पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की बेटी की शादी एक निजी पारिवारिक आयोजन भर नहीं रही, बल्कि इसने एक बार फिर पाकिस्तान की सत्ता और सैन्य तंत्र को लेकर अंतरराष्ट्रीय बहस को हवा दे दी है। रावलपिंडी स्थित पाकिस्तान आर्मी हेडक्वार्टर में बेहद गोपनीय तरीके से आयोजित इस शादी समारोह में देश के शीर्ष राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व की मौजूदगी ने इसे खास बना दिया। जहां एक ओर शादी को सुरक्षा की वजह से पूरी तरह पर्दे में रखा गया, वहीं दूसरी ओर इसी दौरान अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पाकिस्तान की मौजूदा सैन्य नीतियों, बढ़ते धार्मिक कट्टरपन और क्षेत्रीय अस्थिरता को लेकर कड़ी टिप्पणियां सामने आईं। ऐसे में जनरल मुनीर के परिवार से जुड़ा यह आयोजन निजी होने के बावजूद राजनीतिक, कूटनीतिक और वैश्विक दृष्टि से चर्चा का विषय बन गया है।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की बेटी महनूर की शादी 26 दिसंबर को उनके पहले चचेरे भाई अब्दुल रहमान से हुई। यह शादी रावलपिंडी में पाकिस्तान आर्मी हेडक्वार्टर में आयोजित की गई। शादी को काफी गोपनीय रखा गया और इसकी कोई तस्वीर सार्वजनिक नहीं की गई।4
यह भी पढ़ें: 1991 में नौकरी गई, 2024 में मौत हुई, अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि गलत हुआ
प्रधानमंत्री के साथ-साथ कई अन्य लोगों ने की शिरकत
इस शादी में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, उप प्रधानमंत्री इशाक डार, आईएसआई प्रमुख समेत सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी, सेवानिवृत्त जनरल और पूर्व सैन्य अधिकारी शामिल हुए।
अब्दुल रहमान, जनरल असीम मुनीर के भतीजे हैं। वह पहले पाकिस्तान सेना में कैप्टन के पद पर तैनात थे। बाद में उन्होंने सेना अधिकारियों के लिए आरक्षित कोटे के तहत सिविल सेवा जॉइन की और वर्तमान में असिस्टेंट कमिश्नर के रूप में कार्यरत हैं।
पाकिस्तानी पत्रकार जाहिद गिशकोरी के मुताबिक, शादी में करीब 400 मेहमान शामिल हुए थे लेकिन सुरक्षा की वजह से कार्यक्रम को सादगी और सीमित रूप में आयोजित किया गया। जनरल असीम मुनीर की चार बेटियां हैं और यह उनकी तीसरी बेटी की शादी थी।
यह भी पढ़ें: जेल गए, केस चला और मिल गई जमानत, नेताओं के केस का अपडेट क्या है?
इंटरनेशनल मीडिया का आरोप
इस बीच, ग्रीक सिटी टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जनरल मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान के धार्मिक कट्टरता की ओर बढ़ने से दुनिया का धैर्य जवाब देने लगा है। रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान तेजी से एक ज्यादा धार्मिक और आक्रामक पहचान की ओर बढ़ा है, जहां विदेशों में इस्लामी 'प्रतिरोध' को बढ़ावा दिया जा रहा है, जबकि देश के भीतर कट्टरपंथ पर लगाम लगाने में नाकामी रही है। इसके असर लंदन, न्यूयॉर्क और दुबई जैसे शहरों में हिंसा और विरोध के रूप में देखे जा रहे हैं।
वहीं ‘एशियन न्यूज पोस्ट’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान की सेना-प्रेरित रणनीति न तो देश की सीमाओं को सुरक्षित कर पाई है और न ही अपने नागरिकों की रक्षा कर सकी है। इसके बजाय इससे मानवीय संकट बढ़े हैं और पूरा क्षेत्र अस्थिर हुआ है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव सिर्फ दो पड़ोसी देशों का विवाद नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान की सैन्य-आधारित कूटनीति का नतीजा है। चार साल पहले तालिबान के काबुल में सत्ता में आने के बाद, जिन सैन्य और खुफिया नेटवर्क्स ने उनका समर्थन किया था, वही अब सीमा पार हिंसा के लिए उन्हें दोषी ठहरा रहे हैं, अफगान शरणार्थियों को पाकिस्तान से बाहर निकाल रहे हैं और अफगानिस्तान में हवाई हमले और गोलाबारी कर रहे हैं।