नेपाल में जेन-जी आंदोलन में अपनी सत्ता गंवाने के बाद केपी शर्मा ओली ने दूसरी बार प्रतिक्रिया दी। उनका कहना है कि 8 सितंबर को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया था। उनका दावा है कि हिंसक विरोध प्रदर्शन में घुसपैठियों का हाथ है। जिन हथियारों का इस्तेमाल किया गया है, वैसे तो पुलिस के पास भी नहीं थे। ओली ने पूरे मामले की जांच की मांग की है।
नेपाल की तत्कालीन केपी ओली सरकार ने 4 सितंबर को 26 सोशल मीडिया एप्स पर बैन लगाया था। विरोध में देशव्यापी आंदोलन शुरू हुआ। 8 सितंबर को पूरा नेपाल हिंसा की चपेट में आ गया। संसद से सड़क तक आगजनी देखने को मिली। 8 सितंबर को पुलिस फायरिंग में 19 प्रदर्शनकारियों की जान गई। आंदोलन और उग्र हुआ तो केपी ओली को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। नेपाल में सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार विरोधी विरोध प्रदर्शन में तीन पुलिसकर्मियों समेत 72 लोगों की जान जा चुकी है।
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'प्रदर्शनकारियों ने ऑटोमेटिक हथियारों से चलाई गोली'
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष और अपदस्थ प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संविधान दिवस पर अपना बयान जारी किया। उन्होंने दावा किया, 'प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश सरकार ने नहीं दिया था। प्रदर्शनकारियों ने ऑटोमेटिक हथियारों से फायरिंग की। ऐसे हथियार पुलिसकर्मियों के पास नहीं थे। इसकी जांच होनी चाहिए।'
ओली का दावा- घुसपैठियों ने की हिंसा
केपी ओली ने हिंसक विरोध प्रदर्शन में जान माल के नुकसान पर दुख व्यक्त किया। उनका दावा है कि घुसपैठियों ने आंदोलन को हिंसक बनाया। इस वजह से नेपाल के युवाओं को अपनी जान गंवानी पड़ी।
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'समय सबकुछ बता देगा'
ओली ने याद किया कि 8 सितंबर को पुलिस एक्शन में 19 लोगों की जान गई। इसके बाद आंदोलनकारी मेरे ऑफिस में आ धमके। उन्होंने इस्तीफे की मांग की। 9 सितंबर को मैंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे देने के बाद भी सिंह दरबार सचिवालय और उच्चतम न्यायालय पर आगजनी की गई। नेपाल का नक्शा जला फूंका गया। कई अन्य अहम इमारतों को भी निशाना बनाया गया। इसके पीछे की साजिश को मैं विस्तार से नहीं बताना चाहता हूं। समय खुद ही सब बता देगा।