युवाओं के फेफड़े तेजी से खराब हो रहे हैं। हर साल फेफड़ों के कैंसर के लगभग 81,700 नए मामले सामने आ रहे हैं जो कि खतरे की बात है। कभी बुढ़ापे की बीमारी समझे जाने वाला फेफड़ों का कैंसर, सीओपीडी और टीबी अब कम उम्र में पहले ही दिखाई देने लगे हैं। यह बहुत ही गंभीर स्थिति है। विशेषज्ञों ने कहा कि जो युवा सुबह-सुबह धुंध में दौड़ते हैं, जो पेशेवर लोग लंबी दूरी तक यातायात जाम से होकर यात्रा करते हैं तथा जो छात्र प्रदूषित कक्षाओं में बैठते हैं, वे हर दिन अपने फेफड़ों में जहरीली हवा भर रहे हैं। उनका कहना है कि इन बीमारियों के लक्षण शुरुआत में नहीं दिखते हैं। यह संकट सिर्फ बाहरी प्रदूषण तक ही सीमित नहीं है।
6 सितंबर को ‘रेस्पिरेटरी मेडिसिन, इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी और स्लीप डिसऑर्डर्स’ (रेस्पिकॉन) का आठवां राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन में विशेषज्ञों ने बताया कि रसोई का धुआं और घर के अंदर इस्तेमाल होने वाले बायोमास ईंधन धूम्रपान न करने वाली महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर के खतरे को काफी बढ़ा रहे हैं। यह एक ऐसा खतरा है जिसे अक्सर सार्वजनिक बहसों में नजरअंदाज कर दिया जाता है। बच्चों पर भी इसका बोझ बढ़ रहा है।
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जहरीली हवा से बच्चे भी हो रहे हैं प्रभावित
5 साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु के मामले में निमोनिया अभी भी वैश्विक स्तर पर 14% के लिए जिम्मेदार है और प्रदूषित वायु के कारण बार-बार होने वाले संक्रमण से बच्चों का स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा शक्ति कमजोर हो रही है। ‘रेस्पिकॉन’ 2025 का उद्घाटन दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) डॉ. वत्सला अग्रवाल ने किया, जिन्होंने श्वसन स्वास्थ्य को भारत की नीतिगत प्राथमिकताओं के केंद्र में रखने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, 'स्वच्छ हवा कोई लग्जरी नहीं है, यह एक मौलिक अधिकार है। श्वसन स्वास्थ्य को भारत के स्वास्थ्य एजेंडे में हाशिये से हटाकर मुख्यधारा में लाना होगा। हमारी युवा आबादी के फेफड़ों की सुरक्षा, राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने की सुरक्षा है। हम जहरीली हवा को अपना वर्तमान और भविष्य, दोनों चुराने की इजाजत नहीं दे सकते।'
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‘रेस्पिकॉन’ 2025 के कार्यक्रम निदेशक और अध्यक्ष, डॉ राकेश के. चावला ने कहा, 'अगर हम सूक्ष्म कण प्रदूषण के संपर्क को आधा कर दें और सीओपीडी, अस्थमा और टीबी के लिए दिशानिर्देश-आधारित देखभाल लागू करें तो हम हर साल सैकड़ों-हजारों लोगों को अस्पताल में भर्ती होने से बचा सकते हैं और अपने लोगों को स्वस्थ जीवन के कई साल वापस दे सकते हैं। यह केवल अस्पतालों या मरीजों के बारे में नहीं है। यह एक पूरी पीढ़ी की ताकत और जीवन शक्ति की रक्षा के बारे में है। तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो जिस समय भारत अपने आर्थिक चरम पर होगा वहां पहले से ही उसके कार्यबल की सांसें फूल रही होंगी।'