दुविधा में डोनाल्ड ट्रंप, ईरान पर सीधे हमले से क्यों बच रहा अमेरिका?
ईरान अपने हमलों से इजरायल को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। ट्रंप बार-बार इजरायल की रक्षा करने की बात करते हैं। मगर अभी तक अमेरिका सीधे तौर पर ईरान से भिड़ने से बच रहा है। मगर क्यों?

डोनाल्ड ट्रंप। ( Photo Credit: X/@realDonaldTrump)
ईरान पर इजरायल के सबसे बड़े हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दुविधा में हैं। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक इंटरव्यू में खुद को ट्रंप का 'जूनियर पार्टनर' बताया। दूसरी तरफ अमेरिका ने इजरायली हमलों से खुद को अलग कर लिया। उसका कहना है कि इजरायली हमलों में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं है। ट्रंप ने न केवल ईरान पर इजरायली हमले का विरोध किया बल्कि बमबारी की जगह बातचीत करने की सलाह तक दे डाली। ईरान के फोर्डो यूरेनियम संवर्धन प्लांट को नष्ट करने में इजरायल ने अमेरिका से मदद मांगी लेकिन अभी तक ट्रंप प्रशासन ने कोई सीधी मदद नहीं पहुंचाई। ऐसे में आइए जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप दुविधा में क्यों फंसे हैं और अमेरिका सीधे ईरान पर हमला करने से क्यों बच रहा है?
क्यों दुविधा में ट्रंप?
पुराने सहयोगियों का दबाव: एनबीसी न्यूज के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप को अपने पुराने सहयोगियों से दबाव का सामना करना पड़ रहा है। उनके सहयोगियों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन इजरायल को सैन्य कार्रवाई करने से रोके। किसी भी ऑपरेशन के लिए अमेरिका मदद न दें।
शांतिदूत वाली इमेज: डोनाल्ड ट्रंप अपनी इमेज शांतिदूत वाली बनाना चाहते हैं। उन्होंने यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध को रुकवाने की कोशिश की। हालांकि सफल नहीं हो सके। भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर करवाने का भी श्रेय लेते रहते हैं। उनका कहना है कि लाखों लोगों की जान बचाई है। अब ईरान के खिलाफ अमेरिका के सीधे हस्तक्षेप के बीच ट्रंप की शांतिदूत वाली छवि आड़े आ रही है।
युद्ध से बचने की कोशिश: डोनाल्ड ट्रंप दुनियाभर के संघर्ष में फंसे अमेरिका को बाहर निकालना चाहते हैं। ट्रंप का मानना है कि अगर अमेरिका ने ईरान के खिलाफ ऑपरेशन में साथ दिया तो युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। वे नहीं चाहते हैं कि अमेरिका एक और युद्ध के दलदल में फंसे।
बातचीत पर यकीन: डोनाल्ड ट्रंप को बातचीत पर काफी यकीन है। उनका मानना है कि ईरान के साथ बातचीत से रिश्तों को सुलझाया जा सकता है। ईरान के खिलाफ अमेरिका के शामिल होने के सवाल पर ट्रंप ने कहा, "मैं नहीं चाहता कि इसमें शामिल हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि इससे स्थिति खराब हो जाएगी। ईरान के साथ हमारी बहुत अच्छी चर्चा हुई है। मैं अधिक दोस्ताना रास्ता पसंद करता हूं।'
रविवार को ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर लिखा, 'ईरान और इजरायल को एक समझौता करना चाहिए। वे एक समझौता करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे मैंने भारत और पाकिस्तान के साथ किया। कई कॉल आ रही हैं और मीटिंग हो रही हैं। मैं बहुत कुछ करता हूं। कभी किसी चीज का श्रेय नहीं लेता, लेकिन यह ठीक है कि लोग समझते हैं। मध्य पूर्व को दोबारा महान बनाओ।'
ट्रंप पर बढ़ने लगा प्रेशर: अमेरिका के कुछ सांसदों ने डोनाल्ड ट्रंप को एक पत्र लिखा है। इसमें रिपब्लिकन प्रतिनिधि डॉन बेकन भी शामिल हैं। पत्र में ईरान पर सैन्य दबाव के साथ-साथ कूटनीतिक दबाव भी डालने की मांग की गई है। सीनेटर लिंडसे ग्राहम समेत कई नेता ट्रंप पर ईरान के खिलाफ संघर्ष में शामिल होने का दबाव बना रहे हैं। मगर अभी तक ट्रंप ने ईरान के खिलाफ सीधे सैन्य हस्तक्षेप से जुड़ा कोई निर्णय नहीं लिया है।
यह भी पढ़ें: ईरान के सरकारी टीवी स्टूडियो पर इजरायल का हमला, हो रहा था लाइव प्रसारण
कहां बिगड़ी बात?
नहीं माने नेतन्याहू: डोनाल्ड ट्रंप को उम्मीद थी कि बेंजामिन नेतन्याहू को इस बात पर राजी कर लिया जाएगा कि वे ईरान पर हमला न करें। मगर पिछले हफ्ते उनका यह भ्रम टूट गया। इजरायल ने ईरान पर हमला करने का प्लान उनके साथ साझा किया। तब ट्रंप ने इजरायल को रक्षात्मक और कुछ खुफिया जानकारी देने की बात कही। वह सीधे युद्ध में हिस्से लेने से बचते दिखे। 13 जून को इजरायल के हमले के बाद अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इजरायल को सैन्य सहायता देने की बात को नकार दिया।
खामेनेई को मारने के पक्ष में नहीं ट्रंप: मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि इजरायल ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या का प्लान ट्रंप के सामने रखा। तब ट्रंप ने इजरायल के इस प्लान का विरोध किया। दो अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि अभी तक ईरान के साथ संघर्ष में किसी भी अमेरिकी नागरिक की मौत नहीं हुई है। इस वजह से ट्रंप को नहीं लगता है कि खामेनेई की हत्या की जाना चाहिए।
अमेरिका का असली प्लान क्या है?
अमेरिकी मीडिया के मुताबिक ईरान के खिलाफ इजरायल को रसद सहायता, लड़ाकू विमानों को ईंधन, खुफिया जानकारी और अमेरिकी सेना की इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं का उपयोग करने की अनुमति है। दूसरा विकल्प इजरायल को सीधे सैन्य सहायता प्रदान करना है। तीसरा विकल्प- अमेरिका कुछ भी न करे। ट्रंप प्रशासन अभी तीसरे विकल्प पर भी काम कर रहा है।
ट्रंप को क्या डर सता रहा?
इजरायली ऑपरेशन से ट्रंप प्रशासन ने खुद को दूर रखा है। 13 जून को इजरायल के हमले के बाद ट्रंप ने कहा था कि उन्हें पता था कि हमला होने वाला है। मगर इसमें अमेरिकी सेना शामिल नहीं थी। ट्रंप को आशंका है कि ईरान अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमला कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो युद्ध से बचना मुश्किल होगा। तभी इजरायली हमले के तुंरत बाद उन्होंने अपनी सफाई जारी कर दी, ताकि युद्ध जैसी स्थिति को टाला जा सके।
यह भी पढ़ें: ईरान के बाद क्या पाकिस्तान; पड़ोसी देश में इजरायल का खौफ क्यों?
ट्रंप को अब भी समझौते की उम्मीद
डोनाल्ड ट्रंप को उम्मीद है कि इजरायल के हमले के बाद भी ईरान के साथ अमेरिका परमाणु समझौते तक पहुंच सकता है। एक्सियोस से बातचीत में ट्रंप ने कहा, 'मैं उन्हें 60 दिनों में समझौता करने पर राजी नहीं कर सका। वे (ईरान) करीब थे, उन्हें यह कर लेना चाहिए था। शायद अब यह हो जाएगा।' अमेरिकी राष्ट्रपति ने जोर दिया कि दोनों देशों के बीच युद्ध खत्म होना चाहिए। ट्रंप के बयान के इतर ईरान के विदेश मंत्री ने रविवार को होने वाली परमाणु वार्ता रद कर दी थी।
अमेरिका को युद्ध में घसीटना चाहता इजरायल
ईरान के खिलाफ इजरायल अमेरिका से सीधे सैन्य हस्तक्षेप चाहता है। इजरायली प्रधानमंत्री अपने हर बयान में ट्रंप और अमेरिका का जिक्र करते हैं। फॉक्स न्यूज के इंटरव्यू में नेतन्याहू ने बताया कि अमेरिका के साथ खुफिया जानकारी साझा करने बाद ही ईरान पर हमला किया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि ईरान डोनाल्ड ट्रंप को दुश्मन नंबर 1 मानता है। वह उनकी हत्या की साजिश रच रहा है।
ट्रंप को क्यों दुश्मन नंबर 1 मानता है ईरान?
नेतन्याहू ने ट्रंप को दुश्मन नंबर 1 मानने के पीछे की वजह भी बताई। उन्होंने कहा कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम के लिए ट्रंप को खतरा मानता है। ट्रंप ने ही ईरान के साथ फर्जी समझौते को रद्द किया और कासिम सुलेमानी की हत्या करवाई। इस कारण से ईरान ट्रंप को दुश्मन नंबर 1 मानता है।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap