सियालकोट दो कारणों से चर्चा में है। पहला कारण- सोशल मीडिया पर पुराना वीडियो शेयर कर दावा किया जा रहा है कि सियालकोट में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के मिलिट्री डिपो को उड़ा दिया है। यह वीडियो मार्च 2022 का है, जब मिलिट्री डिपो में शॉर्ट सर्किट से आग लग गई थी। दूसरा कारण- पहलगाम अटैक के बाद भारत से तनाव के बीच सियालकोट सेक्टर में रडार सिस्टम को एक्टिव करने की खबर है, ताकि भारतीय वायुसेना की एक्टिविटी को ट्रैक किया जा सके।
सियालकोट, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है। सियालकोट की एक पहचान यह भी है कि यहां मुहम्मद इकबाल का जन्म हुआ था। वही मुहम्मद इकबाल, जिन्होंने 'तराना-ए-हिंद' यानी 'सारे जहां से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा' लिखा था।
सियालकोट जिस जगह पर है, वह उसे भारत और पाकिस्तान, दोनों के लिए काफी अहम बना देता है। 1965 की जंग में भारत ने सियालकोट सेक्टर पर कब्जा कर भी लिया था। हालांकि, बाद में ताशकंद समझौता हुआ और भारत ने अपना कब्जा छोड़ दिया।
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सियालकोट और भारत-पाकिस्तान?
सियलकोट के साथ भारत की 193 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है। भारत के जम्मू से सियालकोट की दूरी 15 से 20 किलोमीटर ही है। अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास होने के कारण यह भारत और पाकिस्तान के लिए काफी अहम है। भारत औऱ सियालकोट के बीच जो सीमा है, उसे 1972 के शिमला समझौते में तय किया गया था।
सियालकोट के परगवाल इलाके को 'चिकन नेक' भी कहा जाता है। परगवाल, सियालकोट सिटी से कुछ किलोमीटर दूर है और यह एक संकरा इलाका है। यहां से चेनाब नदी बहती है। अगर भारत यहां कब्जा कर ले तो उत्तरी पाकिस्तान को काटा जा सकता है।
परगवाल एक तरह से तीन तरफ से भारत से घिरा है। पश्चिम में इसकी सीमा जम्मू से लगती है। उत्तर में यह PoK से सटा है लेकिन इसके ठीक बगल में भारतीय क्षेत्र है। वहीं, पूर्व में इसकी सीमा जम्मू के शकरगढ़ और सांबा सेक्टर से लगी हुई है।
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भारत-पाकिस्तान के लिए अहम क्यों?
- भारत के लिएः 1965 की जंग में भारतीय सेना ने सियालकोट पर कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना के कई टैंक सियालकोट में घुस गए थे। बाद में ताशकंद समझौते के तहत, भारतीय सेना यहां से चली गई थी। भारत के लिए यह इसलिए भी मायने रखता है, क्योंकि यहां से आतंकियों की घुसपैठ का खतरा बना रहता है।
- पाकिस्तान के लिएः सियालकोट एक तरह से भारत के लिए 'गेटवे' का काम कर सकता है। भारत ने यहां कब्जा किया तो सियालकोट को लाहौर और इस्लामाबाद से काटा जा सकता है। सियालकोट को पाकिस्तान की सेना ने कैंट एरिया बना दिया है। यहां कई मिलिट्री बेस भी हैं।

भारतीय सेना कहां-कहां से घुस सकती है?
- पश्चिम सेः आरएस पुरा और अख्नूर सेक्टर सियालकोट के परगवाल से सबसे पास हैं। इन सेक्टर की दूरी परगवाल से कुछ ही किलोमीटर है। यह सबसे छोटा रास्ता भी है। आरएस पुरा और अख्नूर सेक्टर में भारतीय सेना काफी मजबूत है। BSF की टुकड़ियां भी यहां मौजूद है।
- उत्तर सेः जम्मू के नौशेरा और राजौरी सेक्टर से सियालकोट की तरफ बढ़ा जा सकता है। यहां से सियालकोट की दूरी 40-50 किलोमीटर है। इन इलाकों में पीर पंजाल जैसे ऊंचे पहाड़ी इलाके हैं, जिससे भारतीय सेना को फायदा मिल सकता है। हालांकि, यहां से हमला करने में समय लग सकता है, जिससे पाकिस्तान को जवाबी कार्रवाई का मौका मिल जाएगा।
- पूर्व सेः यहां से भारत शक्करगढ़ और सांबा सेक्टर के रास्ते सियालकोट तक पहुंच सकती है। यह इलाका समतल है, जिससे भारतीय सेना के टैंक आसानी से सियालकोट जा सकते हैं। 1965 में भारतीय सेना ने इसी रास्ते से सियालकोट पर हमला किया था और चविंडा तक पहुंच गई थी।
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भारत से डरा रहता है पाकिस्तान?
सियालकोट पाकिस्तान का 'वीक पॉइंट' है और उसे हमेशा इस बात का डर लगा रहता है कि कहीं भारत यहां हमला न कर दे। क्योंकि, उसे पता है कि अगर भारत ने यहां कब्जा किया तो सियालकोट तक पाकिस्तान की पहुंच खत्म हो जाएगी। साथ ही PoK और गिलगित-बल्टिस्तान से भी वह कट जाएगा।
1965 की जंग से सबक लेकर पाकिस्तान ने सियालकोट और भारतीय सीमा से सटे इलाकों में काफी तैयारियां की हैं। शक्करगढ़ से सटे उन इलाकों को पाकिस्तान ने साफ कर दिया है, जहां से भारतीय सेना के घुसने का खतरा था। इसके अलावा, चेनाब नदी के पास पाकिस्तान ने तेजी से बढ़ने वाले पेड़ लगाए हैं, ताकि आवाजाही आसानी से न हो सके।
साल 2001 में संसद अटैक के बाद कई महीनों तक भारतीय और पाकिस्तानी सेना आमने-सामने आ गई थीं। भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन पराक्रम' लॉन्च किया था। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने सियालकोट में अपनी सैन्य मौजूदगी काफी बढ़ा दी है। सियालकोट कैंट में पाकिस्तानी सेना ने दो कैंट बनाए हैं। सियालकोट में इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी बनाया है, ताकि वायुसेना को उसकी मदद मिल सके। इसके अलावा, चिनाब नदी पर एक पुल भी बनाया है, जिससे गुजरात शहर से सियालकोट तक मात्र 45 मिनट में पहुंचा जा सकता है।