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सीमा पर तनातनी, व्यापार पर साथ भारत-चीन, मजबूरी है या रणनीति? समझिए

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों की वजह से अब भारत नए आर्थिक विकल्प तलाश रहा है। भारत का उभोक्ता वर्ग बड़ा है, अमेरिका पर व्यापारिक तौर पर निर्भर होने की जगह अब नए सिरे से राजनायिक संबंध लिखे जा रहे हैं।

India China Relation

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग। (Photo Credit: PTI)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गलवान हिंसा के 7 साल बाद, एक बार फिर चीन पहुंचे हैं। साल 2018 में उन्होंने आखिरी बार चीन का दौरा किया था। जून 2018 में हुई इस झड़प ने भारत और चीन के संबंधों को 1962 के बाद सबसे बुरे दौर में पहुंचा दिया था। चीन से तनातनी नई नहीं है लेकिन पड़ोसी के तौर पर पाकिस्तान से बेहतर संबंध भारत के चीन से रहे हैं। दोनों देश, अपने-अपने सीमाई विवाद को कम करने की कोशिशों में भी जुटे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के तियानजिन शहर में हैं। यहीं शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक हो रही है। चीन में होने वाली यह बैठक बेहद अहम है, दुनिया के 20 ताकतवर देश यहां जुट रहे हैं। मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व के दिग्गज नेताओं की जुटान तय मानी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका से तनाव के बीच पहले शी जिनपिंग फिर व्लादिमीर पुतिन से मिलने वाले हैं।

यह मुलाकात इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि अमेरिका ने भारतीय सामानों पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया है। भारत अमेरिका को गहने, जेनरिक दवाइयां, कपड़ा, चमड़ा, रसायन, ऑटो पार्ट्स, मशीनरी और कृषि उत्पाद बेचता है। भारत IT सेक्टर में भी दुनिया के अग्रणी देशों में शुमार है, इस सेक्टर पर भी अमेरिकी टैरिफ की मार पड़ी है। 

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भारत चीन से बात के लिए तैयार क्यों, कहानी जानिए

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प टैरिफ युद्ध को रूस के साथ तेल खरीदने का नतीजा बता रहे हैं। वह भारत पर आर्थिक दबाव देना चाहते हैं और खुद को भारत-पाकिस्तान झड़प को खत्म करने वाले सरपंच के तौर पर पेश कर रहे हैं। उनके बयान लगातार भारत को धमकाने वाले रहे हैं। भारत की विदेश नीति कहती है कि न तो भारत किसी देश की आतंरिक नीति में दखल देता है, न ही ऐसा बर्दाश्त करता है। भारत रूस से व्यापार जारी रखेगा। 

भारत इस टैरिफ वार का काट ढूंढ रहा है। एक बार फिर से रूस जैसे भरोसेमंद देश से नजदीकी बढ़ा रहा है तो वहीं चिर प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ भी रिश्ते बेहतर कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी कोशिश के लिए चीन के तियानजिन शहर में गए हैं। अमेरिका भारत के महत्वाकांक्षाओं पर प्रहार कर रहा है, भारत इसके जवाब में स्थाई विकल्प ढूंढ रहा है। 

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चीन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (Photo Credit: PMO)

क्यों अहम है यह मुलाकात?

चीन की अर्थव्यवस्था पहले की तरह नहीं रही है। कोविड के बाद से ही चीन की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग नए सिरे से चीन के बाजार को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता वर्ग अब भारत में है। चीन खुद अमेरिकी टैरिफ की मार से परेशान है। अब दुनिया के दो सबसे बड़े देश, व्यापार पर नए सिरे से रिश्तों को लिखने की कवायद कर रहे हैं। बस खटकने वाली बात यह है कि सिक्किम हो, अरुणाचल प्रदेश हो, लद्दाख या उत्तराखंड हो चीन के साथ भारत के सीमा विवाद हर जगह हैं। 

भारतीय क्षेत्रों को भी चीन अपना बता देता है, कभी-कभी घुसपैठ की कोशिशें भी होती हैं, विवाद होता है। गलवान में जो भी हुआ था, वह इसी चीन की दखल का नतीजा था। अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ मजबूत विकल्प मानता है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की अप्रत्याशित नीतियों ने इस भरोसे को कमजोर किया है। अब भारत चीन से सीमाई विवाद हल करके बेहतर रिश्ते चाहता है, चीन की तरफ से भी ऐसे दावे किए जा रहे हैं। चीन की  विदेश नीति भी, अमेरिका की तरह अस्थाई और अप्रत्याशित रही है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन में। (Photo Credit: PMO)

भारत और चीन के बेहतर संबंध जरूरी क्यों हैं?

  • आर्थिक ताकत: भारत दुनिया की पांचवीं और चीन दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। IMF के मुताबिक भारत 2028 तक तीसरे स्थान पर पहुंच सकता है। भारत तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था भी है। दोनों देश, एक-दूसरे का साथ निभाकर ज्यादा बेहतर संभावनाएं पैदा कर सकते हैं।

  • वैश्विक स्थिरता: विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और चीन का एक साथ काम करना वैश्विक अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय शांति के लिए जरूरी है। अगर भारत और चीन भिड़ेंगे तो दो महाशक्तियों के टकराने का असर, पड़ोसी राष्ट्रों पर भी पड़ना तय है।

  • ध्रुवीकरण पर एक जैसी नीति: दोनों देश एक ऐसी व्यवस्था के समर्थक हैं, जहां कोई एक देश हावी न हो। यह दोनों देशों को और करीब ला रहा है। चीन की नीति साम्राज्यवादी रही है लेकिन भारत की संप्रभुता पर चीन ने ऐसा सीधा हमला नहीं किया, जैसा ट्रंप कर रहे हैं।

2014 में शी जिनपिंग भारत आए थे। (Photo Credit: PMO)

दोनों देशों में तनाव क्यों है?

  • सीमा विवाद: 2020 में लद्दाख के गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन के संबंध बेहद तल्ख हो गए थे। दोनों देशों के रिश्ते बुरे दौर में पहुंच गए थे। दोनों तरफ के सैनिक मारे गए थे। यह 1962 के बाद पहली बार हो रहा था, जब झड़प में दोनों देशों के जवान शहीद हुए हों। भारत 5 राज्यों में चीन के साथ सीमा साझा करता है। उन सभी राज्यों में चीन के साथ सीमा विवाद है, जिसका मुद्दा उठता रहता है। 

  • आर्थिक पाबंदियां: गलवान झड़प के बाद भारत ने चीन को करारा झटका दिया था। एक के बाद भारत ने चीन की कई कंपनियों को बाहर की राह दिखाई। भारत ने 200 से ज्यादा चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया। सीधी उड़ानें रोक दी। चीन के भारत में निवेश की राह मुश्किल कर दी। चीन को ऐसा आर्थिक नुकसान हुआ, जिसकी शी जिनपिंग ने कल्पना नहीं की थी। भारत, कूटनीतिक तौर पर चीन पर भारी भी पड़ा था। 

  • नए दौर की चुनौतियां: चीन भारत के आंतरिक मामलों में दखल तो नहीं देता है। चीन चाहता भी नहीं है कि भारत दखल करे। तिब्बत पर भारत का रुख संवेदनशील है। भारत तिब्बत के प्रति नरम रुख रखता है। दलाई लामा भारत में रहते हैं। भारत ने दलाई लामा के उत्तराधिकार वाले फैसले का समर्थन भी किया है। चीन को यह बात खटकती है, चीन विरोध भी करता है। चीन अरुणाचल को अपना हिस्सा बता देता है। चीन केस साथ भारत के जल विवाद भी हैं। पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर भी चीन, पाकिस्तान का ही रुख करता है। इन मुद्दों का हल तभी होगा, जब भारत और चीन के बीच मैत्रिपूर्ण संबंध होंगे। 

गलवान में भारत-चीन संघर्ष जून 2020 में हुआ था। (Photo- Indian Army/X)

क्या टैरिफ भारत-चीन को मिलाएगा?

वैश्विक अर्थव्यवस्था के जानकारों का कहना है कि टैरिफ पर भारत और चीन पर एक जैसी मार पड़ी है। रूस से तेल खरीदने की सजा अमेरिका ने भारत को दी है। चीन पर भी टैरिफ की मार पड़ी है। भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अमेरिकी टैरिफ का विरोध कर रहा है, जवाब में चीन भी यही कर रहा है। दोनों देश बड़े बाजार हैं, बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश हैं, ऐसे में दोनों को अमेरिकी फैसले मंजूर नहीं हैं। 

बेहतर संबंधों से क्या फायदा क्या होगा? 

भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन से कच्चा माल और कलपुर्जे लेता है। कम आयात शुल्क से फायदा हो सकता है। चीन भारत के 1.45 अरब लोगों के बाजार में पहुंच चाहता है। अमेरिका में चीनी उत्पादों के खिलाफ अब नाराजगी है। डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों ने चीन और अमेरिका को और दूर कर दिया है। भारत बेहतर बाजार है, जिसे चीन भुनाना चाहता है। भारत भी चीन को अपने उत्पाद बेचता है। अच्छी आबादी है। दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध से रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकते हैं। 

भारत और चीन अब एक बार फिर से प्रत्यक्ष उड़ानें शुरू कर रहे हैं। यह 5 साल बात हो रहा है। भारत, चीन के लिए वीजा नियमों में ढील देगा, चीन भी ऐसा ही करेगा। दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की यह एक कवायद है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स का बड़ा बाजार है। भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए चीन के साथ साझेदारी हो सकती है। जैसे वियतनाम में ऐपल के एयरपॉड्स बनते हैं, वैसे ही भारत में आईफोन बनते है, वैसे ही संबंध सुधरने से नई कंपनियों को लेकर अहम डील हो सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग। (Photo Credit: PMO)

अमेरिका, यूरोपियन यूनियन के जवाब में संघाई सहयोग संगठन जरूरी क्यों?

यह एक क्षेत्रीय संगठन है जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान और मध्य एशियाई देश शामिल हैं। इसका मकसद आतंकवाद खत्म करना और क्षेत्रीय सुरक्षा पर सहयोग करना है। भारत का चीन और पाकिस्तान, दोनों देशों के साथ सीमा विवाद है। भारत जब भी आंतक के खिलाफ आवाज उठाता है, चीन, पाकिस्तान की मदद कर देता है। अब अगर इस संगठन में इस विवाद का काट निकल जाए तो संबंध और बेहतर हो जाएंगे। पहले भारत अन्य संगठनों की तुलना में SCO को प्राथमिकता से नहीं देखता था। चीन और पाकिस्तान इसकी बड़ी वजह थे। अमेरिका के साथ तनाव के बाद यह मंच भारत के लिए क्षेत्रीय रणनीति मजबूत करने का एक जरिया है।

चीन में पीएम मोदी, पुतिन, जिनपिंग मिलेंगे, दुनिया के लिए संदेश क्या?

ग्लोबल साउथ एक बार फिर एक हो रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तिकड़ी पर दुनिया की नजरें टिकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने चीन जाने से पहले जापान में प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा से मुलाकात की और आर्थिक सहयोग बढ़ाने की योजनाएं बनाईं हैं। भारत और चीन का करीबी सहयोग आसियान देशों की मदद करेगा। भारत के मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट को बढ़ावा मिलेगा। नए व्यापारिक राह खुल सकते हैं। 

BRICS के एक होने की कवायद भी शुरू हो रही है। (Photo Credit: BRICS)

चीन से खतरा क्या है?

  • भरोसेमंद नहीं है चीन: यह देश भरोसेमंद कभी नहीं रहा। कभी गलवान, कभी डोकलाम, कभी अरुणाचल प्रदेश, चीन की तरफ से आए दिन नए दावे किए जाते हैं, जो टकराहट की वजह बनते हैं। गलवान विवाद थमा है लेकिन सीमा विवाद खत्म नहीं हुआ है। रह-रहकर चीन की तरफ से उकसाने वाली गतिविधियां की जाती हैं। चीन और पाकिस्तान का रिश्ता बेहतर है। चीन, पाकिस्तान की ढाल बनकर खड़ा है। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हालिया झड़प में चीन मेड ड्रोन भारत में देखे गए थे। सेना ने दावा किया था कि इस जंग में पाकिस्तान के साथ चीन भी है। भारत तीन मोर्चे पर लड़ रहा है।

  • पाकिस्तानपरस्ती: भारत ने जब-जब पाकिस्तान के कुख्यात आतंकियों को वैश्विक आतंकी घोषित करने की कवायद संयुक्त राष्ट्र में की, चीन अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर देता है। इस मुलाकात के बाद भी सब संभल जाएगा, ऐसा कहना मुश्किल है। जितने अप्रत्याशित फैसले वाले डोनाल्ड ट्रंप हैं, उतने ही शी जिनपिंग भी हैं। चीन का पाकिस्तान के साथ गहरा व्यापारिक रिश्ता भारत के लिए चिंता का सबब भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक मुलाकात से बड़े बदलाव की उम्मीद कम है। रिश्ते सुधरने में दशकों लगते हैं। भारत चीन पर रूस की तरह आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर सकता है। चीन ने हर मौके पर भारत को धोखा दिया है। 

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और शी जिनपिंग। (Photo Credit: ShahbazSharif/X)

उम्मीद क्या है?

इस यात्रा के यह मायने तो समझे जा सकते हैं कि भारत के पास अमेरिका के अलावा भी व्यापार के विकल्प हैं। भारत चीन और रूस के एकजुट होने से वैश्विक व्यापार और मुद्रा में बड़ा बदलाव आ सकता है। डॉलर पर दुनिया की व्यापारिक निर्भरता कम हो सकती है। ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे उभरते राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के एक होने, BRICS की कवायद और ग्लोबल साउथ का एजेंडा, वक्ती तौर पर ट्रंप के टेंशन तो दे ही सकता है। ये आर्थिक महाशक्तियां हैं, जो चीन में एक हो रही हैं। 

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