नेपाल में Gen Z प्रोटेस्ट, जानिए किन देशों में हुए ऐसे विरोध प्रदर्शन
दुनिया
• NEW DELHI 09 Sept 2025, (अपडेटेड 09 Sept 2025, 8:14 PM IST)
दुनिया में ऐसे कई देश है जिनके अंदर मौजूदा सरकार के खिलाफ या सरकार के लिए फैसले के बाद कई बड़े विरोध प्रदर्शन हुए है। नेपाल इसका बड़ा और ताजा उदाहरण है। बांग्लादेश, श्रीलंका, फिलीपींस, नीदरलैंड समेत ऐसे कई देश है जिन्हें विरोध प्रदर्शन के सामने झुकना पड़ा।

नेपाल प्रोटेस्ट, Photo Credit- PTI
नेपाल सरकार का सोशल मीडिया साइट बैन करने का फैसला उनके खिलाफ हो गया। व्यापक विरोध के कारण देश के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ गया। बांग्लादेश और श्रीलंका में भी ऐसा ही कुछ हुआ था। बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भारत में शरण लेना पड़ा था। श्रीलंका में भी राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा था। वहां फिर से चुनाव कराए गए।
पिछले कुछ साल में देखा गया है कि भारत के पड़ोसी देश आंतरिक कलह से जूझते रहे हैं। पाकिस्तान में प्रधानमंत्री रहे इमरान खान जेल में हैं। म्यांमार की सत्ता को परोक्ष रूप से चला रहीं आंग सान सू भी जेल में बंद है। बांग्लादेश से शेख हसीना, श्रीलंका से गोटबाया राजपक्षे जैसे नेता भी देश छोड़ने पर मजबूर हुए हैं। आइए ऐसे नेताओं और उनके खिलाफ हुए प्रदर्शनों बारे में जानते हैं...
1. नेपाल
नेपाल में सरकार ने इंस्टाग्राम, एक्स, यूट्यूब, फेसबुक समेत 26 सोशल मीडिया साइट्स पर बैन लगा दिया था। सरकार का कहना था कि इन साइट्स ने सरकारी नियम के अनुसार रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है। इस फैसले को फ्रीडम ऑफ स्पीच और डिजिटल आजादी पर खतरा माना गया। लोगों की मांग थी- सोशल मीडिया साइट्स की बहाली, भ्रष्टाचार पर कार्रवाई। प्रदर्शन 'Gen Z protests' के रूप में जाना गया। इस प्रोटेस्ट में हुई हिंसा के दौरान कम से कम 19 लोग मारे गए। सरकार को इस हिंसक आंदोलन के बाद अपने फैसले को वापस लेना पड़ा।
साथ ही, प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा है। उनसे पहले उनकी सरकार के कई मंत्रियों ने भी इस्तीफा दे दिया था।
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2. श्रीलंका
श्रीलंका ने हाल के वर्षों में बड़े जन आंदोलनों और विरोध प्रदर्शन विशेषकर 2022 के आर्थिक संकट के दौरान बनी स्थिति की वजह से हुआ था। 2022 में श्रीलंका गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा था। श्रीलंका पहली बार विदेशी कर्ज पर डिफॉल्टर घोषित हुआ। उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार (फोरेक्स रिजर्व) लगभग खत्म हो गया। जरूरी सामानों के लिए सरकार के पास आयात करने के लिए डॉलर नहीं बचे थे। इसका रिजल्ट यह हुआ कि पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें, देश दवाइयों की भारी कमी और रोजमर्रा की जरूरी वस्तुओं की कीमतों में भारी बढ़ोतरी से जुझने लगा।
इन सब जरूरी चीजों की कमी ने महंगाई दर को 50% से ऊपर पहुंचा दिया। खाने की चीजें, गैस सिलेंडर, बिजली आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गए। 2019 में गोटबाया राजपक्षे की सरकार ने बड़े पैमाने पर टैक्स में कटौती की, जिससे सरकारी राजस्व बहुत गिर गया। ऐसे कई फैसले लिए गए जैसे अचानक ऑर्गेनिक खेती लागू करना जिसके लिए लोग तैयार नहीं थे, लगातार चीन और अन्य देशों से कर्ज लेकर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट (जैसे हंबनटोटा पोर्ट) बनाए गए लेकिन आय का जरिया नहीं बना। COVID-19 महामारी के बाद आर्थिक संकट ने पर्यटन को पूरी तरह चौपट कर दिया। इससे लाखों लोगों की नौकरी चली गई। इससे लोगों के बीच सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ने लगी।
श्रीलंका में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार, गलत नीतियां, महंगाई और जीवन में झेलने वाली कठिनाइयों के कारण हुआ। जनता को लगा कि नेताओं की गलतियों और परिवारवादी राजनीति ने देश को कर्ज और महंगाई के दलदल में धकेल दिया है।
3. बांग्लादेश
बांग्लादेश में उस समय की सरकार शेख हसीना के खिलाफ बहुत भारी विरोध प्रदर्शन हुआ था। विरोध प्रदर्शन ऐसा था कि तत्कालिन प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर आनन-फानन में भारत में शरण लेना पड़ा। सरकार के खिलाफ इस नाराजगी के कई बड़े कारण थे। सबसे बड़ा कारण सरकारी नौकरी में रिजर्वेशन। 1972 में सरकार ने 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों के लिए सरकारी नौकरी में 30% आरक्षण लागू किया था।
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यह कोटा समय के साथ बढ़कर तीसरी पीढ़ी तक पहुंच गया था। अक्टूबर 2018 में छात्रों के विरोध के बाद सरकार ने यह कोटा हटाया था लेकिन जून 2024 में हाई कोर्ट ने उसे फिर से बहाल कर दिया, जिससे नए विरोध भड़क उठे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2024 में कोटा को संशोधित करते हुए 93% पदों को मेरिट आधार पर और सिर्फ 5-7% कोटा के लिए छोड़ दिया। देश में लगभग 3.2 करोड़ युवा बेरोजगार या शिक्षा से बाहर हैं। प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों की कमी ने सरकारी नौकरियों को और आकर्षक बनाया। सरकार पर चुनावी धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप लगे जिसने बड़े आंदोलन को जन्म दिया।
4. सीरिया
2011 में बशर अल-असद शासन के विरोध में शुरू हुई सीरियाई क्रांति ने गृहयुद्ध को जन्म दिया। दिसंबर 2024 में हो रहे विरोध में एक बड़े हमले के बाद राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से बेदखल कर दिया गया। इस्तीफे के बाद बशर अल-असद को अपनी सेना के दबाव में आकर मास्को भागना पड़ा और देश अहमद अल-शरा के नेतृत्व के दौर में प्रवेश कर गया, जिन्हें जनवरी 2025 में राष्ट्रपति नियुक्त किया गया।
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5. म्यांमार
1 फरवरी 2021 को सेना ने लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ले ली। इसका कारण, नवंबर 2020 के आम चुनाव में आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) को भारी जीत मिली थी। सेना ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया और रिजल्ट मानने से इनकार कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि आंग सान सू की, राष्ट्रपति विन म्यिंत और कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। सेना ने एक साल के आपातकाल की घोषणा की और सत्ता संभाल ली। सेना की इस कार्रवाई के बाद देश के भीतर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और आंदोलन हुए। इसमें हजारों लोगों की मौत और लाखों गिरफ्तारियां हुईं। नतीजा यह हुआ कि अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई देशों ने म्यांमार पर प्रतिबंध लगाए। म्यांमार में सेना अब भी सत्ता में है।
6. पाकिस्तान
पाकिस्तान की राजनीति और शासन में सेना हमेशा से सबसे ताकतवर संस्था रही है। अक्सर वहां की सरकारें सेना के दबाव में चलती हैं। कई बार ऐसा भी हुआ है कि सेना खुद सीधे सत्ता पर कब्जा कर लेती है। इसके कारण वहां कई बार तख्तापलट हो चुका है। मई 2023 में सेना ने इमरान खान को गिरफ्तारी करके उन्हें जेल भेज दिया। जिसके बाद लोगों ने लेना के खिलाफ कई जगहों पर प्रदर्शन किया।
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