क्या सऊदी अरब में होगी ट्रंप-जेलेंस्की की दोस्ती? समझें इसके मायने
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की सऊदी अरब में हैं। सऊदी अरब में अमेरिका और यूक्रेन के बीच एक बड़ी बातचीत होने वाली है। इससे रूस और यूक्रेन के बीच शांति का रास्ता भी साफ होने की उम्मीद है।

व्हाइट हाउस में जेलेंस्की और ट्रंप में बहस हो गई थी। (File Photo Credit: PTI)
मध्य पूर्व के नक्शे पर सबसे बड़ा दिखने वाले सऊदी अरब में अमेरिका और यूक्रेन के बीच एक बड़ी बैठक होने वाली है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की सऊदी अरब पहुंच गए हैं। अगर बातचीत सही रही तो रूस और यूक्रेन के बीच शांति का रास्ता साफ हो सकता है।
सऊदी अरब के जेद्दाह में अमेरिकी और यूक्रेनी अधिकारियों के बीच होने वाली यह बैठक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच हुई बहस के बाद हो रही है। 28 फरवरी को ओवल ऑफिस में ट्रंप और जेलेंस्की के बीच तीखी बहस हुई थी। इसके बाद जेलेंस्की अमेरिका से वापस आ गए थे।
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कौन-कौन होगा इस बैठक में?
सऊदी अरब में होने जा रही इस बैठक में अमेरिका और यूक्रेन के अधिकारी शामिल होंगे। हालांकि, यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के इस बैठक में शामिल होने की उम्मीद नहीं हैं।
अमेरिका की तरफ से इस बातचीत में विदेश मंत्री मार्को रुबियो, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वॉल्ट्ज और ट्रंप के मिडिल ईस्ट के राजदूत स्टीव विटकॉफ शामिल होंगे। वहीं, यूक्रेन की तरफ से चीफ ऑफ स्टाफ आंद्रेय यरमाक, विदेश मंत्री आंद्रेय सिबिहा और रक्षा मंत्री रुस्तेम उमेरोव मौजूद रहेंगे। इस बैठक में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी रहेंगे।
हालांकि, इस बैठक में सिर्फ अमेरिका और रूस के अधिकारी होंगे। रूस इसमें शामिल नहीं है। सऊदी अरब के लिए रवाना होने से पहले जेलेंस्की ने कहा था, 'हम उन साझेदारों के साथ काम करना जारी रखेंगे, जो हमारी जितनी ही शांति चाहते हैं।'
बैठक में क्या होगा?
- रूस-यूक्रेन जंगः इस बैठक का सबसे बड़ा एजेंडा रूस और यूक्रेन के बीच शांति वापस बहाल करना है। रूस और यूक्रेन के बीच तीन साल से जंग जारी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी इस बातचीत से काफी उम्मीद है। कुछ दिन पहले ही ट्रंप ने कहा था, 'सऊदी अरब से कुछ अच्छा रिजल्ट आने वाला है।'
- अमेरिका-यूक्रेन खनिज डीलः जेलेंस्की जब 28 फरवरी को अमेरिका गए थे, तभी दोनों देशों के बीच खनिज डील होने वाली थी। हालांकि, डील पर कुछ बात होती, उससे पहले ही ट्रंप और जेलेंस्की में बहस हो गई और बातचीत टल गई। इस बैठक में इस डील पर भी बातचीत आगे बढ़ने की उम्मीद है।
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इससे मिलेगा क्या?
- अमेरिका कोः ट्रंप की नजर यूक्रेन के रेयर अर्थ मिनरल्स यानी दुर्लभ खनिजों के भंडार पर हैं। ट्रंप का कहना है कि अमेरिका अरबों डॉलर की मदद कर चुका है, इसलिए अब उन्हें भी कुछ मिलना चाहिए। जेलेंस्की पहले इस खनिज डील के लिए तैयार नहीं थे। हालांकि, जब ट्रंप ने सैन्य मदद रोकने की धमकी दी थी तो जेलेंस्की ने सरेंडर कर दिया। अगर यह खनिज डील होती है तो यूक्रेन के दुर्लभ खनिजों तक अमेरिका की पहुंच हो जाएगी।
- यूक्रेन कोः जेलेंस्की का दावा है कि वे अब शांति चाहते हैं। साथ ही इस जंग में रूस ने यूक्रेन पर जितना कब्जा किया है, उसे भी वापस चाहते हैं। जेलेंस्की यह भी चाहते हैं कि अगर जंग नहीं रुकती है तो कम से कम अमेरिका से उसे सैन्य मदद ही मिल जाए ताकि रूस का मुकाबला किया जा सके। व्हाइट हाउस में हुई बहस के बाद जेलेंस्की खनिज डील किए बगैर ही लौट आए थे, जिसके बाद अमेरिका ने यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य और खुफिया मदद रोक दी थी।
- रूस कोः इस बातचीत में फिलहाल रूस शामिल नहीं है लेकिन इस पर उसकी भी पैनी नजर है। अगर अमेरिका और यूक्रेन के बीच कोई बात बन जाती है तो यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए बड़ा झटका होगी। बातचीत रूस के लिए इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि हाल ही में ट्रंप ने धमकी दी थी कि अगर रूस ने यूक्रेन पर बमबारी बंद नहीं की तो अमेरिका और प्रतिबंध लगा देगा। रूस चाहता है कि शांति का प्रस्ताव यूक्रेन की तरफ से आए और उसकी शर्तें वह तय करे।
- सऊदी अरब कोः यूक्रेन में जब 10 विदेशियो को कैद कर लिया गया था तो सितंबर 2022 में सऊदी अरब ने ही इनकी रिहाई करवाई थी। इन नागरिकों में अमेरिका और ब्रिटेन के नागरिक भी शामिल थे। ऐसे में अब अगर एक बार फिर अमेरिका और यूक्रेन में सब ठीक हो जाता है तो इससे सऊदी अरब न सिर्फ खुद को एक मजबूत मध्यस्थ के रूप में पेश करने में कामयाब होगा, बल्कि मध्य पूर्व के बाहर पश्चिमी देशों में भी उसका कद बढ़ेगा।
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मगर सऊदी अरब ही क्यों?
हालिया कुछ सालों में मध्यस्थता कराने में खाड़ी देशों की भूमिका काफी बढ़ गई है। इजरायल और हमास के बीच भी सीजफायर करवाने में कतर की अहम भूमिका रही। अब जब अमेरिका और यूक्रेन के रिश्ते अब तक के सबसे खराब दौर में हैं, तब सऊदी अरब आगे आया है।
सऊदी अरब के रिश्ते अमेरिका और रूस से काफी अच्छे रहे हैं। जब यूक्रेन जंग शुरू करने पर दुनिया ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए थे, तब भी सऊदी अरब ने OPEC+ के जरिए उससे अच्छे संबंध बरकरार रखे।
कतर और सऊदी अरब जैसे देश अब खुद को मध्यस्थ के रूप में पेश कर रहे हैं। इसके पीछे उनके अपने हित में हैं। असल में सऊदी अरब जैसे तेल उत्पादक देश अब अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए तेल पर निर्भरता कम करना चाहते हैं। इसके लिए विदेशी निवेश और पश्चिम से अच्छे संबंध जरूरी हैं।
इसके अलावा सऊदी अरब खुद को 'सुन्नी मुस्लिमों की दुनिया का नेता' और 'पश्चिमी एशिया की बड़ी ताकत' के रूप में दिखाने की कोशिश कर रहा है। यही वजह है कि सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने बातचीत के लिए अमेरिका और यूक्रेन को बुलाया है। माना जा रहा है कि इसके बाद सऊदी अरब में ही अमेरिका और रूस के बीच भी बातचीत हो सकती है।
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