबान की अफगानिस्तान में वापसी हुई। पाकिस्तान ने पहले तो इसे ख़ूब सेलिब्रेट किया। फिर कहा कि अफगान तालिबान TTP को शरण दे रहे, उनकी मदद कर रहे। तालिबान की वापसी के कुछ महीने बाद से ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संबंध खट्टे होने लगे। जो पाकिस्तान कभी तालिबान और अफगानिस्तान को भाई कहता था। अब वही उसकी आंख में चुभने लगा।
तालिबान-भारत की करीबी से चिढ़ा पाकिस्तान?
भारत ने तालिबान की वापसी पर कोई शोर नहीं मचाया, चुपके से काम लिया। वहां हमारे सैकड़ों करोड़ का निवेश है। स्ट्रेटजी के लिहाज से भी वह इलाका भारत के लिए ज़रूरी है इसलिए शांति से काम लिया गया। नतीजा हुआ कि अफगानिस्तान के अंतरिम विदेश मंत्री भारत के दौरे पर आए और भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर समेत कई लोगों से मुलाकात की।
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भारत और तालिबान की इस क़रीबी से पाकिस्तान असहज है। इस असहजता का असर भी अब दिखने लगा है। 9 अक्टूबर को जब मुत्तकी भारत में थे, तब काबुल में धमाकों की आवाज़ आई। कहा गया कि एयर स्ट्राइक हुई है। लोकल मीडिया में लिखा गया कि ये हमले फाइटर जेट पाकिस्तान से आए थे, इसमें TTP के मुखिया महसूद को निशाना बनाया गया है। वहां की मीडिया में एक जलती हुई कार की फोटो दिखाई जा रही है। कहा गया कि इसी गाड़ी में महसूद था और हमले में उसकी मौत हो गई है।
हमला हुआ है यह बात तो अफगानी तालिबान भी मान रहा है। सरकार के प्रवक्ता ज़बिउल्लाह मुजाहिद ने X पर धमाके की जानकारी दी। अगर हमला पाकिस्तान की तरफ से किया गया है और इसमें वाकई महसूद की मौत हो गई है तो यह पाकिस्तान के लिए एक बहुत बड़ी सफलता मानी जाएगी क्योंकि उसकी लीडरशिप में TTP ने पाकिस्तान पर दर्जनों आतंकी हमले किए हैं। इसमें सैकड़ों लोग मारे गए हैं इसलिए यह पाकिस्तान की एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है। बस जानकारों ने इस हमले की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं क्योंकि हमला, मुत्तकी की भारत आमद पर हुआ है।
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जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान, भारत और तालिबान की करीबियों से बौखलाया हुआ है। इसलिए राजधानी पर हमला करके बता रहा है कि हमारे दुश्मन से दोस्ती की तो अच्छा नहीं होगा। पढ़िए महसूद और TTP की पूरी कहानी और समझिए कि पाकिस्तान की सरकार से इनकी क्या दुश्मनी है?
कैसे हुई TTP की शुरुआत?
पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम में एक इलाका पड़ता है। पिछड़ा हुआ इलाका। नाम है फे़डरली एडमनिस्ट्रेटेड ट्राइबल एरियाज़ (FATA)। नाम से ही पता चलता है यहां ट्राइबल ज़्यादा रहते हैं। पश्तून कबीलों की संख्या यहां ज़्यादा है। बाजौर, मोहम्मद, खैबर, ओऱकज़ई, कुर्रम जैसे ज़िले यहां पड़ते हैं। अफगानिस्तान से यह इलाका सटा हुआ है। अब पाकिस्तान का हिस्सा है लेकिन 2018 के पहले ऐसा नहीं था। FATA सेमी-ऑटोनोमस हुआ करता था। यानी पूरी तरह पाकिस्तान के कानून यहां नहीं चलते थे। कबीलाई राज था यहां। वे अपने कानूनों के मुताबिक़ फैसले लेते थे। यहीं से TTP की शुरुआत हुई है इसलिए इसके बारे में जानना जरूरी है।
जैसा हमने अभी बताया कि यह इलाका अफगानिस्तान से भी सटा हुआ है। इसलिए वहां हुई कोई भी हलचल का असर यहां पड़ता था। अभी भी पड़ता है। 9/11 हमला हुआ तब भी यह हलचल उस इलाके में दिखी। अमेरिका के नेतृत्व में जब NATO सेना अफ़ग़ानिस्तान में घुसी तब, अफ़ग़ान तालिबान, अलक़ायदा और दूसरे चरमपंथी संगठन वहां से भागे। ये सब बॉर्डर क्रॉस करके FATA में घुसे। उस समय पाकिस्तान में परवेज़ मुशर्रफ़ की सरकार थी। US ने मुशर्रफ़ पर दबाव बनाया। पैसे भी दिए। कहा कि अपने यहां से आतंकियों को निकालो।
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इसी दबाव की वजह से मजबूरन मुशर्रफ़ को पाक सेना FATA में भेजनी पड़ी। इससे FATA के कबीलों में नाराज़गी हुई। वहां की जनता भी सरकार से नाराज़ हुई। चरमपंथी संगठनों ने इस नाराज़गी को हवा दी। उन्होंने आम लोगों को लड़ने के लिए उकसाया। जो उनके साथ नहीं आए, उन्हें रास्ते से हटा दिया गया। इसके बाद इन गुटों ने आपस में मिलकर पाक आर्मी के ख़िलाफ़ मिलकर लड़ना शुरू किया।
इस्लामाबाद की लाल मस्जिद
FATA के संगठनों को वैचारिक तौर पर प्रेरणा अफगान तालिबान से ही मिल रही थी लेकिन पाकिस्तान के हमले के बाद उनका मकसद तालिबान से एकदम अलग हो गया। पाकिस्तानी तालिबान पाक सेना के खिलाफ़ था और वह पूरे पाकिस्तान में इस्लामिक कानून लागू करना चाहता था। इसलिए उन्होंने FATA में अपना वर्चस्व कायम कर लिया। धीरे-धीरे पाकिस्तानी तालिबान ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू किया। वे FATA से निकलकर ख़ैबर-पख्तूनख़्वां में दाखिल हुए। फिर पाकिस्तान के अलग-अलग शहरों से लोगों को अपने मकसद में शामिल किया। ये लोग भड़काऊ भाषण देते। पैम्पलेट बांटते। ज़्यादातर बेरोज़गार युवाओं को टारगेट करते। ऐसे नौजवान भी उनके टारगेट में रहते जो पहले ही मॉडरेट रिलीजियस होते। यानी नमाज़ रोज़ा किया करते। इसी क्रम में इस्लामाबाद में उनका अड्डा बनी। लाल मस्जिद।
इस मस्जिद की भी बड़ी रोचक कहानी है। 1965 में इसे बनाया गया, सरकार ने इसे पूरा संरक्षण दिया। मस्जिद पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का पूरा प्रभाव था। यहां इस्लाम की कट्टरपंथी व्याख्या पेश की जाती। अब्दुल अज़ीज़ और अब्दुल राशिद, ये दो भाई मस्जिद का मैनेजमेंट देखा करते थे। अब्दुल अज़ीज़ का इसमें ज़्यादा प्रभाव था। ये सब 9/11 के आतंकी हमले तक तो ठीक चला लेकिन फिर इसमें बदलाव आने लगा। इस हमले के बाद मुशर्रफ़ ने अमेरिका से हाथ मिला लिया था। लाल मस्जिद के इमाम ने इसे इस्लाम के ख़िलाफ़ बताया। उसने फतवा जारी करके लोगों से FATA में पाक आर्मी के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए कहा।
मुशर्रफ ने करवा दिया हमला
2007 में लाल मस्जिद ने चार्टर जारी कर शरिया कानून लगा दिया। वे गुट बनाकर कट्टर इस्लामी नियमों का पालन कराते थे। उन्हें सरकार और संविधान से कोई मतलब नहीं था। उन्होंने धमकी दे रखी थी कि अगर हम पर ऐक्शन लिया तो हंगामा हो जाएगा।
जुलाई 2007 की बात है। लाल मस्जिद से जुड़े लोगों ने कुछ चीन की लड़कियों को किडनैप कर लिया। आरोप लगाया कि ये लड़कियां देह-व्यापार करतीं है। यह बात चीन तक पहुंची। वहां से मुशर्रफ़ को फोन आया। उनकी रिहाई के लिए दबाव बनाया गया लेकिन लाल मस्जिद वाले इसके लिए राज़ी नहीं हुए। उनसे बात करने के लिए सरकार ने डेलिगेशन भी भेजे लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। पूरी इंटरनेशनल मीडिया में इसकी रिपोर्टिंग हो रही थी। अमेरिका और चीन का दबाव पहले ही था। मीडिया कवरेज की वजह से पाकिस्तान की छवि पर बात बन आई थी इसलिए मुशर्रफ़ ने बिना ज़्यादा सोचे मस्जिद के अंदर सेना भेज दी।
दो दिन तक चले इस ऑपरेशन में मस्जिद की तरफ से लगभग 100 लोग मारे गए। 11 पाक सैनिकों की मौत भी हुई। इस तरह लाल मस्जिद को आज़ाद करा लिया गया। यह मामला यहीं पर शांत नहीं होने वाला था। इस घटना पर दुनिया के कई जिहादी गुटों ने बयान जारी किए। अलक़ायदा से लेकर इस्लामिक स्टेट तक ने नाराज़गी जताई। आतंकी संगठनों ने पाकिस्तान सरकार के ख़िलाफ़ जिहाद का ऐलान कर दिया। मुशर्रफ़ एक छोटी समस्या से बचना चाह रहे थे। अब उनके सामने पहाड़ खड़ा था लेकिन अमेरिका ने मदद का वादा किया क्योंकि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में हमले में उनकी मदद जो की थी।
यूं बन गया TTP
इस पूरे विवाद में FATA और खैबर पख्तूनख्वां के आतंकी गुटों में ज़बरदस्त एकता आई। अलग-अलग गुटों में बंटे पाकिस्तानी तालिबान ने साथ मिलने का फ़ैसला किया। दिसंबर 2007 में पाकिस्तानी तालिबान के 40 नेताओं ने मिलकर TTP की स्थापना की। उन्होंने TTP के बैनर तले काम करने की शपथ खाई। बैतुल्लाह महसूद को TTP का पहला अमीर बनाया गया।
शुरुआत में पाक सरकार ने इसको बहुत गंभीरता से नहीं लिया। मगर TTP बहुत गंभीर थी। लाल मस्जिद के मदरसे में पढ़ने वाले 70 प्रतिशत से अधिक बच्चे FATA से थे। मस्जिद पर सेना की कार्रवाई के बाद वे अपने घरों को लौटे। उनमें से अधिकतर ने अफ़ग़ान तालिबान को जॉइन किया। कुछ लड़के पाकिस्तानी तालिबान के लिए काम करने लगे। लाल मस्जिद की घटना के अगले एक साल में पाकिस्तान में कुल 88 बम धमाके हुए। इसमें हज़ार से ज़्यादा पाकिस्तानी मारे गए और तीन हज़ार से अधिक लोग घायल हुए। अगस्त 2008 में पाकिस्तान सरकार ने TTP पर बैन लगा दिया। उनके नेताओं से जुड़े अकाउंट्स और संपत्तियों को फ़्रीज़ कर दिया गया।
आतंक के खिलाफ़ इस लड़ाई में अमेरिका ने वादे के मुताबिक पाकिस्तान का साथ दिया। 2009 में अमेरिका ने TTP के पहले मुखिया बैतुल्लाह महसूद को ड्रोन हमले में मार गिराया। उसकी हत्या के बाद हकीमुल्लाह महसूद को TTP का ज़िम्मा सौंपा गया। वह बहुत कट्टर नेता था। 2013 तक उसने TTP की कमान संभाली रही। उसने कई बार अमेरिका को सीधे हमले की धमकी दी। CIA के अधिकारियों पर हमले के आरोप भी इस पर लगे। 1 नवंबर 2013, उत्तरी वज़ीरिस्तान में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया।
उसके बाद मौलाना फज़लुल्लाह को TTP का तीसरा नेता चुना गया। जी हां चुना गया। ये लोग शूरा के ज़रिए ही चुनाव करते हैं। मौलाना फज़लुल्लाह भी कट्टर नेता था। लड़कियों को स्कूल भेजने के खिलाफ़ था। उसके करीबियों ने ही मलाला पर हमला किया था। फज़लुल्लाह ने TTP को एक किया, मज़बूत किया और अफगान तालिबान से संबंध बेहतर किए।
TTP vs पाकिस्तान
जुलाई 2014 में पाकिस्तान सरकार ने FATA में ऑपरेशन Zarb-e-Azb चला दिया। इस ऑपरेशन के बाद TTP की क्षमता 70 प्रतिशत तक घट गई थी। उनकी लीडरशिप छिन्न-भिन्न हो चुकी थी। इसके कारण पाकिस्तान में होने वाले आत्मघाती बम हमलों की संख्या भी घटी। फिर भी वे छिटपुट स्तर पर आतंक फैलाने में सफल थे। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि TTP के लड़ाकों को अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षित पनाह मिल रही थी। वॉर ऑन टेरर NATO पर भारी पड़ने लगा था। अफ़ग़ान तालिबान उभर रहा था। और दोनों देशों की सरकारों के बीच कई असहमतियां थीं।
जो हिस्सा पाकिस्तान में बचा रह गया था, उसको सिरे से मिटाने के लिए पाक आर्मी ने फरवरी 2017 में ऑपरेशन रद्द उल-फसाद चलाया। TTP के कई बड़े नेताओं को सरेंडर करना पड़ा। मौलाना फज़लुल्लाह ग्रामीण इलाके में जाकर छिप गया लेकिन जून 2018 में उसे भी अमेरिकी हमले में मार गिराया गया। फिर मुफ्ती नूर वली महसूद नया अमीर चुना गया। 2021 में तालिबान की अफगानिस्तान में वापसी हुई।
पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान ने कहा कि अफगानिस्तान ने गुलामी की ज़ंजीरें तोड़ी हैं लेकिन यही सेलीब्रेशन बाद में फीका पड़ गया क्योंकि तालिबान ने TTP को शरण देनी शुरू कर दी। गुड तालिबान और बैड तालिबान की बहस ठंडी पड़ गई।
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान को दी जाने वाली मिलिट्री एड और दूसरी मदद पर रोक लगा दी थी, इसलिए इसका असर ज़मीन पर भी दिखा। TTP फिर मज़बूत हुई। अब ट्रंप फिर वापस आए हैं। पाकिस्तान के साथ दोस्ती बढ़ रही है पर इस बार फर्क है कि तालिबान भारत के करीब आता दिख रहा है।
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