logo

ट्रेंडिंग:

साजिश, क्रांति या कुछ और, नेपाल के Gen Z जानते हैं कि क्या कर दिया है?

नेपाल की जेन ज़ी क्रांति ने नेपाल में एक बार फिर नए सिरे से इतिहास लिखा है। ठीक उसी तरह, जैसे 2000 के दशक में माओवादियों ने लिखा था। यह क्रांति जेन ज़ी लेकर आए हैं। पहली बार पहाड़ी और मधेशी दोनों समुदायों किसी मुद्दे पर एक हुए हैं।

Nepal

काठमांडो में तैनात सेना। (Photo Credit: PTI)

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सवादी लेनिनवादी) पार्टी, नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी है। 8 सितंबर 2025 को नेपाल के चौथे सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर ललितपुर में एक कार हादसा होता है। कोशी प्रांत वित्त मंत्री राम बहादुर नगर की सरकारी गाड़ी, एक 11 साल की बच्ची पर चढ़ गई। हादसा तब हुआ, जब बच्ची सड़क पार कर रही थी। हादसे में बच्ची को चेहरे पर चोटें आईं। बच्ची होश में थी और बात कर रही थी। बच्ची ने अपनी आपबीती बताई फिर भी 24 घंटे के भीतर ड्राइवर को रिहा कर दिया गया। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा कि यह हादसा एक छोटी सी बात है। 

एक 'छोटी सी बात', केपी शर्मा ओली की सत्ता से विदाई की वजह बन गई।

जनता का गुस्सा भड़क गया। जगह-जगह आंदलोन हुए। घटना न फैलने पाए, इसके लिए सोशल मीडिया ही बैन कर दिया गया। इस कदम ने आग में घी डालने का काम किया। नाराज जनता, खासकर जेन ज़ी युवा, सड़कों पर उतर आए। स्थानीय लोगों ने गोडावरी रोड जाम कर दिया। कपिलवस्तु से लेकर काठमांडो तक प्रदर्शन हुए। यह आंदोलन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सरकार की उदासीनता के खिलाफ बड़े स्तर पर हिंसक प्रदर्शनों में बदल गया। कई सरकारी इमारतों और मंत्रियों के घरों में आगजनी हुई। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इस्तीफा दे चुके हैं। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल फरार हैं, उनकी मौजूदगी सोशल मीडिया पोस्ट तक सिमट गई है। नेपाल की कमान, सेना के हाथ में है। जेन ज़ी यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि नेपाल की सत्ता सौंपनी किसे है। 

यह भी पढ़ें: ऐसे कैसे देश चलाएंगे नेपाल के Gen-Z? प्रेस कॉन्फ्रेंस में हो गया बवाल?


सेना इस क्रांति की गवाह है, मूक दर्शक है लेकिन उदासीन है। नेपाल की इस क्रांति पर मधेशी जेन ज़ी क्या सोचते हैं, पहाड़ियों से अलग उनकी राय क्या है, इसे समझने के लिए खबरगांव ने उनसे बात की। बातचीत में क्या-क्या बातें सामने आईं, आइए जानते हैं-

क्रांति कैसे हुई?

नेपाल में भ्रष्टाचार, जनता की दुखती रग है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार की वजह से ही असली क्रांति हुई है। नेताओं के बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं, नेपो किड का जलवा है, आम जनता अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रही है। जेन ज़ी का आक्रोश सोशल मीडिया पर बैन से शुरू हुआ और सत्ता परिवर्तन तक जा पहुंचा। 

यह भी पढ़ेंः तोड़फोड़, आगजनी के बाद शांत होगा नेपाल? पूरे देश में लागू हुआ कर्फ्यू

नेपाल की राजधानी काठमांडू में उमड़ी भीड़। (Photo Credit: PTI)

भारत के खिलाफ हो गई है नेपाल की आवाज?

जयंती कुमारी (बदला हुआ नाम) पेशे से पत्रकार हैं, और इन दिनों भारत में रह रही हैं। वह नेपाल के परसा प्रांत में बीरगंज जनपद की रहने वाली हैं। उन्होंने काठमांडू में राजनीतिक अराजकता के बीच करीब 10 साल गुजारे हैं। उनका कहना है कि पहाड़ी यह भी नहीं चाहते हैं कि भारत को समर्थन देने वाला कोई नेता प्रधानमंत्री बने। नेपाल के पहाड़ी हिस्से में रहने वाले लोगों के मन में भारत के खिलाफ गुस्सा है, जिसे भारतीय पत्रकारों ने जेन ज़ी आंदोलन कवर करने के दौरान महसूस किया है। इस नफरत की वजह भी 2000 के दशक से जुड़ी है। 

यह भी पढ़ें- बवाल के बाद चर्चा में हैं बालेंद्र शाह, क्या यही बनेंगे नेपाल के PM?

जयंती कुमार, पत्रकार, नेपाल:-
नेपाल के पहाड़ी इलाकों में भारत विरोधी सेंटीमेंट्स जून 2001 से बिगड़ने शुरू हुए। माओवाद ने नेपाल में गहरे तक पैठ बना लिया था। भारत के प्रतिबंधित माओवादी नेता नेपाल पहुंच गए थे और आंदोलन को हवा देने लगे थे। नेपाल के शीर्ष माओवादी नेताओं ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र से एक भारतीय शिक्षाविद के जरिए संपर्क किया था। वह नेपाल की राजनीतिक हस्तियों के करीब थे। इसका जिक्र प्रोफेसर एसडी मुनि अपनी किताब 'डबलिंग इन डिप्लोमेसी: ऑथराइज्ड एंड अदरवाइज, रीकलेक्शन्स ऑफ अ नॉन-कैरियर डिप्लोमैट' में खुलासा किया था।

पहाड़ी-मधेशी का झगड़ा क्या है?

जयंती कुमारी ने कहा कि नेपाल के पहाड़ी इलाकों में लोग आज भी मानते हैं कि माओवादियों के सबसे बड़े नेताओं में शुमार पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' और पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई भारत आए थे और उनके मिले भी थे। राजशाही के तख्ता पलट में भारत की भूमिका थी। भारत के खिलाफ पहाड़ी इलाकों में जो जनाक्रोश है, बस उसी की वजह से नेपाल में भारत के समर्थन वाले मधेशी बेल्ट से कोई प्रधानमंत्री नहीं बन सकता है। वे मधेशियों को शक की नजर से देखते हैं, उन्हें देशद्रोही मानते हैं।

काठमांडू में विरोध प्रदर्शन के दौरान तैनात नेपाली पुलिस। (Photo Credit: PTI)

'नेपाल में पुनर्गठन नहीं, विध्वंस जरूरी था'

जयंती कुमारी ने कहा, 'नेपाल में सत्ता का पुनर्गठन नहीं, विध्वंस हुआ है। नेपाल को एक अरसे से इस 'डिकंस्ट्रक्शन' की जरूरत थी। नेपाल में भ्रष्टाचार फैल गया था। राजनेताओं के बच्चे विदेश में पढ़ रहे थे, आलिशान जिंदगी जी रहे थे। आम जनता दूसरे देशों में रोजगार तलाश कर रही थी। यह विद्रोह, सोशल मीडिया पर प्रतिबंध की वजह से ही नहीं हुआ है। यह 'फेसलेस' आंदोलन है। जेन ज़ी सीख रहे हैं, लड़ रहे हैं, नेताओं के लिए मंथन कर रहे हैं। नेपाल की सेना के साथ बैठक में भी जेन जी के कई खेमे सामने आए। कुछ वकालत कर रहे हैं कि सुशीला कार्की को आगे बढ़ाएं, कुछ कह रहे हैं कि कुलमान घिसिंग का नाम आना चाहिए। ऐसे में नेपाल में जो कुछ भी हुआ है, वह वक्त की जरूरत थी। बुजुर्ग हाथों ने नेपाल को भ्रष्टाचार सिखाया है, जेन ज़ी, भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, नए नेपाल का गठन वे नए तरीके से करना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि नेपाल में सच्चे अर्थों में जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन हो।'

बालेन शाह क्यों नहीं बन रहे हैं प्रधानमंत्री? 

जयंती कुमारी से यह सवाल किया गया कि क्यों बालेन शाह प्रधानमंत्री पद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं, जबकि युवाओं का एक बड़ा धड़ा उनके नाम की वकालत कर रहा है, उन्होंने कहा, 'जो भी अंतरिम सरकार का मुखिया होगा, वह स्थाई सरकार का चेहरा नहीं होगा। उसकी भूमिका नई सरकार के गठन तक ही सीमित है। वह खुद चाहते हैं कि सुशीला कार्की, अंतरिम प्रधानमंत्री बनें। उन्होंने सोशल मीडिया पर इसके बारे में लिखा भी है। हो सकता है कि वह नेपाल के अगले प्रधानमंत्री हों।'

नेपाल में अब हालात कैसे हैं?

 

संभावनाएं क्या हैं?

जयंती कुमारी ने कहा, 'नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने अपने पद से अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है। वह इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं हैं। उनके खिलाफ भी जेन ज़ी सड़कों पर हैं। सेना के हस्तक्षेप के बाद थोड़ा आक्रोश कम हुआ है।'

खुद जयंती कुमारी ने क्या कहा है, 'संवैधानिक सीमाओं के भीतर देश की वर्तमान चुनौतियों का समाधान करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान संकट के संवैधानिक समाधानों की पहचान कर, देश में लोकतंत्र की रक्षा और कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने पर बल देंगे। सभी पक्षों से आंदोलनकारी युवाओं मांगों को सुना जाएगा। देश में शांति और स्थिरता बनाए रखना जरूरी है।'

सेना की भूमिका पर क्या कह रहे हैं जेन ज़ी?

दीपक कुमार, कपिलवस्तु के रहने वाले हैं। वह बीटेक हैं, खुद भी जेन ज़ी हैं और नेपाल में नई सत्ता व्यवस्था के पक्षधर हैं। उन्होंने कहा, 'सेना ने साथ दिया है। सेना अगर साथ देती तो जेन ज़ी बेकाबू नहीं होते। सिंह द्वार तोड़ डाला, सुप्रीम कोर्ट जला दिया और पोखरा तक सुलगा दिया। जेनजी के सामने पुलिस ने सरेंडर किया है। एक वक्त ऐसा लगा कि पुलिस खुद जेन ज़ी के गुस्से का शिकार हो जाएगी। जो प्रदर्शनाकारी काठमांडो में मरे हैं, वे काठमांडू पुलिस की गोली से मरे हैं, सेना ने नहीं मारा है।'

आयुष मिश्रा, स्वास्थ्यकर्मी, कपिलवस्तु, नेपाल:-
कपिलवस्तु जिले से ही 450 से ज्यादा कैदी भाग गए हैं। अचानक पूरे जिले में हिंसा और मारपीट की खबरें बढ़ गईं हैं। सेना स्थिति नियंत्रण करने में लगी है लेकिन अचानक से हर जगह विद्रोह भड़का है। मैं 24 घंटे से ड्यूटी पर हूं, यह 37 से 40 घंटे भी हो सकता है। नेपाल की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले ही खस्ताहाल है, अब बड़ी संख्या में घायल आ रहे हैं।


भ्रष्टाचार है नेपाल के विद्रोह की वजह? 

लवकुश चौधरी, कपिलवस्तु, नेपाल:-
बिहार में भ्रष्टाचार हद से ज्यादा फैला है। पुलिस से लेकर सेना तक में भ्रष्टाचार में संलिप्त है। किसी भी सीमाई इलाके में चले जाइए, आप अधिकारियों को बॉर्डर पर घूस लेते हुए देख सकते हैं। यह क्रांति नेपाल के लिए जरूरी थी। हमारे पास न तो संसाधन हैं, न ही रोजगार के लिए साधन हैं। लोग पलायन कर रहे हैं, हमें पढ़ने के लिए भारत आना पड़ता है। हमारे नेता कुछ नहीं करते हैं। ऐसा कब तक हम सहन कर सकते थे। एक न एक दिन विद्रोह तो फूटना ही था। अच्छी बात यह है कि इस आंदोलन का चेहरा कोई भ्रष्टाचारी नेता नहीं है। बिना चेहरे के यह आंदोलन सफल हो गया है। 

 

नेपाल की राजधानी काठमांडो में सत्ता परिवर्तन का जश्न मनाते लोग। (Photo Credit: PTI)


सूरज चौहान नेपाल के कपिलवस्तु जिले के रहने वाले हैं। वह बीटेक हैं, एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं। उन्होंने नेपाल की क्रांति में चीन का हाथ बताया है।

सूरज कुमार, बीटेक स्टूडेंट, कपिलवस्तु, नेपाल:-
मुझे यह क्रांति कम, साजिश ज्यादा लग रही है। चीन के कई ऐप हैं, जिन पर सरकार ने पाबंदी लगाई। चीन के लिए नेपाल सुरक्षित गढ़ हो गया है। यहां कई मंदिरों और मठों में चीन ने पैसा लगाया है। यहां के बाजार पर चीन का कब्जा है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा तो चीन ने हिंसा उकसाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। यह अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन था तो नेपाल के संसाधनों को क्यों राख कर दिया गया। 

सिंहभवन को तोड़ने का क्या तुक था? 

जब शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहा था तो जेन ज़ी ने हिंसा क्यों की? पत्रकार जयंती कुमारी ने कहा, 'जेन ज़ी हिंसक तब हुए, जब मासूम कॉलेज के बच्चों पर गोलियां दागी गईं। वे सिर्फ सिंह द्वार के अंदर जाना चाह रहे थे। काठमांडू पुलिस ने उन पर गोलियां बरसा दीं। जब बच्चों को गोली लगी तो वे बौखला गए। यह त्वरित प्रतिक्रिया थी, उन्होंने सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया। पुलिस बूथ पर हमला किया, पुलिसकर्मी सरेंडर करके भागे। जेन ज़ी का आक्रोश सिर्फ नेताओं को लेकर था, नेपो किड को लेकर था। वे किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाह रहे थे। पुलिस बूथ लूटने के बाद उनके पास हथियार आ गया था लेकिन उन्होंने हिंसा नहीं की। किसी को गोली नहीं मारी। नेता खुद-ब-खुद भागने लगे थे।'

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap