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फिलिस्तीन: देश है, फिर मानते क्यों नहीं हैं EU, अमेरिका जैसे राष्ट्र?

फिलिस्तीन पर यूरोप का रुख बदल रहा है। इजरायल और हमास की जंग के बाद, फिलिस्तीन के प्रति पश्चिमी देशों की सहानुभूति बढ़ी है।

Israel Hamas War

फिलिस्तीन और इजरायल की जंग। (AI Image, Photo Credit: Sora)

फिलिस्तीन और इजरायल। मध्य-पूर्व के दो देश। एक देश का डंका पूरी दुनिया में बजता है, दूसरा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। दुनिया के प्रगतिशील देशों ने इस देश के अस्तित्व को ही नकारा है, देश ही नहीं मानते। संयुक्त राष्ट्र संघ में खुद के लिए 'देश' का दर्जा मांग रहा फिलिस्तीन तबाह है। प्रथम विश्व युद्ध में मध्य पूर्व के इस हिस्से पर ओटोमन साम्राज्य का शासन था। साम्राज्य खत्म हुआ तो यहां ब्रिटेन ने कब्जा जमाया। बहुसंख्यक अरब और अल्पसंख्यक यहूदियों की यह जमीन, अपने इतिहास में ही विवादित रही है। अब स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे जैसे देशों ने फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के रूप में आधिकारिक तौर पर मान्यता दे चुके हैं।

भारत भी संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के अस्तित्व को स्वीकार करता है। फ्रांस भी अपने तेवर बदल रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि वे फिलिस्तीन को मान्यता देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं लेकिन सही समय का इंतजार करेंगे। यह बदलाव गाजा में इजरायल के विनाशकारी तेवर, वैश्विक दबाव और स्थानीय राजनीति की वजह से हो रहा है। फ्रांस में वामपंथी दल, सत्तारूढ़ सरकार पर हावी हो रहे है। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन के पक्षधर रहे हैं। यूरोपियन यूनियन भी समर्थन देना चाह रहा है।

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अचानक फिलिस्तीन पर दुनिया के तेवर क्यों बदले? 

7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायल पर हमला बोला था। इजराल ने अपने 1200 नागरिकों को खो दिया था। कई नागरिकों को हमास ने आज भी बंधक बनाया है, कई मारे गए हैं। इजरायल ने जवाबी हमला किया। 60 हजार से ज्यादा गाजा के लोग मारे गए। भीषण तबाही मची। गाजा और रफाह अब खंडहरों के ढेर बच्चे हैं। गाजा के लोग भुखमरी से मर रहे हैं। हजारों लोग मारे गए हैं, लाखों बेघर हो गए हैं। इस त्रासदी ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है। 

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू टू नेशन स्टेट सॉल्युशन को भी एक सिरे से खारिज करते हैं। दशकों से इस पर कूटनीतिक वार्ताएं होतीं आईं हैं। अब पश्चिम देश चाह रहे हैं कि इजरायल गाजा पर हमले रोके, इसके लिए वे दबाव बना रहे है। यही वजह है कि वे फिलिस्तीन की संप्रभुता को मान्यता भी देने के लिए तैयार हो रहे हैं। 

 

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पश्चिमी देशों के बदलते रुख की एक वजह इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में इजरायल पर लगे नरसंहार के आरोप भी हैं। दक्षिण अफ्रीका ने इजरायल पर नरसंहार के आरोप लगाए हैं। यूरोपीय देशों को लग रहा है कि अब चुप रहना गलत है। मान्यता देना, टू नेशन स्टटे सॉल्युशन के लिए जरूरी कदम है।

गाजा में इजरायल का विध्वंस।

 

टू-स्टेट सॉल्यूशन क्या है?

टू-स्टेट सॉल्यूशन इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति समझौता है। प्रस्तावना है कि दो अलग-अलग देश बनाए जाएंगे, एक इजरायल और दूसरा फिलिस्तीन। दोनों अपनी सीमाओं, सरकार और स्वतंत्रता के साथ सह-अस्तित्व में रहेंगे। यह संघर्ष को खत्म करने और शांति स्थापित करने का प्रस्ताव है। यह सिद्धांत, अब इजरायल मानता ही नहीं है। 

 
यूक्रेन की जंग ने बदल दिए हालात

24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। यूक्रेन का एक बड़ा हिस्सा, रूस ने हड़प लिया। यह यूक्रेन की संप्रभुता पर हमला था। यूरोपीय देश रूस के खिलाफ खुलकर बोले। संयुक्त राष्ट्र ने भी संप्रभुता छीनने पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर ही। यूरोप, अमेरिका मिलकर जंग खत्म कराना चाह रहे हैं। आज भी युद्ध विराम की कोशिशें की जा रही हैं। रूस अपने रुख को बदलने के लिए तैयार नहीं है। फिलिस्तीन के मुद्दे पर यूरोपीय देशों ने चुप्पी साधी। इजरायल ने तबाही मचा दी। अब उनके अपने ही देश में इसके खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। लोग यूरोप के बदलते तेवर को पाखंड भी कह रहे हैं लेकिन नेताओं के बयान यह इशारा कर रहे हैं कि फिलिस्तीन को कम से कम देश तो दुनिया मान ही सकती है।


क्या यूरोपीय देशों के भीतर भी फिलिस्तीन के लिए हमदर्दी है?

यूरोप की दक्षिणपंथी सरकारें मुश्किलों में हैं और अब मजबूत लेफ्ट उनके सामने है। 2023 के यूरोबारोमीटर सर्वे में दावा किया गया है कि करीब 72 फीसदी यूरोपीय अंतरराष्ट्रीय कानून को हर संघर्ष में लागू करने के पक्ष में हैं। फिलिस्तीन के लिए लोग इन्हीं कानूनों के तहत राहत मांग रहे हैं। गाजा की तस्वीरें भयावह हैं। बच्चे मारे जा रहे हैं, बुजुर्ग खाने को तरस रहे हैं, लोग टेंट में रहने को मजबूर हैं। पेरिस से डबलिन तक प्रदर्शन हो रहे हैं। मानवाधिकार संगठन दबाव बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। युवा और प्रगतिशील वोटर अब सिर्फ निंदा नहीं, ठोस कार्रवाई चाहते हैं। अब सरकारों को भी लग रहा है कि अगर चुप रहे तो यह भी एक मुद्दा उनकी हार का हो सकता है। 

फिलिस्तीन के लिए किन देशों ने दिखाई है हमदर्दी? 

स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे फिलिस्तीन के प्रति सहानुभूति रखते हैं। आयरलैंड एक अरसे तक ऐसे ही संघर्ष का हिस्सा रहा है। नॉर्वे चाहता है कि अब नई नीतियां गढ़ी जाएं। जर्मनी और ऑस्ट्रिया होलोकॉस्ट के ऐतिहासिक बोझ से बंधे हैं। वे इस वजह से इजरायल की सुरक्षा पर ज्यादा मुखर होकर बोल रहे हैं। पहले पूर्वी यूरोप के देश पोलैंड और हंगरी जैसे देशों ने सोवियत काल में फिलिस्तीन को मान्यता दी थी लेकिन अब कतरा रहे हैं।

 

गाजा में इजरायली डिफेंस फोर्स के जवान।

यूरोपीय संघ क्यों इजरायल पर दबाव बना रहा?

यूरोपियन यूनियन में विदेश नीति के लिए 27 सदस्य देशों का साथ आना जरूरी है। सभी देश साथ नहीं आ रहे हैं, हर देश का फैसला अलग-अलग है। स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे चाहते हैं कि फिलिस्तीन को मान्यता मिले। स्लोवेनिया मान्यता दे चुका है। फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमबर्ग और माल्टा भी मान्यता दे रहे हैं। यूरोपीय देशों में फिलिस्तीन को मान्यता देने की कवाद शुरू है। अब तक संयुक्त राष्ट्र के 147 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। यह कुल सदस्य देशों का 75 फीसदी है।

फिलिस्तीन देश है या नहीं? पहले इसे समझिए 

संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को 193 सदस्यों में से 147 देशों ने देश की मान्यता दी है। संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के पास 'स्टेट' का दर्जा है। फिलिस्तीन, संयुक्त राष्ट्र का सदस्य देश है लेकिन इसे स्थाई पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा मिला है। फिलिस्तीन के पास वोटिंग का अधिकार नहीं है। अमेरिका के साथ-साथ कई यूरोपीय देश, फिलिस्तीन को देश की मान्यता नहीं देते हैं। 

यूरोप और अमेरिका जैसे देशों का तर्क है कि अगर फिलिस्तीन को संप्रभु राष्ट्र की मान्यता देंगे तो मिडिल-ईस्ट में तनाव और बढ़ जाएगा। जुलाई महीने में फ्रांस ने एलान किया था कि सितंबर में फिलिस्तीन को वह देश का दर्जा दे देगा। फिलिस्तीन की पूर्ण सदस्यता और वैश्विक मंचों पर अधिकार सीमित हैं।  

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने भी कहा है अगर इजरायल, गाजा में तबाही नहीं रोकता है तो ब्रिटेन सितंबर में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा दे देगा। कनाडा का भी यही कहना है कि फिलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र महासभा में वह औपचारिक रूप से देश का दर्जा देगा। उन्होंने यह भी कहा कि अगर फिलिस्तीन अथॉरिटी अपने यहां लोकतांत्रिक सुधारों पर जोर देगी तो देश की मान्यता भी मिलेगी। 

इजरायल-फिलिस्तीन के पास कौन सा हिस्सा है?

इजरायल का पश्चिमी तट पर पूर्ण सैन्य और प्रशासनिक नियंत्रण है। यहां करीब 160 बस्तियां, जहां 7 लाख यहूदी रहते हैं। पूर्वी यरुशलम, इजरायल ने 1967 में इस हिस्से को हासिल किया था। अब यह इजरायल की राजधानी है। गाजा पट्टी पर भी इजरायल का नियंत्रण है। यहीं इजरायली तोपें गरज रहीं हैं। फिलिस्तीनी क्षेत्रों में वेस्ट बैंक और गाजा आता है। गाजा पर 2007 से हमास का नियंत्रण था। अब इजरायल ने इसे अपने कब्जे में लिया है। वेस्ट बैंक 5,655 वर्ग किमी में फैला है। यहां 30 लाख लोग रहते हैं। ओस्लो समझौते के तहत तीन क्षेत्रों इसे तीन इलाकों में बांटा गया है। फिलिस्ती अथॉरिटी दो हिस्सों को नियंत्रित करती है, वहीं 1 हिस्सा इजरायल के कंट्रोल में है। पूर्वी येरुशेलम भी इजरायल के कब्जे में है।  

इजरायल का रुख क्या है?

इजरायल, फिलिस्तीन को खारिज करता है। इजरायल का कहना है कि अगर फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा दिया जाएगा तो इसका मतलब है कि दुनिया इजरायल के अस्तित्व को नकार रही है। इजरायल, पश्चिमी तट पर अपना अधिकार मानता है। वह स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य का विरोधी है। 

कितना पुराना है यह विवाद?

यह विवाद 19वीं सदी से अब तक चला आ रहा है। फिलिस्तीन और इजरायल, दुनिय के जिस हिस्से में आज हैं, वहां 19वीं सदी के अंत में यहूदी राष्ट्रवाद की शुरुआत हुई थी। इसे जायनिज्म का नाम दिया गया। अरब में राष्ट्रवादी आंदोलन पनप रहा था। 1897 में ज़ायोनिज़्म आंदोलन की शुरुआत हुई। मांग की गई कि यहूदियों के लिए एक मातृभूमि होनी चाहिए। इसी आंदोलन ने फिलिस्तीन में यहूदी राज्य की स्थापना का लक्ष्य रखा। साल 1917 के बाल्फोर घोषणापत्र में यह कहा गया कि यहूदी राष्ट्र की मांग जायज है। अरबों में इसके बाद से ही असंतोष हुआ। 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल को दो राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया। तब यहूदियों ने इसे स्वीकार किया, अरबों ने नकारा। 1948 में इजरायल की स्थापना हुई। इजरायल-अरब जंग की शुरुआत हुई। अमेरिका, इजरायल का कट्टर सहयोगी देश है। तब से लेकर अब तक, यह संघर्ष जारी है। 

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