अमेरिका के सताए देश ही बनेंगे ट्रंप के लिए काल? जान लीजिए कैसे?
डोनाल्ड ट्रंप के फैसलों के खिलाफ भारत-चीन समेत दुनिया के कई देश गोलबंद को रहे हैं, जो आने वाले समय में अमेरिका के लिए घातक साबित हो सकते हैं।

अमेरिका के खिलाफ कई देशों की गोलबंदी। Photo Credit- Sora
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की कुर्सी जब से संभाली है तब से ही वह 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति को धरातल पर उतारने की जुगत में लगे हुए हैं। इसके लिए वह लगातार विश्व के दर्जनों देशों पर व्यापारिक प्रतिबंध लगा रहे हैं। साथ ही ट्रंप अभी तक 60 देशों पर अमेरिका में आयात होने वाले सामानों पर भारी भरकम टैरिफ यानी टैक्स लगा चुके हैं। यह टैरिफ उन देशों पर लगाया गया है जो अपना सामान अमेरिका में निर्यात करते हैं। इसमें भारत भी शामिल है। भारत से अमेरिका में निर्यात होने वाले सामानों पर डोनाल्ड ट्रंप अभी तक 50 फीसदी का टैरिफ लगा चुके हैं। उनके इस कदम से भारत, यहां के व्यापारियों और इन कंपनियों में काम करने वाले लोगों पर असर पड़ रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप यहीं नहीं रूके उन्होंने एक और कदम उठाते हुए H-1B वीजा की फीस बढ़ाकर 1 लाख डॉलर कर दी है। H-1B वीजा के सबसे बड़े लाभार्थी भारतीय हैं। इस कदम से हजारों भारतीयों के अमेरिका में नौकरी करने के सपने पर विराम लग सकता है। ट्रंप का दावा है कि बाहरी लोग H-1B आसानी से मिलने की वजह से अमेरिकियों की नौकरी खा रहे हैं। इन घटनाओं की वजह से भारत के अमेरिका के साथ रिश्ते थोड़े कड़वे हो गए हैं। भारत, अमेरिका कदमों पर बारीकी से नजर बनाए हुए है।
अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रंप अपने पड़ोसी देश कनाडा पर अमेरिका का दावा करने लगे हैं। वह कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाना चाहते हैं। ट्रंप इस बात को बार-बार दोहरा रहे हैं। इसको लेकर कनाडा के साथ भी अमेरिका के रिश्ते तल्ख हो गए हैं। ट्रंप के व्यवहार को देखते हुए भारत और कनाडा दोनों ही अब अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम करने पर काम करने लगे हैं। दोनों देश हर उस विकल्प को तलाश रहे हैं, जो इनके लिए भविष्य में फायदेमंद साबित हों। ऐसे में आइए जानते हैं कि अमेरिका के सताए देश ही डोनाल्ड ट्रंप के लिए काल कैसे बन सकते हैं? विस्तार से समझते हैं...
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डोनाल्ड ट्रंप ने इसी साल 2 अप्रैल को दुनियाभर के देशों पर टैरिफ बढ़ाने का ऐलान किया था। उन्होंने इसे 'लिबरेशन डे' नाम दिया था। बाद में इस टैरिफ की नई दरों पर 9 जुलाई और फिर 1 अगस्त तक रोक लगा दी थी। कड़ी-दर-कड़ी उन्होंने देशों पर टैरिफ लागू कर दिए। ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने का हवाला देते हुए भारत पर 50% टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। ट्रंप ने सबसे पहले भारत पर 25% टैरिफ लगाया था, जो 7 अगस्त से लागू हो चुका है।
इसके बाद ट्रंप ने 25% टैरिफ और लगा दिया था, जो 27 अगस्त से लागू हुआ। ट्रंप ने आरोप लगाया था कि भारत, रूस से सस्ता तेल खरीदकर बाहर बेचकर मुनाफा कमा रहा है। ट्रंप का यह भी आरोप था कि रूस से तेल खरीदकर भारत उसकी 'वॉर मशीन' में मदद कर रहा है।
भारत पर क्यों लगाया इतना टैरिफ?
ट्रंप का कहना है कि रूस से तेल खरीदने की वजह से भारत पर टैरिफ लगाया जा रहा है। हालांकि, व्हाइट हाउस का कहना है कि भारत पर इसलिए टैरिफ लगाया जा रहा है, ताकि रूस पर यूक्रेन जंग खत्म करने का दबाव बने। व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट कह चुकी हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप इस जंग को जल्द से जल्द खत्म करना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने कुछ कदम उठाए हैं। इनमें भारत पर टैरिफ की कार्रवाई भी शामिल है।
दवाओं पर भी टैरिफ
इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप ने दवाओं पर टैरिफ बढ़ा दिया है। ट्रंप ने दवाओं पर 100% टैरिफ बढ़ाने का ऐलान किया है। इसका सबसे बड़ा असर भारत पर पड़ने की संभावना है, क्योंकि भारतीय दवाओं का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका ही है। ट्रंप ने बताया है कि वह विदेशी दवाओं पर 100%, किचन कैबिनेट और बाथरूम वैनिटी पर 50%, फर्नीचर पर 30% और बड़े ट्रकों पर 25% टैरिफ लगाने जा रहे हैं। ट्रंप का यह नया टैरिफ 1 अक्टूबर से लागू होगा।
भारत हर साल करीब 40 अरब डॉलर के फार्मा प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट करता है। इसमें से 10 से 12 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट अकेले अमेरिका को होता है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका का फार्मा मार्केट की कुल वैल्यू 96 अरब डॉलर है। इसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 11% है लेकिन 40% मार्केट पर भारतीय कंपनियों का कब्जा है। इससे पता चलता है इस कदम से भारत पर भी असर पड़ेगा।
भारत से ट्रंप क्यों नाराज?
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के ऊपर यह टैरिफ तब लगाया है, जब भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर बातचीत चल रही है। अमेरिका का कहना है कि भारत के साथ जो मुद्दे हैं, वे रातोरात हल नहीं होंगे। दरअसल, ट्रंप भारत से इसलिए नाराज हैं, क्योंकि भारत BRICS का सदस्य है। ट्रंप ने BRICS को अमेरिका विरोधी बताया है। ट्रंप ने कहा, 'BRICS, अमेरिका विरोधी देशों का ग्रुप है और भारत उसका सदस्य है। यह डॉलर पर हमला है और हम किसी को भी डॉलर पर हमला नहीं करने देंगे।'
रूस से तेल खरीदता रहेगा भारत
वहीं, ट्रंप की धमकियों के बीच भारत सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की धमकियों के बावजूद रूस से तेल खरीदना जारी रखे हुए है। भारत सरकार ने भी इस बात की पुष्टि की है कि वह रूस से अपने रिश्तों को निभाता रहेगा और उससे तेल खरीदता रहेगा। साथ ही यह भी संकेत दिए हैं कि भारत किसी भी ताकत के आगे नहीं झुकेगा।
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भारत की ट्रंप के खिलाफ शतरंज की चाल
बता दें कि जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के ऊपर भारी भरकम टैरिफ लगाए तो इसी बीच चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का आयोजन हुआ। एससीओ की पूरी दुनिया में चर्चा हुई। इस बैठक पर अमेरिकी ने पैनी नजर रही थी। इस बैठक में जिस बात की सबसे ज्यादा चर्चा हुई वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच दिखा जबरदस्त सौहार्दपूर्ण माहौल था। इस मुलाकात को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ के प्रति गोलबंदी की तरह देखा गया, क्योंकि ट्रंप ने तीनों ही देशों के बिजनेस पर गहरी चोट पहुंचाने की कोशिश की है।
SCO में दुनिया के तीन शक्तिशाली नेताओं ने बिना अमेरिका की मौजूदगी के एक मंच साझा किया। इस मुलाकात ने अमेरिका के साथ ही पश्चिमी देशों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इसको लेकर अमेरिका के रणनीतिकार भी ट्रंप के लिए अच्छा नहीं मान रहे हैं। मोदी-शी-पुतिन की तिकड़ी के बीच शिखर सम्मेलन के दौरान हुई बातचीत को अमेरिकी मीडिया में भी प्रमुखता से दिखाया गया था। अमेरिकी राजनीतिकों ने इसे 'एक नई विश्व व्यवस्था का संकेत' बताया था। उनके मुताबिक, यह संकेत अमेरिका के लिए अच्छा नहीं है।
भारत-चीन और रूस एशिया की तीन सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्तियां हैं। ट्रंप के कदमों के बाद से यह तीनों ही देश अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम करके एक तीसरे विकल्प की तलाश कर रहे हैं। तीनों देश एक साथ व्यापार करने की रणनीति पर भी बात कर रहे हैं। भारत और चीन दुनिया के लिए बड़े बाजार हैं, ऐसे में यहां दुनिया की कंपनियां खुद अपना सेटअप बैठाना चाहती हैं। अगर भारत-चीन और रूस, अमेरिका के खिलाफ इस रणनीति को लागू करने में कामयाब हो जाते हैं तो यह डोनाल्ड ट्रंप के लिए घातक साबित हो सकता है।
कनाडा से आने वाले सामान पर टैरिफ बढ़ा
दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले दिनों कनाडा के लिए एक अलग ऑर्डर पर साइन किए, जिसके बाद वहां से अमेरिका आने वाले सामान पर टैरिफ 25% से बढ़ाकर 35% कर दिया गया। ट्रंप ने इस साल मार्च में कनाडा पर 25% टैरिफ लगाया था। हालांकि, उन्होंने अब इसे बढ़ाकर 35% कर दिया। इससे कनाडा खासा नाराज है।
यह टैरिफ इसलिए बढ़ाया गया है, क्योंकि व्हाइट हाउस का दावा है कि कनाडा फेंटेनाइल और बाकी नशीली दवाओं को रोकने में मदद करने में नाकाम रहा है और उसने टैरिफ को लेकर अमेरिका के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की थी। ट्रंप कोई ना कोई बहाना करके ज्यादातर देशों के ऊपर टैरिफ थोपा है। वह टैरिफ लगाकर अमेरिका फर्स्ट की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
वहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाना चाहते हैं। ट्रंप कह रहे हैं कि वह कनाडा को जबरन अमेरिका में मिला देंगे, बल्कि वहां के नेताओं और लोगों से अपील कर रहे हैं कि कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बना देना चाहिए। ट्रंप कनाडा को अमेरिकी राज्य बनाने की बात लगातार दोहराते रहे हैं, लेकिन अब कनाडा के नेता ट्रंप को खुलकर जवाब दे रहे हैं।
इन सभी घटनाक्रमों के बीच कनाडा ने बहती गंगा में हाथ धोने का काम किया है। जब ट्रंप ने H1B की फीस बढ़ाकर एक लाख डॉलर कर दी तो इससे दुनियाभर के तकनीकी क्षेत्र के उन कर्मचारियों को झटका लगा जो अमेंरिका में काम करना चाहते हैं। इसी बात को भुनाते हुए शुक्रवार को कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा है कि अमेरिका में अब कम लोग H1B वीजा पा सकेंगे, इसलिए ये लोग स्किल्ड हैं और ये कनाडा के लिए अवसर है।
जर्मनी-ब्रिटेन ने भी रिझाया?
दरअसल, कनाडा के प्रधानमंत्री कार्नी तकनीकी क्षेत्र के उन कर्मचारियों को आकर्षित करना चाहते हैं डोनाल्ड ट्रंप के नए वीजा टैरिफ लागू होने से पहले अमेरिका में काम कर चुके हैं। मार्क कार्नी ने शनिवार को लंदन में मीडिया से बात करते हुए H-1B वीजा पर लगाए गए टैरिफ पर कहा, 'यह स्पष्ट है कि यह उन लोगों को आकर्षित करने का अवसर है जिन्हें पहले तथाकथित H-1B वीजा मिलता था।' उन्होंने आगे कहा कि इनमें से कई कर्मचारी तकनीकी क्षेत्र में हैं और काम के लिए बाहर जाने को तैयार हैं। कार्नी ने परोक्ष रूप से इन लोगों को अपने देश कनाडा आने का न्यौता दिया। इसके अलावा ट्रंप के फैसले को लेकर जर्मनी और ब्रिटेन भी कुशल कारीगरों को अपने देश में आकर्षित कर रहे हैं।
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